कहानी उस शख्स की जिसके फ्रॉड ने अमेरिका का बैंकिंग सिस्टम हिला दिया, पोंजी स्कीम का 'बाप'
चार्ल्स पोंजी के नाम पर पोंजी स्कीम का नाम पड़ा. इस शख्स ने अमेरिका में एक ऐसा फ्रॉड किया था, जिससे वहां का बैंकिंग सिस्टम हिल गया था. आइए जानते हैं इस शख्स की कहानी.
पोंजी स्कीम (Ponzi Scheme), ये नाम तो आपने अक्सर सुना होगा. कभी सहारा ने इसका इस्तेमाल कर के लोगों को चूना लगाया तो कभी शारधा स्कैम के जरिए लोगों को लूटा गया. यूपी से लेकर महाराष्ट्र समेत तमाम राज्यों में पोंजी स्कीम के कई किस्से हुए हैं. बहुत से लोगों ने इनकी वजह से भारी नुकसान झेला, तो कइयों का सब कुछ बर्बाद हो गया. ऐसे भी वाकये हुए हैं जब पोंजी स्कीम में बर्बाद होने की वजह से लोगों ने आत्महत्या कर ली.
क्या आपने कभी ये सोचा है कि इसे पोंजी स्कीम ही क्यों कहते हैं? दरअसल, इसके पीछे एक लंबी कहानी है और जो इस कहानी का मुख्य किरदार है, उसी के नाम पर इस तरह के फ्रॉड का नाम पोंजी स्कीम रखा गया है. इस किरदार का नाम है चार्ल्स पोंजी (Charles Ponzi), जिसने आज से करीब 100 साल पहले ऐसा स्कैम किया था. मार्च 1882 में इटली में जन्मे चार्ल्स को पोंजी स्कीम का 'बाप' भी कहा जाता है.
इस कहानी की शुरुआत होती है 1903 में, जब इटली का रहने वाला चार्ल्स पोंजी अमेरिका गया. उसे जुएं और पार्टी की ऐसी गंदी आदत थी कि उसमें सब कुछ लुटा देता था. अमेरिका जाते वक्त उसे घर से जो पैसे मिले थे, उसे भी उसने जुएं में उड़ा दिया. लेकिन पोंजी का दिमाग बहुत तेज था. तभी तो अमेरिका जाने के कुछ ही समय में उसने अंग्रेजी बोलना सीख लिया. कई सारी नौकरियां भी कीं. कहीं बर्तन धोए, कहीं वेटर बना, लेकिन चोरी और ग्राहकों से फ्रॉड की आदत के चलते उसे नौकरी से निकाल दिया गया.
अमेरिका छोड़कर कनाडा जा पहुंचा पोंजी
जब अमेरिका में उसकी दाल नहीं गली तो वह 1907 में कनाडा चला गया. वहां उसे एक बैंक (Banco Zarossi) में नौकरी मिल गई. उसे नौकरी मिलने की सबसे बड़ी वजह ये थी कि उसे तीन भाषाएं आती थीं. वह अंग्रेजी, इटैलियन और फ्रैंच, तीनों भाषाएं बोल सकता था. इसी बैंक से उसे पोंजी स्कीम का आइडिया मिला.
ये बैंक उस वक्त निवेशकों को करीब 6 फीसदी का ब्याज दिया करता था, जबकि बाकी बैंक 2-3 फीसदी ही ब्याज दे पाते थे. दरअसल, ये बैंक सिर्फ लोगों से पैसे लिए जा रहा था. पुराने निवेशकों को जो रिटर्न दिया जाता था, वह नए निवेशकों से लिए पैसों से दिया जाता था. चार्ल्स पोंजी को ये सब दिख रहा था और जिसका डर था वही हुआ. एक दिन बैंक की पोल खुल गई और सब कुछ बर्बाद हो गया. बैंक का मालिक Louis Zarossi बहुत सारा पैसा लेकर मैक्सिको भाग गया.
कई बार खाई जेल की हवा
एक बार फिर चार्ल्स पोंजी सड़क पर आ गया. उसके पास एक भी पैसा नहीं बचा. इसी बीच उसने एक चेक पर फर्जी साइन कर के कुछ पैसे निकालने की कोशिश की और पकड़ा गया. इसके बाद उसे 3 साल की जेल हुई.
सजा काटकर जब वह बाहर आया तो उसने इटली के प्रवासियों को गैर-कानूनी तरीके से अमेरिका में घुसाना शुरू कर दिया. खैर, इस बार भी किस्मत ने उसका साथ नहीं दिया और वह पकड़ा गया. उसे एक बार फिर से 2 साल की जेल हुई.
