ताजमहल के बारे में कुछ ऐसी रहस्यमयी बातें, जिनसे शायद आप रू-ब-रू न हों...
मुग़ल बादशाह शाहजहां एक ऐसा नाम, जिसने आने वाली कई पीढ़ियों को मोहब्बत करना सिखाया, लेकिन कुछ प्रेमियों ने उन्हें मोहब्बत का मज़ाक उड़ाने वाला भी कहा। शाहजहां स्वयं मुसलमान थे और उनकी प्रजा हिन्दू। उनकी प्रजा ने ऐसा साम्राज्य बनाया, जो लगभग पूरे भारत में फैला हुआ है। आईये जानें शाहजहां के ताजमहल से जुड़ी कुछ ऐसी दिलचस्प और रहस्यमयी बातें, जिन्हें बहुत ही कम लोग जानते हैं।
बात सन् 1631 की है, मुग़ल बादशाह शाहजहां हिन्दुस्तान की सरज़मीं पर अपनी बेग़म मुमताज़ महल की मृत्यु का मातम मना रहे थे और उस मातम में एक धड़कन उनकी पीछे छूटी मोहब्बत की भी थी, जिसे आने वाली पीढ़ियों के सामने वे मिसाल के रूप में देना चाहते थे। मोहब्बत के बाद यदि उनका दिल किसी चीज़ में लगता था, तो वो था आर्किटेक्चर। मुगल बादशाह होने के साथ-साथ वे आर्किटेक्चर की दुनिया के भी बादशाह थे। इमारतों के लिए उनका परफेक्शनिस्ट जुनून आजीवन बरकरार रहा।
मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी तमाम दौलत अपने उस ख़्वाब के नाम कर दी थी, जिसे हम ताजमहल के नाम से जानते हैं। शांत यमुना नदी के एकांत तट पर इस शानदार मकबरे की नींव डाली गयी थी। जिन हिन्दू कारीगरों पर शाहजहां राज करते थे, वे अपने पत्थर तराशने के हुनर के लिए बेहद मशहूर थे। उन कारीगरों ने कभी सोचा भी नहीं होगा, कि जिन पत्थरों को वे तराश रहे हैं, उन पत्थरों से निर्मित इमारत दुनिया भर के चुनिन्दा अजूबों में शामिल होगी। वे कारीगर जिस विश्वप्रसिद्ध इमारत का निर्माण करने में दिन-रात लगे हुए थे, उनकी मिसालें सिर्फ बीत चुकी और मौजूदा पीढ़ियों ने ही नहीं दी, बल्कि आने वाली पीढ़ियां भी देंगी। ताजमहल को बनाने का पैमाना इतना विशाल था, कि आगरा शहर की ज़मीन पर पूरा शहर उभर आया था। उस अनोखी इमारत के निर्माण में बीस साल तक बीस हज़ार मजदूर लगे रहते थे। एक बेग़म की कब्र के नाम से प्रसिद्ध इस इमारत के निर्माण में आज के समय के बीस करोड़ डॉलर से कहीं अधिक रुपये खर्च हुए थे (जैसा कि माना जाता है)। ताजमहल जैसी खूबसूरत इमारत को किसने किसके लिए बनाया, क्यों बनवाया, कैसे बनवाया और कहां बनवाया, ये बातें सभी लोग जानते हैं और इसे लेकर कई तरह के मत भी प्रचलित है, लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं जिन्हें अधिकतर लोग नहीं जानते। हालांकि इंटरनेट के ज़माने में सबकुछ जान जाना आसान है, फिर भी जो नहीं जानते उनके लिए ताजमहल के इन रहस्यमयी तथ्यों पर नज़र डालना बेहद ज़रूरी है, जो इस खूबसूरत इमारत की चकाचौंध में दिखाई नहीं पड़ते।
सबसे पहली बात, जिसका रहस्य आज तक उजागर नहीं हुआ, वह ये कि ताजमहल के मकबरे की छत पर एक छेद है। मकबरे की छत के इस छेद से टपकती बूंद के पीछे कई रहस्य प्रचलित हैं, जिसमें सबसे प्रचलित रहस्य यह है, कि ताजमहल के बनने के बाद शाहजहां ने जब सभी मज़दूरों के हाथ काटने की घोषणा की, तो मजदूरों ने ताजमहल को पूरा करने के बावजूद इसमें एक ऐसी कमी छोड़ दी, जिससे शाहजहां का एक कंपलीट इमारत बनाने का सपना पूरा नहीं हो सके।
शाहजहां ने जब पहली बार ताजमहल का दीदार किया तो कहा, कि 'ये इमारत सिर्फ प्यार की कहानी बयां नहीं करेगी, बल्कि उन सभी लोगों को दोषमुक्त करेगी जो मनुष्य का जनम लेकर हिन्दुस्तान की इस पाक ज़मीन पर अपने कदम रखेंगे और इसकी गवाही चांद-सितारे देंगे।'
