Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

खेती का हुनर तो कोई इन महिला किसानों से सीखे

महिला किसानों पर एक विशेष रिपोर्ट...

खेती का हुनर तो कोई इन महिला किसानों से सीखे

Saturday June 30, 2018 , 6 min Read

ज्यादातर सफल महिला किसानों में एक बात समान रूप से पाई जा रही है कि वह परंपरागत तरीके से खेती करने की बजाय नई तकनीक का इस्तेमाल कर रही हैं। खासकर मध्य प्रदेश की रेखा त्यागी और महाराष्ट्र की वैशाली जयवंत भालेराव ऐसी सफल महिला किसान हैं, जिन्हें अपने पति खो देने के बाद कड़े संघर्षों से कामयाबी मिली। रेखा को तो सम्मान के लिए पीएम तक का निमंत्रण मिला।

रेखा त्यागी और वैशाली

रेखा त्यागी और वैशाली


 जीवन भी एक जंग है। इस जंग में लड़ने का हुनर हिम्मत से मिलता है। कायर तो भाग खड़े होते हैं। एक ऐसी ही महिला किसान हैं मुरैना (म.प्र.) के गांव जलालपुर की रेखा त्यागी। 

वर्धा (महाराष्ट्र) के गांव पेठ की महिला किसान वैशाली जयवंत भालेराव खेतीबाड़ी से जुड़ी भारत की उन मेहनतकश महिलाओं में एक हैं, जिन्हें खेती की तमाम बारीकियां अतिविशिष्ट बना देती हैं। उनके साथ दांपत्य जीवन की एक असहनी ट्रेजडी जुड़ी है कि बीस साल की उम्र में जब वह ब्याह कर ससुराल पहुंची, उसके समय बाद उनके पति ने अपनी फसलों की बर्बादी और बढ़ते क़र्ज़ से विक्षुब्ध होकर आत्महत्या कर ली थीं। यद्यपि इस समय वैशाली के दो जवान बेटे हैं, लेकिन अपने दुखद अतीत में भी उन्होंने जीवन से की हार नहीं मानी। वह बताती हैं कि जब वह चौंतीस वर्ष की थीं, उनके कंधों पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी आ धमकी। चुनौती आसान नहीं थी लेकिन उससे जूझने के अलावा उनके सामने और कोई चारा भी तो नहीं था। तब उन्होंन संकल्प लिया - जो मुझे करना चाहिए, वह मुझे करना ही होगा।'

पति के साथ छोड़ जाने के बाद उनके पास मातम मनाने का वक़्त नहीं था। पहले तो मेरे खेत के मज़दूर ही मुझे किसी क़ाबिल नहीं समझते थे। उनका सोचना था कि ये औरत क्या खेती करेगी, कैसे बीज का चुनाव करेगी लेकिन फिर धीरे-धीरे मुझे काम आ गया और उनको मुझ पर भरोसा होने लगा। अब तो लगभग हर दोपहर की धूप में वह खेतों की मेड़ों पर खामोशी से फसलों की पत्तियों को प्यार से सहलाती, दुलराती हैं। अब उनके गांव वाले भी उनकी हिम्मत और सूझबूझ की तारीफ़ करते रहते हैं। कहते हैं कि औरतों को भी खेती करने का हक़ मिलना चाहिए। वैशाली तो अपने पति से बेहतर किसानी कर रही हैं। वैशाली शायद अपने पति की आत्महत्या के बाद बिखर जातीं मगर उन्होंने अपने बच्चों के साथ तय किया कि वह जिएंगी, लड़ेंगी और जीतेंगी। वह टूटी नहीं, न ही उनके कदम डगमगाए बल्कि वह ऐसे चल पड़ीं कि फिर आज तक उन्हें कोई भी नहीं रोक सका है। वैशाली के पास पांच एकड़ खेत हैं, जिसमें वह कपास, दलहन और सोयाबीन की खेती करती हैं।

गौरतलब है कि पिछले दो-ढाई दशकों में क़र्ज़ के बोझ और बर्बाद फसल की मार के कारण कम से कम तीन लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं। विशेषज्ञ तो यहां तक कहते हैं कि यह संख्या भी कम है। ऐसा हर मामला पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज नहीं होता है। वैशाली के पति के गुज़रने के बाद उन्हें अपनी ज़मीन का मालिकाना हक़ मिल गया। क़ानून की नज़र में ज़मीन पर औरतों का बराबर का हक़ है, लेकिन आमतौर पर ऐसा होता नहीं है। इसलिए उन्हें इस मामले में भी कुछ दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा। वैशाली ने उस एक मौक़े को हाथ से नहीं गंवाया। वैशाली कहती हैं कि मुश्किलों से घबरा कर उसके सामने घुटने टेक देना कोई समझदारी नहीं होती है। परिस्थितियां चाहे जितनी भी प्रतिकूल हों, इंसान को अपना संघर्ष हमेशा जारी रखना चाहिए, क्योंकि हालात से लड़ना, लड़कर गिरना और फिर उठकर संभलना ही जिंदगी है।