कई दूसरे बिजनेस में आजमाया हाथ
सजा काटकर जब पोंजी बाहर आया तो वह बोस्टन चला गया और वहां एक माइनिंग कंपनी में नर्सिंग की नौकरी मिल गई. उसने सोचा क्यों ना वाटर और पावर की दूसरी कंपनियों को सप्लाई की जाए और एक बिजनेस खड़ा किया जाए. खैर, वहां एक हादसा हो जाने की वजह से पोंजी का ये प्लान भी काम का साबित नहीं हुआ.
इसके बाद चार्ल्स ने इंटरनेशनल ट्रेड मैगजीन का बिजनेस करने की सोची. उसे लगा कि इसमें कंपनियां विज्ञापन देंगी और उसे तगड़ा फायदा होगा. उसने 1917 में अपना ये आइडिया यूरोप के अपने सभी कॉन्टैक्ट्स को बताना शुरू कर दिया. उसे विज्ञापन तो नहीं मिला, लेकिन स्पेन की एक कंपनी से ऐसा लेटर मिला, जिसने सब बदल दिया. उस लेटर के लिफाफे में एक पेपर था, जिस पर लिखा था इंटरनेशनल रिप्लाई कूपन यानी आईआरसी. बस यहीं से कहानी ने एक नया मोड़ ले लिया.
आईआरसी को बनाया बिजनेस आइडिया
उस दौर में जब दो देशों के बीच में खत के जरिए कोई बात करनी होती थी तो कंपनी आईआरसी का इस्तेमाल करती थी. कंपनी अपने लेटर के साथ एक आईआरसी भेजती थी, ताकि उस पर सामने से रिप्लाई आ सके और सामने वाली पार्टी को इसके लिए कोई पैसा खर्च ना करना पड़े. जो आईआरसी भेजी जाती थी, उसकी मदद से रिप्लाई भेजा जाता था. चार्ल्स पोंजी ने इसकी स्टडी शुरू कर दी और फिर पता चला कि इटली में इसकी कीमत कम है, जबकि अमेरिका में अधिक. यहां से उसे आइडिया आया कि क्यों ना इसे इटली से खरीदकर अमेरिका में बेचा जाए और मुनाफा कमाया जाए. ये सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन यह ऐसी खामी थी, जिसे चार्ल्स बिजनेस आइडिया में बदलना चाहता था.
तगड़े रिटर्न का वादा कर के जुटाए पैसे
अब बहुत सारे आईआरसी खरीदने के लिए जरूरत थी ढेर सारे पैसों की. पैसों के लिए उसने सबसे पहले बैंकों का रुख किया, लेकिन किसी भी बैंक ने चार्ल्स पोंजी को पैसे देने से मना कर दिया. इसके बाद उसके पास बस एक ही विकल्प बचा कि लोगों से पैसे लिए जाएं. उसने अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और आम जनता को इसके बारे में बताना शुरू किया और उनसे पैसे जुटाने लगा. चार्ल्स ने वादा किया कि वह निवेशकों को 45 दिन में 50 फीसदी रिटर्न देगा. वहीं 90 दिन में 100 फीसदी रिटर्न यानी पैसा दोगुना करने का भी वादा किया गया.
सिर्फ 6 महीने में 2.5 मिलियन डॉलर का निवेश
चार्ल्स ने तो इसके लिए सिक्योरिटी एक्सचेंज कंपनी नाम से एक कंपनी तक शुरू कर दी, ताकि लोग उसे गंभीरता से लें. इस कंपनी के लिए उसने कई एजेंट भी हायर किए, जिन्हें निवेश लाने पर अच्छा कमीशन दिया जाता था. आइडिया काम कर गया. सिर्फ 6 महीनों में ही लोगों ने 2.5 मिलियन डॉलर का निवेश कर दिया. बिजनेस इतना बढ़ा कि उसने इंग्लैंड और न्यू जर्सी में ब्रांच तक खोलनी शुरू कर दीं.
तो क्या वाकई आईआरसी से मुनाफा हो रहा था?
यहां एक बड़ा सवाल ये है कि आखिर लोग निवेश क्यों कर रहे थे? दरअसल, चार्ल्स पोंजी ने जैसा वादा किया था, उसी के मुताबिक उसने निवेशकों को तगड़ा रिटर्न दिया भी. तो क्या वाकई आईआरसी बेचने में इतना मुनाफा था, जो सिर्फ चार्ल्स को दिखा? बिल्कुल नहीं, उसने आईआरसी खरीदने-बेचने का काम तो कभी किया ही नहीं. दरअसल, उसने Banco Zarossi बैंक वाले फॉर्मूले पर काम करना शुरू कर दिया. वह नए निवेशकों से लिए पैसों को रिटर्न के रूप में पुराने निवेशकों को देने लगा. लोगों का भरोसा बढ़ता गया और इसी के साथ लोग तेजी से चार्ल्स की कंपनी में निवेश करने लगे.
