नौकरी छोड़ कर बेकार फूलों से अगरबत्ती बना रहे इंजीनियर रोहित कुमार
बीटेक करने के बाद फरीदाबाद (हरियाणा) के रोहित प्रताप क्वालिटी कंट्रोलर की नौकरी छोड़ बासी फूलों की अगरबत्ती के स्टार्टअप से दो महीने में ही इतने आत्मविश्वास में आ गए हैं कि अब ऋषिकेश के बाद वह उत्तराखंड के बाकी तीर्थ स्थलों में भी स्थानीय प्रशासन के सहयोग से अपने उद्यम का विस्तार करने जा रहे हैं।
फरीदाबाद (हरियाणा) के रहने वाले युवा रोहित प्रताप इलेक्ट्रॉनिक्स में बीटेक करने के बाद एक कंपनी में क्वालिटी कंट्रोलर की सर्विस ठुकराकर इस समय गंगा किनारे के बासी फूलों से अगरबत्ती बनाने की फैक्ट्री चला रहे हैं। उन्होंने अभी पहाड़ी तीर्थ नगरी ऋषिकेश (उत्तराखंड) को अपना शुरुआती कार्यक्षेत्र बना रखा है। आगे वह राज्य के चारधाम मार्गों से जुड़े सभी तीर्थ स्थलों तक अपने काम का विस्तार करना चाहते हैं। उनके अगरबत्ती उद्योग में तमाम महिलाओं को रोजगार मिला हुआ है। उनका मानना है कि इस काम से तीर्थ नगरी का पर्यावरण प्रदूषण कम करने में भी मदद मिल रही है। ऋषिकेश नगर निगम भी उनके काम में हाथ बंटा रहा है।
रोहित प्रताप का बचपन से ही यहां आना-जाना रहा है। एक दिन जब उन्होंने देखा कि ऋषिकेश के त्रिवेणी घाट पर गंगा में पूजा के बासी फूल भारी मात्रा में फेके जा रहे हैं, तभी उनके दिमाग में उन फूलों के सार्थक इस्तेमा करते हुए पर्यावरण प्रदूषण घटाने का आइडिया आया। यद्यपि उस समय वह एक बड़ी कंपनी में बेहतर जॉब कर रहे थे, और भी कई कंपनियों से उन्हे और बड़े पैकेज पर जॉब के ऑफर्स मिल रहे थे लेकिन वह सब कुछ छोड़कर अपने पैरों पर खड़े होने दृढ़ संकल्प लिया। सबसे पहले उन्होंने फूलों से अगरबत्ती बनाने का प्रशिक्षण लिया।
इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए बजट का जुगाड़ किया और दो माह पहले अप्रैल 2019 में लगभग तीन लाख की लागत से ऋषिकेश के गंगा नगर में किराये पर मकान लेकर 'ओडिनी प्रोडक्ट प्राइवेट लिमिटेड' नाम से खुश्बूदार अगरबत्तियों का प्रॉडक्शन शुरू कर दिया। उनकी फैक्ट्री में पूजा के बासी फूलों की रिसाइकिलिंग होने लगी। तीर्थ नगरी के बासी फूल बटोरने में ऋषिकेश नगर निगम ने भी उन्हे एक वाहन मुहैया कर हाथ बंटाया। इस समय तीर्थ नगरी के दर्जन भर मंदिरों से बासी फूल रोजाना इकट्ठे कर पहले उनकी रिसाइकिलिंग, फिर अगरबत्तियों का प्रॉडक्शन किया जा रहा है।
रोहित प्रताप का कहना है कि तीर्थ यात्री और श्रद्धालु रोजाना भारी मात्रा में ऋषिकेश के मंदिरों में जो फूल चढ़ाते हैं, उन्हे या तो खुले में फेंक दिया जाता था अथवा गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता था। इससे तीर्थ नगरी में गंदगी के साथ ही गंगा में प्रदूषण भी बढ़ता जा रहा था। उनके काम से अब इस पर धीरे धीरे लगाम लग रही है। दर्जन भर मंदिरों के अलावा तीर्थ नगरी तमाम पुष्प विक्रेताओं के भी लगभग दो सौ किलो बासी फूल कच्चे माल के रूप में उनकी फैक्ट्री में रोजाना जमा हो जाते हैं। महिला कर्मचारी उनमें से उपयोगी फूलों की बारीकी से छंटनी करती हैं।
उनकी धुलाई कर सुखाने के बाद मशीन से पीसकर उनके पाउडर की परफ्यूमिंग आदि होती है। उसके बाद 'नभ अगरबत्ती' और 'नभ धूप' नाम से उनका प्रॉडक्ट फिर उन्ही पूजा स्थलों के साथ ही तीर्थ नगरी की दुकानों, आवासीय परिसरों में बिक जाता है। बचा-खुचा फूलों का कचरा भी इस्तेमाल कर लिया जाता है। उसका वर्मी कम्पोस्ट बनाकर जैविक खेती करने वाले क्षेत्र के किसानों को बेच दिया जाता है। उनकी फैक्ट्री में फिलहाल चार महिलाओं सहित कुल छह लोग स्थायी रूप से काम कर रहे हैं। आगे वह इसी तरह हरिद्वार, कोटद्वार, नैनीताल, गंगोत्री, यमुनोत्री तक अपने काम का विस्तार करना चाहते हैं।