राजस्थान के इस गांव को 24 साल के मेडिकल स्टूडेंट ने दिया बिजली और पानी का तोहफ़ा
राजस्थान और मध्य प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित गांव राजघाट मुख्यधारा के समाज से अलग हो चुका है। कच्चे रास्तों और पथरीली ज़मीन से पटे इस गांव में पक्की सड़क एक सपने की तरह है। यहां के लोग पानी की कमी और बिजली की अनुपलब्धता के लिए लंबे समय से परेशान हैं। उनके पास जीवन जीने के लिए मूलभूत सुविधाएं तक मौजूद नहीं है।
24 साल के अश्विनी पाराशर जब इस क्षेत्र की कठिनाइयों और यहां के लोगों की तकलीफ़ से वाक़िफ़ हुए तो उन्होंने फ़ैसला लिया कि वह राजघाट गांव में रहने वाले लोगों के जीवन स्तर को सुधारने की पूरी कोशिश करेंगे।
अश्विनी ने जयपुर के सवई मान सिंह मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई की है। वह 2016 में पहली बार राजघाट गांव गए थे और उन्होंने दीवाली के मौक़े पर वहां के ज़रूरतमंद लोगों को मिठाई बांटी थी। वहां के ख़राब हालात देखकर वह आश्चचर्यचकित रह गए थे। गांव में हैंडपंप के अलावा पानी का स्रोत थी चंबल नदी, जो बुरी तरह से प्रदूषित थी।
अश्विनी उस समय के हालात बयान करते हुए बताते हैं,
"मैंने चंबल नदी में जानवरों के शव तैरते हुए देखे। चूंकि इलाके के लोगों के पास पानी का कोई और स्रोत नहीं था, इसलिए वे गंदा और प्रदूषित पानी इस्तेमाल करने के लिए मजबूर थे।"
बिजली न होने की वजह से घरों में रात का खाना भी दिन में ही बन जाया करता था और बच्चों को अपनी पढ़ाई भी सूरज ढलने से पहले ही ख़त्म करनी होती थी। खुले में शौच करने के लिए लोग विवश थे क्योंकि गांव में शौचालय थे ही नहीं।
अपने इस दौरे के बाद अगले ही साल अश्विनी ने अपनी दोस्तों के सहयोग से सरकारी विभागों से सरकारी योजनाओं के लाभ गांव तक पहुंचाने की अपील करना शुरू किया। उन्होंने पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट के अधिकारियों, डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर और प्रमुख सचिव से संपर्क किया और अपनी अर्ज़ी उनके सामने रखी। उन्होंने प्रदेश के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय के पास पत्र भी भेजे।
जब इस पत्राचार से उन्हें कोई सकारात्मक परिणाम हासिल नहीं हुआ, अश्विनी ने #SaveRajghat नाम से एक सोशल मीडिया कैंपेन शुरू किया और अपनी नेक मुहिम से लोगों को जोड़ने का प्रयास शुरू किया। उन्होंने 2019 में हाई कोर्ट में राजस्थान सरकार के ख़िलाफ़ भारतीय संविधान के आर्टिकल 21 में वर्णित जीवन के अधिकार को आधार बनाते हुए जनहित याचिका दायर की। फ़ेसबुक और ट्विटर के माध्यम से उनके कैंपेन को अच्छी प्रतिक्रिया मिलनी शुरू हुई।
अपने प्रयासों की बदौलत अश्विनी गैर-सरकारी संगठनों और व्यक्तिगत इकाईयों से फ़ंड जुटाने में क़ामयाब हुए। आज, सभी 100 घरों में बिजली है और अधिकतर रहवासियों के पास पीने का शुद्ध पानी और शौचालयों की सुविधा है।
अश्विनी ने योरस्टोरी को बताया,
"कई व्यक्ति और संगठन मदद के लिए आगे आए। कर्मा कनेक्ट नाम के अहमदाबाद के एनजीओ ने उनके लिए एक क्राउडफ़ंडिंग कैंपेन चलाया। जो भी फ़ंड इकट्ठा हुआ, उसकी मदद से वॉटर फ़िल्टर्स लगवाए गए। दिल्ली के एक नामचीन व्यवसाई सुरेंद्र जितवानी ने गांव में सोनर पैनल्स लगाने के लिए पैसे दिए। इसके बाद इंडियन नॉर्वेइयन कम्युनिटी ने बिजली के खंभे और मीटर लगवाने के लिए संसाधन उपलब्ध करवाए।"
अश्विनी की जनहित याचिका के बाद सरकार ने राजघाट में आठ सामुदायिक शौचालय बनवाए। हाल में, सरकार पानी के लिए पाइपलाइन बिछवाने के लिए प्रयासरत है।
राजघाट के रहने वाले एक नागरिक रामचंद्रन का कहना है कि उनका परिवार पीने के शुद्ध पानी की कमी से जूझ रहा था और उनके बच्चे स्कूल के बाद पढ़ाई नहीं कर पाते थे, लेकिन अश्विनी के प्रयासों के बाद उनके हालात सुधर गए हैं।
गांव में मूलभूत सुविधाओं के अभाव के चलते गांव में शादियां होनी ही बंद हो गई थीं क्योंकि आस-पास के गांव ऐसे गांव में अपनी लड़कियों की शादी ही नहीं करना चाहते थे। इस वजह से गांव में कुंवारे लोगों की संख्या बहुत बढ़ गई थी। पिछले 10 सालों में इस गांव में सिर्फ़ दो शादियां हुई थीं। जबकि, कुछ हफ़्तों पहले ही गांव में वीरीसिंह और उर्मिला की शादी हुई है।
अश्विनी ने बताया कि अपनी पढ़ाई और रिसर्च के साथ इस मुहिम को समय देना बहुत ही चुनौतीपूर्ण था। वह कहते हैं,
"मैं सिर्फ़ हफ़्ते के अंत में कैंपेन को समय दे पाता था और बाक़ी पूरे हफ़्ते मैं अपनी पढ़ाई और रिसर्च करता था। बहुत से लोगों ने मुझसे कहा कि मेरी कोशिश फ़ुज़ूल है, लेकिन मैंने हौसला नहीं छोड़ा।"
अश्विनी हाल में एमडी की पढ़ाई के लिए प्रवेश परीक्षा पास करने की तैयार कर रहे हैं।