वायु प्रदूषण और इंफ्लुएंजा: सांसों की सेहत का रखें ख्याल
गर्मी के मौसम में धूल से लेकर धुआं और सर्दियों में कोहरे तक, हर मौसम में वायु प्रदूषण की वजह से पर्यावरणीय स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं. ऐसे में इसे गंभीरता से लेना जरूरी है.
अच्छी सेहत और तंदुरुस्ती के लिए स्वच्छ व ताजी हवा में सांस लेना जरूरी है. इसके बावजद, समूचा विश्व इस वास्तविकता से कोसों दूर है. इसके उलट, साल 2022 में पूरी दुनिया में सबसे प्रदूषित टॉप 10 शहरों में से छह शहर भारत के थे. एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स की एक रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि प्रदूषण का उच्च स्तर या हवा में कणों (जैसे धुआं, धूल और ऐसी ही चीजें) की मौजूदगी भारत में लोगों की औसत आयु को 5.3 साल कम कर देती है. वहीं, यदि हवा की गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठनों के दिशानिर्देशों के अनुरूप हो तो उसकी तुलना में उनकी जिंदगी कुछ और हो सकती थी. जिन क्षेत्रों में हवा को प्रदूषित करने वाले कुछ खास प्रकार के तत्वों की मात्रा अधिक होती है, वहां श्वसन संबंधी समस्याएं जैसे इंफ्लूएंजा (या फ्लू) या ऐसी ही कई तरह की समस्याएं देखी गई हैं.
गर्मी के मौसम में धूल से लेकर धुआं और सर्दियों में कोहरे तक, हर मौसम में वायु प्रदूषण की वजह से पर्यावरणीय स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं. ऐसे में इसे गंभीरता से लेना जरूरी है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा हवा की खराब गुणवत्ता और श्वसन संबंधी समस्याओं के बीच संबंध को लेकर चिंता व्यक्त करने पर, उस पर तत्काल कदम उठाना जरूरी है. इसके लिए लोग कुछ उपाय कर सकते हैं.
डॉ. जेजो करणकुमार, मेडिकल अफेयर्स डायरेक्टर, एबॅट इंडिया का कहना है, “जीवन के हर पड़ाव में लोगों को स्वस्थ रहने में मदद करना जरूरी है. वायु प्रदूषण और फ्लू जैसी श्वसन समस्याएं, इसके रास्ते में रुकावट पैदा कर सकती हैं. फ्लू जैसे संक्रमणों से खुद का बचाव करने के लिए लोगों में जागरूकता लाना महत्वपूर्ण है, खासकर ऐसे समय में जबकि इसके मामले तेजी से बढ़ रहे हों. निवारक देखभाल महत्वपूर्ण है और लोगों के लिए बेहद जरूरी है, खासकर जिन्हें इसका खतरा है. इससे बचाव के लिए फ्लू का टीका लगवाना काफी मददगार साबित हो सकता है.”
डॉ. विवेक नांगिया, प्रिंसिपल डायरेक्टर एवं हेड, इंस्टीट्यूट ऑफ रेस्पेरेटरी, क्रिटिकल केयर एंड स्लीप मेडिसिन, मैक्स हॉस्पिटल, साकेत, दिल्ली का कहना है, “हवा की खराब गुणवत्ता किसी की भी सेहत को काफी ज्यादा प्रभावित कर सकती है. मैंने दिल्ली में धुएं और वायु प्रदूषण की वजह से प्रभावित होने वाले रोगियों में 25-30% का इजाफा होते हुए देखा है. ज्यादतार लोगों को सांस लेने में तकलीफ और खांसी जैसे लक्षण महसूस हो रहे हैं- पिछले 2-3 हफ्तों में इंफ्लूएंजा जैसी बीमारियों में लगभग 30% की बढ़ोतरी देखी गई है. यदि किसी को फ्लू की शिकायत है तो उन्हें प्रदूषित हवा की वजह से अपने लक्षण और भी बिगड़ते हुए महसूस हो सकते हैं. लोगों के लिए खुद को सुरक्षित रखना महत्वपूर्ण है. लोगों को घर से बाहर निकलते समय मास्क लगाना चाहिए या वायु प्रदूषण ज्यादा होने की स्थिति में घर के अंदर भी मास्क लगाना चाहिए. साफ-सफाई की अच्छी आदत अपनानी चाहिए जैसे बाहर से आने के बाद चेहरे और हाथों को धोना. साथ ही संक्रमण से बचाव के लिए हर साल फ्लू की वैक्सीन लेकर सुरक्षित रहा जा सकता है.”
प्रदूषित हवा से लोगों को क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव बीमारियों से ग्रसित लोगों में वायरल संक्रमण जैसे फ्लू होने का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है. इसकी वजह से सांस लेने में तकलीफ, खांसी, छींक और सीने में दर्द जैसे लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं. इसके होने का सबसे बड़ा कारण- गाड़ियों से निकलने वाले धुएं, कोयला तथा तेल के जलने से होने वाले प्रदूषण जैसे हवा प्रदूषकों में सांस लेने से श्वसन तंत्र को नुकसान पहुंचता है और वायुमार्ग में असहजता हो सकती है. पर्यावरणीय प्रदूषण का प्रभाव पूरी दुनिया में देखा गया है: यूनाइटेड स्टेट्स में एयर क्वालिटी इंडेक्स में एक अंक बढ़ जाने पर 4,000 अतिरिक्त लोगों को हर साल अस्पताल में भर्ती होने की सलाह दी गई.
फ्लू हर उम्र के लोगों को प्रभावित करता है- खासकर पांच साल से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं, बुजुर्गों (65 वर्ष और उससे अधिक) और पहले से ही बीमार लोगों को. वयस्कों की तुलना में बच्चों को प्रदूषण तथा वायरल संक्रमण का जोखिम ज्यादा होता है. कई अध्ययनों में भी यह बात सामने आई है कि वायु प्रदूषण और ऊपरी तथा निचले श्वसन संक्रमण के खतरे के बीच संबंध देखा गया है, खासकर फ्लू का. टीकाकरण से शुरूआत करते हुए, माता-पिता को अपने बच्चों की अतिरिक्त देखभाल करनी चाहिए.
गर्भवती महिलाओं को वायु प्रदूषण की वजह से फ्लू जैसे संक्रमणों का खतरा ज्यादा हो सकता है. इसका उन पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है. गर्भवती महिलाओं का वायु प्रदूषण के संपर्क में कम आने से संक्रमण से प्रभावित होने का खतरा भी कम हो सकता है और इससे होने वाले बच्चे की सेहत को सुरक्षित रखने में भी मदद मिल सकती है.
अच्छी तरह साफ-सफाई रखना जरूरी होता है, समयानुसार चाहे हाथ धोना हो या फिर फेस मास्क का इस्तेमाल करना हो. जीवनशैली के सेहतमंद विकल्प चुनकर, लोग अपनी इम्युनिटी को बेहतर बना सकते हैं और अपने फेफड़े की सेहत में सहयोग कर सकते हैं. इसमें नियमित रूप से व्यायाम करना भी शामिल है. हालांकि, जब वायु प्रदूषण अपने चरम पर हो, खासकर दिवाली के बाद तो वायु प्रदूषण के संपर्क को कम करने के लिए घर के अंदर ही व्यायाम करने की कोशिश करनी चाहिए. घर से बाहर निकलते समय मास्क लगाना हमेशा ही एक अच्छी आदत मानी जाती है. बुखार, सर्दी-जुकाम होने की स्थिति में जल्द से जल्द डॉक्टर को दिखाना सबसे जरूरी है.