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मॉर्निंग वॉक से ज्यादा सेहतमंद बुजुर्गों का ये नया कृषि मॉडल

मॉर्निंग वॉक से ज्यादा सेहतमंद बुजुर्गों का ये नया कृषि मॉडल

Tuesday June 18, 2019 , 5 min Read

आधुनिक किसानी ने तो अपने घरों की छतों पर फल-सब्जियां उगा रहे शहरी बुजुर्गों की जिंदगी की तासीर ही बदल दी है। कृषि का यह नवोन्मेष मॉर्निंग वॉक से ज्यादा सेहतमंद साबित हो रहा है। मुकम्मल सेहत और निरोग फल-सब्जियों का सेवन एक साथ अपने-अपने घरों की पहुंच में। सोचिए, ये नया कृषि मॉडल भी तो हो सकता है!

jagmohan singh

जगमोहन सिंह और स्वर्ण कौर



आजकल समाज समर्थित नए कृषि मॉडल ने घरों के भीतर ही बुजुर्गों के लिए मानो किसान-क्रांति ला दी है। ऐसा नहीं कि आज कम पढ़े या बेरोजगार लोग ही खेती की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। पटेलनगर (देहरादून) में लखीशाह गुरुद्वारे के पास संजय कालोनी के बुजुर्ग जगमोहन सिंह अरोड़ा और उनकी पत्नी स्वर्ण कौर अपने घर में सब्जी फल उगाकर नवोन्मेषी पद्धति से आर्गेनिक खेती का संदेश देते हैं। केरल के छक्कमपुझा कट्टाक्कयम गांव में 73 वर्षीय बुजुर्ग थॉमस दिलचस्प तरीके से कटहल की अनेक किस्में उगा रहे हैं।


वर्ष 1991 से (डर्बीशायर) इंग्लैंड निवासी रघुबीर सिंह संघेरा घरेलू किचन गॉर्डन में फल-सब्जियां उगाते हैं। इसी तरह अभिमन्यु देथा भी अपने घर की छतों पर उगा रहे सब्जियां। दरअसल, आज हमारे देश के ज्यादातर शहरी लोग दशकों से खेती से दूर हैं। शहरी जीवन से खेती के लिए अलगाव, एक खालीपन पैदा करके मानसिक सेहत बिगाड़ सकता है। ऐसे में नया काम शुरू करने वाले रिटायर्ड बुजुर्ग सोशल नेटवर्किंग साइट्स और समाज में अपने लिए प्रशंसा और पहचान ढूंढ़ रहे हैं। जमीन का छोटा टुकड़ा लेकर आधे ढंग से शिफ्ट हो रहे हैं और इस अलगाव में एक तरह की सकारात्मकता को खुद के अंदर भर रहे हैं। खेती करना यानी एक साथ दो जीवनशैलियों को जीने जैसा है, जिससे बढ़ती उम्र के साथ उन्हें किसी एक को चुनने को मौका मिल रहा है।


उत्तरकाशी में पुरोला, खलाड़ी गांव के 74 वर्षीय युद्धवीर सिंह रावत ने अपने बगीचे से सेब के पेड़ हटाकर पांच सौ अनार के पेड़ लगा दिए हैं। बागेश्वर (उत्तराखंड) में 77 साल के शिक्षक और ठेकेदार मनोहर सिंह दफौटी ने अकेले दम पर 15 नाली बंजर भूमि को आबाद कर दिया है जिसमें फल, फूल और सब्जियां लहलहा रही हैं, जिनमें केले के भी एक हजार पेड़ शामिल हैं और प्रतिवर्ष करीब 40 किलो इलायची की पैदावार भी हो रही है। पन्ना (म.प्र.) के ग्राम जनवार के बुजुर्ग किसान लखनलाल अपनी बारह एकड़ जमीन में हर साल सब्जियों की खेती से पंद्रह-सोलह लाख रुपए कमा रहे हैं।


