सिंगल-यूज प्लास्टिक कचरे से दिल्ली में इको-फ्रेंडली कम लागत वाले यूरिनल का निर्माण कर रहे हैं अश्वनी अग्रवाल
पूरे भारत में और यहां तक कि नई दिल्ली जैसे महानगरों में, लोगों को पब्लिक में पेशाब करते हुए देखना एक आम बात है। यह स्थिति विशेष रूप से सार्वजनिक स्थानों पर स्वच्छता सुविधाओं की कमी के चलते बढ़ी है। केंद्र और राज्य सरकारों के प्रयासों के बावजूद, इस क्षेत्र में बहुत ज्यादा सुधार नहीं हुआ है। उदाहरण के लिए, 18.6 मिलियन की आबादी के साथ नई दिल्ली में पुरुषों के लिए केवल 3,000 शौचालय और महिलाओं के लिए 30 शौचालय हैं।
हालांकि, दिल्ली कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड कॉमर्स से फाइन आर्ट्स में ग्रेजुएट अश्विनी अग्रवाल जैसे कई लोग और एनजीओ इस मुद्दे को हल करने के लिए इनोवेटिव सलूशन्स के साथ आने की कोशिश कर रहे हैं। अश्वनी और उनकी टीम के सदस्य करण सिंह (म्यूजीशियन) और हिमांशु सैनी (फोटोग्राफर) को सार्वजनिक मूत्रालय और शौचालय स्थापित करके सार्वजनिक स्वच्छता के लिए एक स्वच्छ और सुरक्षित वातावरण बनाने का आइडिया आया। उन्होंने 2014 में नई दिल्ली के द्वारका में बेसिक शिट शुरू किया।
यह सब तब शुरू हुआ जब अश्वनी ने अपने कॉलेज में स्वच्छता पर एक कॉलेज प्रोजेक्ट लिया। इस विशेष विषय पर रिसर्च के दौरान, उन्होंने महसूस किया कि यूरिनल की कमी के कारण शहर में स्वच्छता की स्थिति कितनी गंभीर है, जिसके कारण लोग खुले में पेशाब करते हैं।
Indiegogo की रिपोर्ट के मुताबिक इसी मुद्दे पर बोलते हुए अश्विनी ने कहा,
“मैं विशेष रूप से सार्वजनिक पेशाब के मुद्दे को संबोधित करना चाहता था, जिसने मुझे और मेरे आसपास के अन्य लोगों को हमारे दैनिक जीवन में बहुत प्रभावित किया। मैंने महसूस किया कि अगर सड़कों पर पेशाब करने वाले स्थानों पर यूरिनल लगाए जाएं, तो लोग उनका उपयोग जरूर करेंगे। मुझे कम लागत वाले, आसान और पोर्टेबल सलूशन की आवश्यकता थी, इसलिए मैंने इसे बनाया। मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि हमें समाज के बीच स्वच्छता के महत्व को बढ़ाने में मदद करें और एक बदलाव लाने में योगदान दें।”
इसके अलावा, शुरुआती सपोर्ट की बात करें तो, अश्विनी ने अपनी टीम के साथ ABD की कंपटीशन में भाग लिया। कंपटीशन का विषय क्षेत्र के लिए एक सैनिटरी सलूशन खोजने के बारे में था, जिसमें बेसिक शिट टॉप थ्री एंट्रीज के रूप में उभरा और उसन अपने प्रोजेक्ट के लिए कुछ वित्तीय सहायता हासिल की। इको-फ्रेंडली टॉयलेट, PeePee, खुले में और लैंडफिल में कचरे के रूप में डंप किए गए सिंगल-यूज प्लास्टिक से बनाया गया है। प्रत्येक PeePee शौचालय 9,000 प्लास्टिक की बोतलों से बनाया गया है, इससे गंध भी नहीं आती और इसे साफ करने के लिए पानी की आवश्यकता भी नहीं होती है और यहां तक कि इसके लिए सीवेज कनेक्शन की भी जरूरत नहीं होती है।
एक शौचालय के निर्माण में लगभग 12,000 रुपये का खर्च आता है, और इसे दो घंटे के भीतर साइट पर स्थापित किया जा सकता है। इंटीरियर डिजाइनिंग और ग्राफिक डिजाइनिंग के क्षेत्र में काम कर रहे डिजाइनर अश्वनी अपने काम से कमाए गए पैसों का इस्तेमाल अपने स्वच्छता परियोजना के लिए करते हैं। शौचालय में दो इंटीग्रेटेड यूरीन टैंक हैं जिनकी क्षमता 200 लीटर है, जिसमें यूरीन इकट्ठी होती है। इंस्टॉलेशन के दिन से औसतन, प्रत्येक टैंक हर दिन 150 लीटर यूरीन इकट्ठा करता है, जिसे बाद में सक्रिय कार्बन के साथ स्थिर और शुद्ध किया जाता है जो मूत्र से विषाक्त गुणों को हटाने में मदद करता है।
एफर्ट फॉर गुड की रिपोर्ट के मुताबिक, एक बार जब टैंक फुल हो जाते हैं तो यूरीन को बाद में यूरिया निकालने के लिए रिसाइकल किया जाता है और कृषि प्रयोजनों के लिए उसका उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, यह प्रक्रिया आस-पास के निकायों में अमोनिया अपशिष्टों की संख्या को कम करने में भी मदद करती है। अभी के लिए, अश्वनी 100 PeePee यूरिनल का निर्माण करना चाहता हैं, जिन्हें दिल्ली की सड़कों पर स्थापित किया जाएगा।