बेसहारों का सहारा बना चेन्नई का यह ऑटोवाला, हर दिन बचा रहा एक बेघर की जान
ज़रूरतमंदों को शेल्टर होम तक ले जाने में मदद कर रहा चेन्नई का यह शख्स, अब तक कर चुका है 320 लोगों की मदद
सड़क या रास्ते में घूमते, सोते, गंदे कपड़े पहने बेसहारा और बेघर लोग आपने भी कई देखे होंगे। दुनिया में बहुत कम लोग होते हैं जो बेसहारा और बेघर लोगों के लिए कुछ करना चाहते हैं। हालांकि कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो बेघरों की मदद करने की चाह रखते हैं। ऐसे ही एक शख्स चेन्नई निवासी डी. अरुल राज हैं।
डी. अरुल राज हर दिन एक बेसहारा शख्स को बचाते हैं और उसे किसी शेल्टर होम ले जाते हैं। अरुल पेशे से एक ऑटोरिक्शा चालक हैं। वह 4 घंटे सुबह और 4 घंटे शाम में ऑटोरिक्शा चलाते हैं। बाकी बचे समय को वे रास्ते में बेघर लोगों को खोजने और उनकी मदद करने में बिताते हैं। साल 2017 में 34 साल के अरुल ने 'करुणई उल्लंगल ट्र्स्ट' की खोज की थी। यह ट्रस्ट अब तक 320 बेघर लोगों की मदद कर चुका है। इनमें से 120 लोगों को वापस अपने परिवार वालों से मिला दिया गया है।
पत्नी के दोस्त ने मांगी मदद और फिर हुई शुरुआत
न्यू इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए वह बताते हैं,
'मेरे परिवार में बीवी, मैं और दो बच्चे हैं। साल 2015 तक सामाजिक काम करने का मेरा कोई इरादा नहीं था। उसी साल चेन्नई बाढ़ के दौरान मेरी पत्नी के पास सैदापेट से उसके एक दोस्त का इमर्जेंसी फोन आया। दोस्त ने कहा कि वे एक जगह पर फंसे हुए हैं और उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं है। मैं उनके पास खाना लेकर गया। वहां मुझे एहसास हुआ कि सैकड़ों लोगों को मदद की दरकार है।'
नौकरी से निकाले जाने के बाद समाजसेवा में लगे
स्टोरीपिक की रिपोर्ट के अनुसार, अरुल एक बैंक के कलेक्शन डिपार्टमेंट में काम करते थे। साल 2015 में पंक्चुअलिटी इशूज (समय का पालन ना करने) के कारण उन्हें नौकरी छोड़ने के लिए कहा गया। इसके बाद वे सामाजिक कामों में लग गए। वह 6 महीने तक बेरोजगार रहे। यह पूरा समय उन्होंने चेन्नई बाढ़ के बाद शहर की सफाई और मदद तलाश रहे लोगों की मदद करने में लगाया।
उसी समय अरुल ने 'मक्कल कु उधावलम' नाम से एक फेसबुक पेज और वॉट्सऐप ग्रुप बनाया। ये खासतौर पर बाढ़ के दौरान लोगों तक मदद पहुंचाने के लिए बनाए गए। शहर के कई हिस्सों से लोग उनसे मदद मांगते और अरुल उनकी मदद करते।
वृद्ध औरत की मदद ने बदली जिंदगी
साल 2016 के अंत में एक बेघर वृद्ध औरत ने शेल्टर होम में शरण दिलाने के लिए अरुल से मदद मांगी।
अरुल बताते हैं,
'तब तक मुझे पता भी नहीं था कि शेल्टर होम (आश्रय स्थल या शरण स्थल) होता क्या है। इससे पहले बाढ़ के दौरान भी एक महिला ने मुझसे ऐसा ही एक अनुरोध किया था लेकिन मैं उसकी मदद नहीं कर सका था। अब इस औरत के अनुरोध ने मुझे बेघर लोगों की मदद करने के लिए प्रेरित किया। इसने मेरी जिंदगी को बदलकर रख दिया।'
यह केवल एक शुरुआत थी। जनवरी 2017 में अरुल को किसी ने सूचना दी कि सड़क पर एक बेसहारा शख्स पड़ा है और अगर समय पर उसकी मदद नहीं की गई तो वह मर जाएगा।
सूचना मिलते ही अरुल ने बिना किसी देरी के रात को 1.30 बजे उस शख्स को पोरूर के एक निजी शेल्टर होम में भर्ती कराया। अरुल बताते हैं कि शख्स को भर्ती कराने के बाद उन्हें अलग ही तरह की संतुष्टि मिली। इस घटना के बाद वे ऐसे बेघर लोगों को खोजने और उन्हें शेल्टर होम में दाखिल कराने में लग गए। अरुल रोज 500 रुपये कमाते हैं जिनसे उनके ऑटो के तेल का खर्च चलता है।
वह कहते हैं,
'हम हर महीने लगभग 10 लोगों को बचा रहे थे। साल 2017 में मैंने एक ऑटो खरीदा। मेरे एक दोस्त ने मुझे ऑटो खरीदने के लिए 90,000 रुपये की मदद दी। बाकी के पैसे मैं हर महीने किस्तों में भर रहा था।'
सितंबर 2019 में करुणई उल्लंगल ट्रस्ट ने अपना ऐंड्रॉइड मोबाइल ऐप्लीकेशन लॉन्च किया। इसके जरिए कोई भी बेघर लोगों की फोटो ऐप पर अपलोड कर सकता है। इसके बाद ट्रस्ट अपने वॉलिंटियर्स वहां भेजता है और शख्स की मदद करता है। ऐप के अलावा लोग 9841776685 नंबर पर फोन या एसएमएस करके भी किसी बेघर या बेसहारा शख्स की मदद कर सकते हैं।