आज देश में आईटी और एडवर्टाइजिंग क्षेत्र के उच्च शिक्षित और पेशेवर लोग, जिनमें महिलाएं भी शामिल हैं, अब शहरी बागवान और किसान बनने की राह पर चल पड़े हैं। एडवर्टाइजिंग प्रोफेशनल पूर्वा कुबेर और पुणे में रहने वाली उनकी मां ने 2018 में 500 वर्गफीट का जमीन का छोटा-सा टुकड़ा लेकर उस पर बैंगन, लौकी, मिर्च, बल्ब टमाटर, जड़ी-बूटियां और यहां तक कि धान भी उगा रही हैं। वह ऐसा इसलिए कर रही हैं, क्योंकि वे स्वयं के लिए और सगे-संबंधियों के लिए एक स्वस्थ जीवन चाहती हैं और यही वजह है कि वे खुद अपने हाथों से जमीन तैयार कर रही हैं और अपनी सब्जियां खुद उगा रही हैं।





जमीन से जुड़ने का यह स्वाद भारतीय समाज को कई तरह के संदेश देता है। इस किस्म का परिवर्तन केवल दिल्ली-एनसीआर, चेन्नई, हैदराबाद, पुणे, बेंगलुरू के रिटायर्ड बुजुर्गों में ही देखने को नहीं मिल रहा है, बल्कि इसे पटना, भोपाल, सूरत, चंडीगढ़, कोयम्बटूर, बेलगाम, जमशेदपुर और औरंगाबाद में भी देखा-सुना जा सकता है। भारत में अभी हम ऐसी खेती के लिए डू-इट-योरसेल्फ वाले तरीके को आजमा रहे हैं, जिसमें खेत का एक छोटा टुकड़ा लीज पर लेकर उसमें अपनी पसंद की फसल किसान की मदद से, उसके निर्देशन में और उसके द्वारा उपलब्ध कराए जा रहे संसाधनों से उगाई जा रही है और इसके लिए मासिक या तिमाही भुगतान किया जा रहा है।


इसके साथ ही एक नया मॉडल समाज समर्थित कृषि मॉडल सामने आया है, इसकी मदद से खेती का नया सामाजिक-आर्थिक स्वरूप आकार ले रहा है। इस सिस्टम के तहत उत्पादक और उपभोक्ता एक-दूसरे से जुड़ते हैं और इन दिनों इसके लिए नई एप टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल भी हो रहा है, जिसमें उपभोक्ता उस फसल को देख और खरीद सकता है जो एक उत्पादक किसान अपने खेत में उगा रहा है।


आज यह भी सच है कि पारंपरिक फसलों से आगे बढ़कर जिन किसानों ने सब्जियों, फलों और मसालों की खेती शुरु की है, उनकी आमदनी तेजी से बढ़ी है। आधुनिक किसानी ने जिंदगी के कई-कई नए आयाम खोल दिए हैं, कई-कई सवालों के साथ, मसलन, क्या गृहस्थ और ब्रह्मचर्य जीवन का कोई मेल है? इस सवाल का सहज सा जवाब होता है नहीं लेकिन सिंहभूम (झारखंड) के गुड़ाबांदा प्रखंड में सैकड़ों किसान पीढ़ियों से ऐसी दोनों तरह की ज़िंदगी के साथ तालमेल बिठा कर जीवन-बसर करते आ रहे हैं।


तसर (रेशम) कीट का पालन करने वाले शादीशुदा किसान साल में दो बार करीब दो-दो महीने के लिए ब्रह्मचर्यों जैसी ज़िंदगी गुज़ारते हैं। इस दौरान ये मुख्य रूप से अर्जुन और आसन के पेड़ों पर पल रहे तसर के कीड़ों को चींटियों, तसर के कीटों को खाने वाले दूसरे कीड़ों और पक्षियों से बचाते हैं। तसर की खेती के समय वे पत्नियों से दूर होते हैं। उन्हे छूने से भी बचते हैं। यहां तक कि उनके हाथ का बना खाना भी नहीं खाते हैं। ये एग्जॉम्पिल साबित करते हैं कि कृषि कितने गहरे तक भारतीय संस्कारों में बैठी हुई है, जो जहां-तहां बुढ़ापे में ब्रह्मचर्य का पाठ भी पढ़ाने लगती है। रिटायर्ड लोगों के लिए शहरी जीवन में मॉर्निंग वॉक से ज्यादा सेहतमंद साबित हो रहा है अपने घरों की छत पर फल और सब्जियों की खेती में व्यस्त रहना। आम के आम, गुठलियों के दाम यानी मुकम्मल सेहत और निरोग फल-सब्जियों का सेवन एक साथ।