रंगीन मछलियों के कारोबार से साल भर में कमा सकते हैं 50 लाख रुपये
ऐसे कमाएं लाखों...
बाजार नित-नए चारे डाल रहा कि लो, पालो रंगीन-सजावटी मछलियां भी, बेचो और मालामाल हो जाओ, जबकि इन रंग-विरंगी मत्स्य-प्रजातियों को अपलक निहारते हुए मन करे कि आज की उलझनों से छटपटाती जिंदगी में क्यों न कुछ पल इनके साथ बिता लिया जाए। इनकी खूबसूरती जिनकी आंखों में उतर आए, चित्त को निरामिष कर देने की शपथ जैसी इनकी इंद्रधनुषी विह्वलता, तरंगित थिरकनें पत्थर-मन को भी अपनी झलक से कवि-हृदय बना दें। अहा, इतनी मुग्धता, प्रकृति की इतनी अनुकंपा इन मनोहर जल-जीवों पर!
विश्व में रंगीन मछलियों का कारोबार 50 करोड़ डालर से ऊपर पहुंच चुका है। फिर भी भारत में मात्र पांच करोड़ का व्यापार हो पा रहा है। पूरी दुनिया में रंगीन मछलियों को शिशे के एक्वेरियम में पालना एक विशिष्ट शौक और फैशन है।
उनकी दुनिया में इतनी रंगीनी! किस ऑर्टिस्ट ने इतना डूब कर सजाया होगा इन्हे! देखकर अपलक निहारते हुए मन करे कि आज की उलझनों से छटपटाती जिंदगी में कुछ पल इनके साथ बिताएं, इन मछलियों से बातें करें। कोई चाहे तो गुजर जाए पूरी उम्र इनसे बोलते-बतियाते हुए। इनकी खूबसूरती किसी की आंखों में उतर आए तो पूरी मत्स्य बिरादरी से उसकी दोस्ती हो जाए। चित्त को निरामिष कर देने की शपथ जैसी इनकी इंद्रधनुषी विह्वलता। तरंगित थिरकनें पत्थर-मन को भी मानो अपनी झलक से कवि-हृदय बना दें। अहा, इतनी मुग्धता, प्रकृति की इतनी अनुकंपा इनकी प्रजातियों पर! कोई मत्स्य-पालक अपने तालाब से इन्हें भला कब बेचना चाहे, पालते-पालते मुरीद हो जाए ऐसे मत्स्य-कुलों का।
लेकिन ये जो दुनिया है, पैसे-पैसे की मोहताजी में वक्त उससे क्या-क्या नहीं करा ले रहा। बाजार नित-नए चारे डाल रहा कि लो, पालो इन्हें भी, बेचो और मालामाल हो जाओ। हो तो रहे हैं मालामाल खरगौन (म.प्र.) के सरफराज खान। हर महीने वह रंगीन मछलियां बेचकर चालीस-पचास हजार रुपए कमा रहे हैं। वह मध्य प्रदेश के पहले रंगीन मछली पालक हैं। गरीबी में और कोई काम नहीं मिला तो यही कर लिया। दरअसल, उनको बचपन से ही मछली पालने का शौक रहा है। वह स्कूल से सीधे अपने इलाके की ओंडल नदी तट पर पहुंचकर मछलियों को दाना खिलाया करते थे। बड़े हुए तो अपने शहर के फुटपाथ पर साढ़े पांच सौ रुपए में सात फिश पॉटों में रंगीन मछली फार्म खोल लिया।
वर्ष 2009 में सरकार की मत्स्य कृषक विकास अभिकरण योजना में आठ लाख का लोन मिला। साथ में नब्बे हजार रुपए का अनुदान भी। इसके बाद तो उनकी दुनिया रंगीन हो उठी रंगीन मत्स्य-बीज केंद्र से। उन्होंने निकटवर्ती गांव प्रेमनगर में खरीदी एक एकड़ जमीन पर कुआं खुदवाया। ट्यूबवेल पंप लगवा लिया। इसके बाद भुवनेश्वर, कोच्ची और दिल्ली में प्रशिक्षित हो आए। अब उनके यहां गोल्ड फीश, एंजल, चिचलेट, मौली, गप्टी, कार्प, कामन मार्प, प्लेटी, ब्रुडल, एंजल आदि तमाम प्रजातियों की रंगीन मछलियां तैर रही हैं। उनसे मुंबई, चेन्नई, कोलकाता के बाजार गुलजार हो रहे हैं।
इन दिनों घरों, दफ्तरों में रंगीन मछलियों को पालने का शौक बढ़ता जा रहा है। लोग इनसे ड्राइंग रूम को सजाने-संवारने लगे हैं। यह खूब मुनाफा देने वाला कारोबार साबित हो रहा है। इसलिए तमाम लोगों ने रंगीन मछली पालन को कॅरियर बना लिया है। देश के बाकी हिस्सों में भी कई जगह रंगीन मछलियों के कारोबार को शासन-प्रशासन प्रोत्साहित कर रहा है। जमशेदपुर में अलावे पोटका और पटमदा प्रखंड की सौ से अधिक महिलाएं अब रंगीन मछलियां पाल कर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो रही हैं। जिला मत्स्य विभाग इनको रंगीन मछलियों का जीरा और फीड मुहैया करा रहा है। अब शौकीनों को जमशेदपुर शहर में ही रंग-बिरंगी मछलियां सस्ती दर पर मिलने लगी हैं। उन महिलाओं को वर्ष 2016 में मत्स्य विभाग ने प्रशिक्षण दिया था। इस साल फरवरी में उनकी संस्थाओं महिला समिति एवं सखी मंडल को मछली पालन के लिए ड्रम, हीटर, फिल्टर, मोटर, पाइप, साइक्लिनिंग पाइप, नेट, पेपर स्टीक, दवा के साथ रंगीन मछलियां दी गईं। अब वे गोल्ड फिश, रेड कैप, ओराडा, ग्रीन ट्रेरर, एंजेल, चिकलेट, ऑस्कर, ब्लैक कॉर्न, व्हाइट कॉन, व्हाइट मॉली, शॉट टेल, मौली आदि रंगीन मछलियों का पालन कर रही हैं। बाजार में इनकी मांग बढ़ती जा रही है।