नसीब के भरोसे बैठने वालों को सिर्फ वही मिलता है, जो कोशिश करने वाले अकसर छोड़ देते हैं, यानी तदबीर से ही तक़दीर बनाई जाती है। जिसको इन बातों पर भरोसा नहीं होता है, वह लड़ाई शुरू होने से पहले ही हार जाता है। जीवन भी एक जंग है। इस जंग में लड़ने का हुनर हिम्मत से मिलता है। कायर तो भाग खड़े होते हैं। एक ऐसी ही महिला किसान हैं मुरैना (म.प्र.) के गांव जलालपुर की रेखा त्यागी। उन्होंने भी वैशाली की तरह कड़े संघर्षों से दो-दो हाथ करने के बाद ही कामयाबी पाई है। वह बाजरे की उन्नत पैदावार करने वाली मध्य प्रदेश की पहली महिला किसान घोषित हो चुकी हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं उनका सम्मान कर चुके हैं।

रेखा के पति भी किसानी करते थे। एक दिन उन पर भी मुसीबत का पहाड़ ढह पड़ा। अचानक उनके पति चल बसे। पति की मौत के बाद उनकी जिंदगी एक झटके में अर्श से फर्श पर आ गिरी। घर चलाने के आर्थिक संकटों ने घेर लिया। खेती करने के लिए उनके पास कोई आर्थिक आधार नहीं था, न ही उनके पास खेती का अनुभव था। पति के रहते उन्होंने कभी अपने खेतों में कदम नहीं रखा था लेकिन अब उनके सामने अपने तीन बच्चों की परवरिश की चुनौती आ खड़ी हुई तो जेठ और देवरों की मदद से वह खेती-किसानी में कूद पड़ीं। शुरू कुछ वर्षों में उन्हें खेती में भारी नुकसान उठाना पड़ा। लागत मूल्य निकालना भी कठिन हो गया। कभी ओलावृष्टि तो कभी अंधड़-पानी, कभी सूखा तो कभी लागत के लाले लेकिन रेखा के कदम आगे बढ़ते रहे।

जैसे-जैसे परेशानियां घेरती रहीं, रेखा अपनी मेहनत-मशक्कत बढ़ाती गईं। बार-बार पौधे तैयार होने के बाद खेतों में रोपने लगीं। इस तरह वर्ष 2014-15 में पहली बार उनके खेतों में बाजरे का रिकार्ड उत्पादन हुआ। परंपरगत तरीके से बाजरे की खेती में प्रति हेक्टेयर 15-20 क्विंटल बाजरा होता है, लेकिन रेखा के एक हेक्टेयर खेत में लगभग चालीस क्विंटल बाजरे की पैदावार हुई। रेखा की इस सफलता का राज ये रहा कि उन्होंने अपने खेतों में नई किस्म की फसल लगाने रिस्क लिया। इस दौरान अनुभवी किसानों के साथ-साथ जिला कृषि अधिकारियों के भी संपर्क में रहीं। अधिकारियों की सलाह पर उन्होंने अपने खेत में वैज्ञानिक तकनीक का इस्तेमाल करती हुईं बाजरे की फसल लगाईं। नई नस्ल के बीज और मिट्टी की जांच कर खेतों में खाद-पानी दिया। उन्होंने खेतों में सीधे बाजरा बोने के बजाए पहले बाजरे का छोटा पौधा तैयार किया, फिर उन्हें रोपा।

इसके बाद राज्य सरकार के कृषि विभाग का भी रेखा पर ध्यान गया। बात केन्द्रीय कृषि मंत्रालय और प्रधानमंत्री तक पहुंच गई। इसके बाद दिल्ली में आयोजित कृषि कर्मण अवार्ड कार्यक्रम में बुलाकर उनको प्रधानमंत्री ने प्रशस्तिपत्र और दो लाख रुपये का नकद इनाम दिया। मध्यप्रदेश सरकार अब अपने राज्य में रेखा को महिला किसानों के लिए रोल मॉड के तौर पर पेश करती है। कृषि पर आधारित कार्यक्रम, प्रदर्शनियों, सेमिनारों में महिला किसान को रेखा से किसानी की सीख लेने के लिए कहा जाता है। खरीफ की फसल में रिकार्डतोड़ उत्पादन करने वाली रेखा अब किसानों को खेती में आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल पर जोर देने के लिए उन्हें जागरुक करती हैं। वह खुद तो पढ़ी-लिखी नहीं हैं लेकिन अपनी बिटिया रूबी को वह उच्च शिक्षा दिलाने सपने देखती हैं।

यह भी पढ़ें: मध्य प्रदेश की ये 'चाचियां' हैंडपंप की मरम्मत कर पेश कर रहीं महिला सशक्तिकरण का उदाहरण