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एचआईवी पीड़ित 45 बच्चों की जिंदगी संवार रहे सोलोमन राज

एचआईवी पीड़ित 45 बच्चों की जिंदगी संवार रहे सोलोमन राज

Thursday June 13, 2019 , 4 min Read

तमिलनाडु में एचआईवी पीड़ित 45 बच्चों की जिंदगी संवार रहे सोलोमन राज को अप्पा और हजारीबाग में केरल की नन ब्रिटो को जब बच्चे मां कहकर बुलाते हैं, तो उन्हे लगता है, इन मासूमों की देखभाल कर उन्होंने अपना जीवन सार्थक कर लिया है।


chennai

बच्चों के साथ सोलोमन राज



बनाहप्पा (हज़ारीबाग) स्नेहदीप होली क्रॉस आवासीय विद्यालय की एचआईवी पीड़ित एक बच्ची अपनी आंखों में थोड़ा गुस्सा, ढेरों आंसू लिए हुए कहती है- 'मेरी मां बहुत सुंदर थी। मुझे दूध-भात खिलाती थी। उनके नाक में नथुनी थी और वो फूल के छाप वाली साड़ी पहनती थी लेकिन, मेरे पापा 'गंदे' थे। 'गंदा काम' किए थे। इसलिए उनको बीमारी (एड्स) हो गई।


वही 'बीमारी' मेरी मां को भी हो गई और एक दिन मेरी मां मर गई। हम बहुत छोटे थे, तभी पापा भी मर गए। इसके बाद मेरा भाई मर गया और फिर मेरी बहन। मैं अकेली रह गई हूं।' कोई न कोई दर्दनाक दास्तान लिए हुए जनमते ही ऐसे ही अनाथ, एचआईवी पीड़ित 45 मासूमों के पिता सोलोमन राज को वे बच्चे 'अप्पा' कहकर बुलाते हैं। हमारे देश में करीब 1 लाख 20 हजार बच्चे और किशोर एचआईवी संक्रमण से पीड़ित हैं।


यूनिसेफ की एक सर्वे रिपोर्ट ('चिल्ड्रन, एचआईवी और एड्स: द वर्ल्ड इन 2030' ) के मुताबिक, हर 14 सेकेंड में एक बच्चे को एच.आई.वी. एड्स होता है। भारत में 2017 तक करीब 1 लाख 20 हजार बच्चे और किशोर एचआईवी संक्रमण से पीड़ित पाए गए थे। ये दक्षिण एशिया के किसी देश में एचआई‍वी पीड़ितों की सबसे ज्यादा संख्या है। यूनिसेफ ने चेताया है कि अगर इसे रोकने की कोशिशें तेज नहीं की गईं तो 2030 तक हर दिन दुनियाभर में एड्स की वजह से 80 किशोरों की मौत हो सकती है।


तमिलनाडु में अप्पा के दिए ठिकाने (शेल्टर ट्रस्ट) पर दिन बिता रहे एड्स पीड़ित 45 बच्चों की जिंदगी में उजाला थामने वाले सोलोमन राज मानवता की ऐसी मिसाल हैं, जिसका दर्जा ईश्वर से कम नहीं लगता है। पिता अथवा मां की गलती के शिकार ये बच्चे गोद लिए हुए हैं, जिनका इस दुनिया में अप्पा के सिवा और कोई अपना नहीं है। ऐसे बच्चों के लिए एक ट्रस्ट बनाकर अप्पा उनकी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। ट्रस्ट की ओर से ही इन बच्चों की शिक्षा, खानपान और स्वास्थ्य की देखभाल की जाती है। अप्पा उन्हें मेडिकल केयर, क्राफ्ट में ट्रेनिंग, आर्ट्स, डांस और कंप्यूटर की शिक्षा दिलाने के साथ ही उनकी हर सुविधा-असुविधा का बराबर ध्यान रखते हैं।





सोलोमन राज बताते हैं कि शादी के आठ साल बाद भी जब उनका कोई बच्चा नहीं हुआ, तो उन्होंने किसी एचआईवी पॉजिटिव बच्चे को गोद लेने का मन बनाया। जिन दिनों वह ऐसे किसी बच्चे को गोद लेने की योजना बना रहे थे, तभी पत्नी ने उनके बच्चे को भी जन्म दे दिया, जिससे कुछ वक़्त के लिए उन्होंने कोई एचआईवी पॉजिटिव बच्चे को गोद लेने का संकल्प स्थगित तो कर दिया लेकिन उनका अजीबोगरीब द्वंद्व में उलझा मन अशांत बना रहा। उन्हे हमेशा लगता कि अपना संकल्प स्थगित कर उन्होंने बहुत गलत किया है। उन्हे ऐसा नहीं करना चाहिए।


सोलोमन कहते हैं कि अपने संकल्प की राह पर चलकर आज इन 45 बच्चों के बीच बड़ी खुशी मिलती है। ये बच्चे उन्हे जब अप्पा कह कर बुलाते हैं, उन्हे अपने काम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए अंदर से बड़ा बल मिलता है। इनका संबल बनकर जीना मेरे लिए किसी इबादत से कम नहीं है। इन 45 बच्चों में से कई किशोरवय हो चुके बेसहारा छात्र 11वीं, 12वीं क्लास तक पहुंच चुके हैं। उनमें से सात ग्रैजुएशन की पढ़ाई कर रहे हैं। उनमें से एक बच्ची तो डॉक्टर बनकर लोगों की मदद करना चाहती है। इन बच्चों को संभालने में सोलोमन को तरह तरह से आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। खासकर जब कोई बच्चा बीमार हो जाता है, उसका समुचित दवा-इलाज बमुश्किल संभव हो पाता है। ऐसी स्थितियां उनके लिए चिंताजनक हो जाती हैं।


अप्पा की तरह ही 2005 से एड्स पीड़ितों के लिए कार्यरत एवं हजारीबाग के गांव बनहप्पा में एचआईवी पीड़ित बच्चे संभालने वाली केरल की नन सिस्टर ब्रिटो, जो अब झारखंड में रहकर एड्स पीड़ितों के बीच काम कर रही हैं, बताती हैं कि उन्होंने सितंबर 2014 में 40 बच्चों के साथ स्नेहदीप होली क्रॉस आवासीय विद्यालय खोला था, जिसमें हज़ारीबाग के अलावा कोडरमा, चतरा, गिरिडीह, धनबाद आदि ज़िलों के एचआईवी पॉज़िटिव बच्चों का भी दाखिला लिया गया था। अब तो इस स्कूल में कई अन्य ज़िलों के एचआईवी पीड़ित बच्चे भी पढ़ रहे हैं। स्कूल के बच्चे जब उन्हे 'मां' कहकर बुलाते हैं, तो उन्हे लगता है, उन्होंने अपना जीवन सार्थक कर लिया है।