झारखंड में एक्सएलआरआई के पासआउट सुजीत कुमार और सौमित्र कुमार वर्मा ने मत्स्य विभाग को रंगीन मछलियों के पालन का प्रस्ताव दिया था। उन्होंने मत्स्य पालन के तरीके और बाजार की जानकारी दी। उनकी सोच पर काम करते हुए करनडीह में दो हजार वर्गमीटर भूमि पर बहत्तर टैंक बनाए गए। लगभग सवा सौ महिलाओं को प्रशिक्षण और इस रोजगार से जोड़ा गया। एक साल के भीतर ही पचास लाख रुपए का कारोबार हुआ। सुजीत और सौमित्र एक रुपए की दर पर महिलाओं को मछलियों का बीज देते हैं और छह से 12 रुपए पर प्रति मछली खरीद लेते हैं। एक दर्जन प्रजातियों की रंगीन मछलियों का उत्पादन यहां हो रहा है। बाजार में 15-20 रुपए प्रति किलो मछली बेच दी जाती है। इससे महिलाओं को अच्छा मुनाफा हो रहा है और उन्हें भी।
इससे पहले लोग कोलकाता से रंगीन मछलियां मंगवाते थे। रंगीन मछलियों पर रिसर्च के लिए खासमहल के मत्स्य विभाग परिसर में एक अस्पताल बनाया गया है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की शीतजल मात्स्यिकी अनुसंधान निदेशालय नैनीताल (उत्तराखंड) के अनुसार सजावटी मछलियों को उनके सुन्दर रंग, आकृति और स्वभाव के कारण जीवित जेवर कहा जाता है।
विश्व में रंगीन मछलियों का कारोबार 50 करोड़ डालर से ऊपर पहुंच चुका है। फिर भी भारत में मात्र पांच करोड़ का व्यापार हो पा रहा है। पूरी दुनिया में रंगीन मछलियों को शिशे के एक्वेरियम में पालना एक विशिष्ट शौक और फैशन है। रंगीन मछलियां खूबसूरती का सुख ही नहीं, रोजगार के अवसर भी उपलब्ध करा रही हैं। विश्व में करीब छह सौ किस्मों की रंगीन मछलियां हैं। इनमें सौ तरह की रंगीन मछलियां भारत में मिलती हैं। विदेशी प्रजातियों की भी रंगीन मछलियाँ भारत में पैदा की जा रही हैं।
वैज्ञानिक ढंग से सजावटी मछली पालन से न केवल बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया जा सकता है, बल्कि इसका व्यापक पैमाने पर निर्यात कर विदेशी मुद्रा भी अर्जित की जा सकती है। संयुक्त राष्ट्र की खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में 350 से 400 प्रकार की सजावटी मछलियों का कारोबार किया जाता है। विश्व में 800 किस्म की अलंकारिक मछलियों की पहचान की गयी है, जिनमें से लगभग 250 प्रजातियां भारत में पायी जाती है। लगभग 180 किस्म की ये मछलियां अपने आकृति एवं रंगों के कारण काफी लोकप्रिय हैं। अमेरिका के 72 लाख और यूरोप के 32 लाख घरों में एक्वेरियम में रंगीन मछलियों को रखा जाता है। दुनिया के लगभग डेढ़ सौ देशों में रंगीन मछलियों का कारोबार हो रहा है।
इसमें अमेरिका, जापान और यूरोपीय देश सबसे आगे हैं। विश्व के रंगीन मछलियों के कुल कारोबार का मात्र एक प्रतिशत भारत में हो रहा है। हमारे देश से अमेरिका, जापान, सिंगापुर, चीन, जर्मनी इंगलैंड, थाईलैंड, ताईवान, हांगकांग, नीदरलैंड, श्रीलंका, फ्रांस, बंगलादेश, नेपाल, स्विटजरलैंड को रंगीन मछलियां निर्यात हो रही हैं। नाबार्ड का मानना है कि इस कारोबार से 20 लाख डालर तक की बढ़त हासिल की जा सकती है। भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में सबसे अधिक रंगीन मछलियां पायी जाती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार रंगीन मछलियों के पालन और व्यापार एक- डेढ़ लाख रुपए से शुर किया जा सकता है। कुछ मुख्य प्रजातियों के मछली जीरा 100 रुपए से 500 प्रति पीस होता है। व्यावसायिक पालन के लिए मादा और नर मछलियों का चार एक के अनुपात को अच्छा माना जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार एक्वेरियम में जीरा डालने के बाद चार से छह माह बाद इन्हें बेचा जा सकता है।
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