बेंगलुरु में जागरूक कपल का इको फ्रेंडली ग्रीन स्टार्टअप Dopolgy
बेंगलुरु के इंजीनियर कपल राहुल पगड़ और अक्षता भद्रन्ना का ईको फ्रेंडली स्टार्टअप Dopolgy एक पंथ, दो काज कर रहा है। चाइना से मशीन आयात कर बेंगलुरु से लगभग साढ़े तीन सौ किलोमीटर दूर धाड़वाड़ में वे अब तक छह हजार रद्दी अखबारों से 20 हजार इको फ्रेंडली पेंसल बना कर सेल कर चुके हैं।
पिछले तीन-चार दशकों के दौरान वनोन्मूलन में कमी आने के बावजूद हर साल अंधाधुंध करोड़ों की संख्या में पेड़ों की कटाई आज गंभीर विश्वस्तरीय पर्यावरण समस्या बन चुकी है। ज्यादातर पेड़ न्यूज पेपर, पेंसल आदि लकड़ी उत्पादों के लिए काटे जा रहे हैं। ऐसे में बेंगलुरु के रहने वाले कपल राहुल पगड़ और अक्षता भद्रन्ना का अखबारों की रद्दी से पेंसल बनाने का ईको फ्रेंडली स्टार्टअप Dopolgy एक पंथ, दो काज साबित हो रहा है। यह स्टार्टअप लोगों को एक नए तरह का रोजगार देने के साथ ही पर्यावरण संरक्षण में भी मददगार बन रहा है। उनका कहना है कि औसतन छह हजार रद्दी अखबारों से दस हजार पेंसल तैयार हो जाती हैं।
इंडोनेशिया से लौटकर कर्नाटक में बेंगलुरु से लगभग साढ़े तीन सौ किलोमीटर दूर धाड़वाड़ में राहुल पगड़ और अक्षता अपनी मशीनों से सितंबर 2018 में पेंसल प्रॉडक्शन का काम करने लगे। इस समय राहुल धाड़वार की फैक्ट्री के काम संभाल रहे हैं और अक्षता घर से ही अपने प्रॉडक्ट के लिए ऑनलाइन मिल रहे ऑर्डर, सप्लाई आदि के काम देख रही हैं। अक्षता को मल्टीनेशनल कंपनियों में मार्केटिंग का सात साल का अनुभव भी है। पेशे से इंजीनियर अक्षता बताती हैं कि इस समय बाजार में रद्दी से बनी उनकी ईको फ्रेंडली पेंसल की खूब डिमांड है। उनका स्टार्टअप पेंसल के अलावा भी कई तरह के सामान रद्दी से तैयार कर रहा है, जिनमें ग्रीटिंग-वेडिंग कार्ड, शादी-ब्याह वाले लिफाफे, थैले, हैं. बांस से बने टूथब्रश आदि उल्लेखनीय हैं।
राहुल बताते हैं कि पहली बार उन्हे पिछले साल 2018 में जलवायु आपदा के दुष्प्रभावों ने विचलित किया। उसके बाद वे अपनी 'ग्रीन जर्नी' पर चल पड़े और इंडोनेशिया से लौटते ही डोपॉल्गी (Dopolgy) स्टार्टअप की नींव रख दी। उससे पहले उन्होंने कूड़े दानों में भारी मात्रा में रोजाना फेके जा रहे कचरे पर गहराई से अध्ययन किया। उसी दौरान उन्होंने एक वीडियो में देखा की वनोन्मूलन के कारण बिगड़ता पर्यावरण किस तरह चलचक्र को प्रभावित कर रहा है। पानी में परेशान एक नर कछुए के उस वायरल वीडियो ने उनको अंदर तक विचलित कर दिया, जिसके बाएं नथुने में प्लास्टिक का पुआल फंसा हुआ था। उसके बाद सबसे पहले उन्होंने प्लास्टिक-मुक्त और पर्यावरण के अनुकूल बेंगलुरु में अपना नया घर बनाया, जिसमें प्लास्टिक कटलरी की जगह पारंपरिक स्टील कटलरी का इस्तेमाल किया गया। वे प्लास्टिक त्याग कर घर पर ही गीले कचरे से खाद बनाने लगे। साथ ही प्लास्टिक उत्पादों की खरीदारी भी करने लगे। इस दौरान उन्हे खुद के इको-फ्रेंडली होने का पहली बार सुखद एहसास हुआ।
पर्यावरण के अनुकूल प्रॉडक्शन के दौरान राहुल और भद्रन्ना की एक कोशिश यह भी रही कि वे प्लास्टिक उत्पादों और अपने सामानों के बीच की कीमतों का अंतर भी कवर करें। उन्होंने शुरू में ही सोच लिया था कि अपने प्रॉडक्ट को वह आम आदमी की क्रय शक्ति को ध्यान में रखकर सेल करेंगे। उनके उत्पाद प्लास्टिक से सस्ते होंगे, तभी बिक्री आसान होगी। पहली बार उन्होंने जब विपणन-परीक्षण और उपभोक्ताओं की प्रतिक्रिया का अनुमान लगाने के लिए सस्ते बांस के टूथब्रश एक समारोह में पेश किए तो वे दो घंटे के भीतर ही बिक गए। इस पर लोगों की प्रतिक्रिया अभूतपूर्व थी, जिससे स्टार्टअप को बड़ा करने का प्रोत्साहन मिला।
उसके बाद अक्षता और राहुल छोटे-छोटे मैन्युफैक्चरर्स तक इको-फ्रेंडली अपने उत्पादों की सोर्सिंग करने के साथ ही उन्हे अपने प्लेटफॉर्म से भी बेचने लगे। उसके बाद उन्होने निजी अनुभवों के आधार पर तय किया कि रद्दी के अखबारों से पेंसल बनाकर स्कूली बच्चों को उपलब्ध कराई जाए। वह इको-फ्रेंडली पेंसल बनाने लगे। इसके पीछे दो मुख्य वजहें रहीं। एक तो उन्हें पता चला था कि लकड़ी की पेंसल बनाने के लिए दुनिया में हर साल लगभग आठ मिलियन पेड़ काट दिए जा रहे हैं।
दूसरे, इस बात से उनको आइडिया मिला कि पेंसल हर आयुवर्ग के लोग इस्तेमाल करते हैं। उसके बाद इसी साल वे रद्दी के अखबारों से पेंसल बनाने के लिए चीन से मशीन खरीद ले आए। उसके बाद उनकी पेंसल की ऑनलाइन सेल शुरू हो गई। वे अब तक 6 हजार रद्दी अखबारों की रीसाइक्लिंग कर 20 हजार से अधिक इको-फ्रेंडली पेंसल बनाकर बेच चुके हैं। यह स्टार्टअप अब प्याज और धनिया के बीजों से भी इको फ्रेंडली प्रॉडक्ट तैयार कर रहा है। निकट भविष्य में वह इको फ्रेंडली तरीके से ही कई और भी अन्य तरह के प्रॉडक्शन करने जा रहे हैं।