नीति आयोग को ‘थिंक टैंक’ बनाने में अमिताभ कांत ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
अमिताभ कांत भले ही नीति आयोग के दूसरे सीईओ बने हों मगर वह शुरू से ही भारत सरकार के इस थिंक टैंक की प्रक्रिया का हिस्सा थे. सीईओ के रूप में कार्यभार संभालने के साथ ही उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार के लक्ष्य को ध्यान में रखकर नीतियां बनानी शुरू कर दीं.
साल 2016 में भारत सरकार के योजना आयोग (Niti Aayog) की जगह लेने वाले नीति आयोग के दूसरे मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) अमिताभ कांत का कार्यकाल 6 साल बाद आखिरकार 30 जून को समाप्त होने जा रहा है.
1980 बैच के केरल कैडर के आईएएस अधिकारी कांत को 2016 में नीति आयोग का सीईओ बनाया गया था. 2018 में कार्यकाल समाप्त होने से पहले ही उन्हें एक साल का सेवा विस्तार दे दिया गया था.
इसके बाद जब वह 30 जून, 2019 में रिटायर होने वाले थे तब एक बार फिर उन्हें दो साल का सेवा विस्तार दे दिया गया था.
हालांकि, अब स्वच्छ भारत मिशन का नेतृत्व करने वाले और 1981 बैच के उत्तर प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी परमेश्वरन अय्यर की
नीति आयोग के सीईओ के रूप में घोषणा होने के साथ ही यह साफ हो चुका है कि कांत 30 जून को रिटायर हो रहे हैं.
नीति आयोग के सीईओ के रूप में 6 साल और अपने चार दशक के सिविल सेवा अधिकारी के रूप में कांत को कई सरकारी कार्यक्रमों को सफल बनाने का क्रेडिट दिया जाता है. इन कार्यक्रमों में इंक्रेडिबल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और गॉड्स ओन कंट्री शामिल हैं.
नीति आयोग की दिशा तय करने में निभाई बड़ी भूमिका:
अमिताभ कांत भले ही नीति आयोग के दूसरे सीईओ बने हों मगर वह शुरू से ही भारत सरकार के इस थिंक टैंक की प्रक्रिया का हिस्सा थे. सीईओ के रूप में कार्यभार संभालने के साथ ही उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार के लक्ष्य को ध्यान में रखकर नीतियां बनानी शुरू कर दीं.
पिछले 7 वर्षों में, नीति आयोग कई विषयों पर रिपोर्ट और लक्ष्य लेकर आया है जिसमें 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करना, 2024 में एक साथ चुनाव कराना, 2030 तक इलेक्ट्रिक वाहनों में 100 प्रतिशत बदलाव, 2030 तक एक राष्ट्र, एक स्वास्थ्य प्रणाली की नीति लाना, जो एलोपैथी, होम्योपैथी और आयुर्वेद का एक प्रणाली में विलय कर देगी, देश में निवेश दर को सकल घरेलू उत्पाद के 29 प्रतिशत से बढ़ाकर 2022 तक 36 प्रतिशत करना और भारत को 2022 तक कुपोषण मुक्त बनाना आदि।
हालांकि, इसमें से कई विषय विवादित बने हुए हैं तो कई लक्ष्यों को लोग अत्यधिक महत्वाकांक्षी करार देते हैं. इसके बावजूद कांत को मौजूदा सरकार की कई महत्वाकांक्षी नीतियों को सफल बनाने का श्रेय जाता है.
नरेंद्र मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी मेक इन इंडिया योजना को सफल बनाने में भी कांत की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. यही कारण है कि उन्हें देश के प्रभावशाली नीति निर्माताओं में से एक माना जाता है.
आधुनिक युग के साथ कदमताल मिलाते हुए बदलाव के नेतृत्वकर्ता कहे जाने वाले कांत को देश में डिजिटल पेमेंट्स को भी लोकप्रिय बनाने का श्रेय दिया जाता है.
भारत सरकार के बेहद सफल कार्यक्रमों में से एक ‘अतिथि देवो भव:’ का आइडिया तैयार करने का क्रेडिट भी नीति आयोग कांत को देता है, जिसमें देश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए ट्रेन से लेकर टैक्सी चालक, टूरिस्ट गाइड और प्रवासी अधिकारियों तक को शामिल किया गया था.
भारत सरकार के औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग के सचिव के रूप में कांत ने 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' (Ease of Doing Business) कार्यक्रम को संचालित किया, जिससे राज्यों की रैंकिंग निर्धारित करने की शुरुआत हुई औऱ आज कुछ राज्यों द्वारा अपने जिलों को रैंक करने के लिए उसका अनुकरण किया जा रहा है.
उन्होंने मत्स्य पालन क्षेत्र में नई तकनीक (फाइबरग्लास शिल्प और जहाज़ के बाहर मोटर) की शुरुआत की और समुद्र तट स्तर की नीलामी शुरू की जिससे पारंपरिक मछुआरों को काफी हद तक लाभ हुआ.
विशेष रूप से, कांत ने कोविड -19 महामारी के प्रसार से निपटने के लिए केंद्र द्वारा स्थापित 11 समूहों में से एक अधिकार प्राप्त समूह-3 की अध्यक्षता की थी. समूह ने अंतरराष्ट्रीय सहायता के प्रबंधन सहित महामारी प्रबंधन गतिविधियों के लिए निजी क्षेत्र, गैर-सरकारी संगठनों और अंतरराष्ट्रीय के साथ काम किया था.
इसके अलावा, उन्होंने कई अन्य राष्ट्रीय स्तर की पहलों जैसे कि एसेट मोनेटाइजेशन, नेशनल मिशन फॉर ट्रांसफॉर्मेटिव मोबिलिटी आदि में मदद की है.
अमिताभ कांत का मानना है कि हाल के वर्षों में भारत सरकार द्वारा किए गए आमूलचूल सुधारों ने भारत को आने वाले कई दशकों तक के लिए विकास पथ पर रख दिया है.
केरल में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कलीकट हवाईअड्डे को निजी क्षेत्र की परियोजना के रूप में तैयार किया. इसके साथ ही उन्होंने बीएसईएस पॉवर प्रोजेक्ट और मट्टनचेरी ब्रिज को निजी-सार्वजनिक भागीदारी के तहत विकसित किया.