दो लड़कियों ने की एक अनोखी पहल, ताकि पीरियड्स की वजह से न छूटे किसी लड़की का स्कूल
गुड़गांव के श्री राम स्कूल में 11वीं में पढ़ने वाली सरन्य दास शर्मा और आमिया विश्वनाथन ने प्रोजेक्ट 'सशक्त' की शुरुआत की है, जिसकी मदद से वे सरकारी स्कूलों में ज़रूरतमंद लड़कियों को उपलब्ध करा रही हैं सैनिटरी नैपकिन।
आपको जानकर हैरानी होगी कि देश की राजधानी दिल्ली के सरकारी स्कूलों में (2016 में) बहुत अधिक संख्या में लड़कियों ने स्कूल छोड़ दिया, जिसकी वजह थी स्कूल में टीचर्स की पर्याप्त संख्या का न होना और गरीबी, क्योंकि मजदूर परिवार की लड़कियों पर घर की जिम्मेदारी बाकी परिवारों की लड़कियों की अपेक्षा बहुत ज्यादा होती है, लेकिन इन्हीं सबके बीच स्कूल छोड़ने की जो सबसे बड़ी वजह निकल कर सामने आई वो थी, टॉयलेट। जी, ये सच है कि स्कूल में टॉयलेट की अच्छी व्यवस्था न होने की वजह से लड़कियां स्कूल छोड़ने पर मजबूर हैं...
श्रीराम स्कूल, गुड़गांव की 11वीं क्लास में पढ़ने वाली सरन्य दास और आमिया विश्वनाथन नाम की दो लड़कियों ने एक ऐसी शुरुआत की है, जिसकी मदद से स्कूलों में पीरियड्स के दौरान लड़कियों को मिलेगी उचित व्यवस्था और सहयोग।
बदलते समय से साथ-साथ स्कूल में लड़कियों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी आई है। यानी अब लड़कियों को पढ़ाई-लिखाई करने के मामले में लड़कों के बराबर अधिकार मिलने लगे हैं। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि देश की राजधानी दिल्ली के सरकारी स्कूलों में 2016 में रिकॉर्ड संख्या में लड़कियों ने स्कूल छोड़ दिया। टीचरों की पर्याप्त संख्या का न होना, गरीब, मजदूर परिवार की लड़कियों पर घर की जिम्मेदारी अधिक होना जैसे कुछ प्रमुख कारण हैं, जिसकी वजह से लड़कियों का स्कूल छूटता है। लेकिन एक और बड़ा कारण है जिसकी वजह से लड़कियां स्कूल छोड़ देती हैं और वह है टॉयलट की अच्छी व्यवस्था का न होना। मिडल क्लास परिवारों की लड़कियों को इस मुश्किल का ज्यादा सामना करना पड़ता है। क्योंकि इसी उम्र में लड़कियों के पीरियड्स शुरू हो जाते हैं और स्कूल में उचित व्यवस्था और सहयोग न मिलने के कारण उन्हें बहुत परेशानी होती है। इसी परेशानी को दूर करने के लिए गुड़गांव में 11 वीं में पढ़ने वाली दो लड़कियों ने एक पहल की शुरूआत की है। जिसका नाम है, 'सशक्त।
गुड़गांव के श्री राम स्कूल में 11वीं में पढ़ने वाली सरन्य दास शर्मा और आमिया विश्वनाथन ने प्रॉजेक्ट 'सशक्त' की शुरुआत की है। सरन्य ने एक दिन अखबार में देखा कि पीरियड्स और साफ-सफाई की सुविधा न होने की वजह से लड़कियां सबसे ज्यादा स्कूल छोड़ रही हैं। इससे सरन्य का मन द्रवित हो गया और उन्होंने अपनी दोस्त आमिया के साथ मिलकर साथ में कुछ करने की योजना बनाई। दोनों ने मिलकर 1 साल तक सरकारी स्कूल की लड़कियों के लिए सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराने की व्यवस्था की। उन्होंने इसके बारे में जागरूकता फैलाने के लिए वर्कशॉप भी आयोजित किए। खास बात ये है, कि दोनों ने अपनी पढ़ाई के बीच में समय निकालकर ऐसा किया।
सरन्य खुद को महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाला वकील मानती हैं। वह कहती हैं, 'मैंने पढ़ा कि लड़कियों को सिर्फ इसलिए स्कूल छोड़ना पड़ता है क्योंकि उनके स्कूल में इसकी व्यवस्था नहीं होती और वे पैड्स जैसे प्रोडक्ट खरीदने में समर्थ नहीं होती। मैं भी स्कूल में पढ़ती हूं, लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं होता। इसलिए मैंने अपनी दोस्त से बात कर ऐसी लड़कियों की मदद करने का फैसला कर लिया।' तो इस तरह से प्रोजेक्ट सशक्त की शुरुआत हुई। सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली गरीब और सुविधाओं से वंचित लड़कियों के लिए पैड की व्यवस्था करने के साथ ही दोनों ने पर्यावरण की समस्या का भी ख्याल रखा।
सरन्य ने कहा, 'मैंने एक और आर्टिकल में पढ़ा कि महिलाओं के पूरे जीवनकाल में पीरियड्स की वजह से काफी सारा कचरा इकट्ठा हो जाता है जो कि हमारे पर्यावरण के लिए बिलकुल भी ठीक नहीं है। इसीलिए हमने महिलाओं और लड़कियों के लिए बायोग्रैडेबल पैड्स की व्यवस्था की।'
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यूनाइटेड नेशन के एक आंकड़े के मुताबिक भारत में 20% लड़कियां सिर्फ पीरियड्स की वजह से स्कूल जाना छोड़ देती हैं।
सरन्य और आमिया ने 2016 सितंबर में दिल्ली में पैड्स बांटना शुरू किया था। धीरे-धीरे उन्हें अहसास हुआ कि ऐसी तमाम लड़कियां हैं जिन्हें अपने शरीर के बारे में भी पूरी जानकारी नहीं है। उन्होंने इस समस्या को भी दूर करने का निर्णय लिया। अरन्य ने कहती हैं, 'हमने शुरू में ही तय कर लिया था कि वर्कशॉप में किन-किन विषयों पर ज्यादा ध्यान देंगे। हमने पहले इन लड़कियों को सिखाया कि वे सैनिटरी पैड्स का सुरक्षित निपटान कैसे करें। उसके बाद हमने हाथ धुलने और उसे साफ रखने के बारे में बताया। हमने उन्हें ये भी समझाया कि इसे छुपाना या दबाना नहीं है बल्कि खुलकर इस बारे में बात करनी है। इसे किसी भी सूरत में अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। हमने उन्हें ये भी सिखाया कि किसी भी तरह के संक्रमण से कैसे बचना है।'
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इसके लिए दोनों जब भी किसी सरकारी स्कूल में वर्कशॉप करने जाती हैं, तो वे स्कूल से भी अच्छे से कोऑर्डिनेट करती हैं और नजदीकी डॉक्टर के बारे में पता करके लड़कियों को इसकी जानकारी देती हैं। वर्कशॉप खत्म होने के बाद वे लड़कियों को व्यक्तिगत रूप से जानकारी देती हैं।
इस मजबूत पहल 'सशक्त' को अभी कुछ महीने ही हुए हैं, लेकिन उनके बारे में जानकर कई सारे NGO's ने उनसे संपर्क किया और मदद की पेशकश की। उन्होंने अब तक 200 से ज्यादा लड़कियों को सैनिटरी पैड्स दिये हैं और उनकी योजना इसे बढ़ाकर 1,000 करने की है।