लोग री-इन्वेस्ट करने लगे पैसे
तगड़ा रिटर्न मिलने की वजह से लोगों की भी लालच इतनी बढ़ी कि उन्होंने अपने निवेश पर रिटर्न लेने के बजाय उसे चार्ल्स के बिजनेस में रीइन्वेस्ट करना शुरू कर दिया. बोस्टन की पुलिस और सरकारी अधिकारियों में से करीब 70 फीसदी लोगों ने भी चार्ल्स के इस फर्जीवाड़े में पैसे लगाए थे. चार्ल्स के हाथ तो जैसे कुबेर का खजाना लग गया था. उसने भी दोनों हाथों से दौलत लुटाई. महंगा घर खरीदा, उस वक्त की सबसे महंगी कार खरीदी और लग्जरी अंदाज में जिंदगी जीता रहा. कुछ लोगों को शक हुआ कि यह सब फर्जीवाड़ा है, लेकिन चार्ल्स पोंजी उस वक्त इतना पावरफुल हो चुका था कि वह सबको चुप करा देता था.
और फिर एक दिन हो गया पर्दाफाश
साल 1919-20 के दौरान द बोस्टन पोस्ट को चार्ल्स पोंजी के बिजनेस पर शक हुआ, तो उसने इसकी छानबीन शुरू की. पता चला कि जितना पैसा चार्ल्स कमा चुका है, उसके हिसाब से सर्कुलेशन में करीब 160 मिलियन आईआरसी होनी चाहिए. वहीं उस वक्त सर्कुलेशन में सिर्फ 27 हजार आईआरसी थीं. यूएस पोस्टल ऑफिस ने भी कनफर्म किया तो बल्क में किसी ने आईआरसी नहीं खरीदी हैं. उसके बाद चार्ल्स पोंजी के इस फर्जीवाड़े का पर्दाफाश हो गया. खबर बाहर आते ही तमान निवेशक अपने सारे पैसे एक साथ मांगने लगे.
पोंजी का पैसा अलग-अलग बैंकों में जमा था, तो उन पर भी असर दिखा. बैंकों के पास इतना पैसा नहीं था कि वह सबको पैसे एक ही बार में लौटा सकें. नतीजा ये हुआ कि अमेरिका का बैंकिंग सिस्टम हिल गई. कई बैंक कोलैप्स हो गए. पोंजी का घर समेत तमाम असेट्स बेचकर पैसे रिकवर करने की कोशिश की गई, लेकिन सिर्फ 30 फीसदी पैसा ही रिकवर हो पाया. यानी जिसने भी चार्ल्स पोंजी की स्कीम में पैसे लगाए थे, उसके पैसे दोगुने-तीन गुने होना तो दूर की बात, बस एक तिहाई ही बचे. चार्ल्स पोंजी के नाम पर ही इस तरह के तमाम फ्रॉड को पोंजी स्कीम कहा जाता है.
रूह कंपा देने वाली मिली मौत
कहते हैं कि अपने कर्मों की सजा इंसान को यहीं भुगतनी होती है. चार्ल्स पोंजी के मामले में ऐसा देखने को भी मिला. पहले तो 1920 में उसका फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद उसे 5 साल की जेल हुई. उसके बाद जब वो बाहर आया तो फिर से कुछ मामले में उसे 7-9 साल की जेल हो गई. बीच में वह जमानत पर बाहर आया और हुलिया बदलकर देश से भागने की कोशिश की, लेकिन पकड़ा गया. आखिरकार 1934 में वह अपनी सजा काटकर जेल से निकला तो उसे इटली डिपोर्ट कर दिया गया. 1937 में उसकी पत्नी ने भी उसे तलाक दे दिया और वह बोस्टन छोड़कर नहीं गई. अपनी जिंदगी के आखिरी दिन चार्ल्स पोंजी ने बेहद गरीबी में गुजारे. 1941 में उसे एक हर्ट अटैक पड़ा था, जिसके बाद वह बहुत कमजोर हो गया. उसकी आंखों को रोशनी भी जाने लगी. 1948 तक उसे दिखना बिल्कुल ही बंद हो गया. इसके बाद उसे ब्रेन हैमरेज हुआ, जिसकी वजह से उसके बाएं हाथ और पैर को लकवा मार गया. 18 जनवरी 1949 को चार्ल्स पोंजी की मौत एक चैरिटी अस्पताल में हुई.