कहा जाता है, कि जिन मजदूरों ने ताजमहल को बनाया था, शाहजहां ने उनके हाथ कटवा दिये थे। लेकिन इतिहास में वापिस लौटा जाये, तो ताजमहल के बाद भी कई इमारतों को बनवाने में उन लोगों ने अपना योगदान दिया जिन्होंने ताजमहल बनाया था। उस्ताद अहमद लाहौरी उस दल का हिस्सा थे, जिन्होंने ताजमहल जैसी भव्य इमारत का निर्माण किया था और उस्ताद अहमद की देखरेख में ही लाल किले के निर्माण का कार्य शुरू हुआ था।
यदि ताजमहल की मीनारों पर गौर किया जाये, तो आप देंखेंगे की चारों मीनारें सीधी खड़ी न होकर एक दूसरे की ओर झुकी हुई हैं। इमारतों का ये झुका हुआ निर्माण बिजली और भूकंप के दौरान मुख्य गुंबद पर न गिरने के लिए किया गया था। कुछ लोग तो कहते हैं, कि चारों मीनारें गुंबद को झुक कर सलाम कर रही हैं, इसीलिए झुकी हुई हैं।
क्या आपको मालूम है, कि एक बार ताजमहल को बेचा भी जा चुका है? बिहार के सुप्रसिद्ध ठग नटवरला के बारे में यह कहानी प्रचलित है, कि एक बार उसने ताजमहल को मंदिर बता कर बेच दिया था।
कहा जाता है, कि जिन मजदूरों ने ताजमहल को बनाया था, शाहजहां ने उनके हाथ कटवा दिये थे। लेकिन इतिहास में वापिस लौटा जाये, तो ताजमहल के बाद भी कई इमारतों को बनवाने में उन लोगों ने अपना योगदान दिया जिन्होंने ताजमहल बनाया था। उस्ताद अहमद लाहौरी उस दल का हिस्सा थे, जिन्होंने ताजमहल जैसी भव्य इमारत का निर्माण किया था और उस्ताद अहमद की देखरेख में ही लाल किले के निर्माण का कार्य शुरू हुआ था।
जब ताजमहल बना था, तो उसकी कलाकृति में 28 तरह के कीमती पत्थरों को लगाया गया था। उन पत्थरों को शाहजहां ने चीन, तिब्बत और श्रीलंका से मंगवाया था। ब्रिटिश काल के समय इन बेशकीमती पत्थरों को अग्रेजों ने निकाल लिया था, जिसके बारे में यह कहा जाता है, कि वे बेशकीमती पत्थर किसी की भी आंखें चौंधियाने की काबिलियत रखते थे।
किसी भी इमारत के बनने के पहले और बाद में, जो बात सबसे पहले हमारे मन में आती है, वो ये है, कि इस इमारत के निर्माण में खर्च कितना आया था? तो हम बता देते हैं, कि ताजमहल के बनने में 32 मिलियन खर्च हुए थे, जिसकी आज की कीमत 106.28 से भी अधिक है।
और सबसे मज़ेदार बात तो यह है, कि कुतुब मीनार नाम की जिस इमारत को हम सबसे ऊंची इमारत कहते हैं, ताजमहल उससे भी ऊंचा है। कुतुबमीनार को देश की सबसे ऊंची इमारत के तौर पर नापा जाता है, लेकिन इसकी ऊंचाई ताजमहल के सामने छोटी पड़ जाती है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार ताजमहल कुतुब मीनार से 5 फीट ज्यादा ऊंचा है।
ताजमह के प्रांगण में लगे सारे फव्वारे एक ही समय पर काम करते हैं, और सबसे अश्चर्य में डाल देने वाली बात ये है, कि ताजमहल में लगा हुआ कोई भी फव्वारा किसी पाईप से जुड़ा हुआ नहीं है, बल्कि हर फव्वारे के नीचे तांबे का टैंक बना हुआ है, जो एक ही समय पर भरता है और दबाव बनने पर एकसाथ काम करता है।
इस इमारत को देखने के लिए एक दिन में सबसे ज्यादा भीड़ इकट्ठी होती है। पूरी दुनिया में कोई ऐसी दूसरी इमारत नहीं है, जहां एक दिन में इतने सैलानी इकट्ठे होते हों। ताजमहल को देखने के लिए पूरी दुनिया से 12,000 के आसपास सैलानी हर रोज़ आगरा की ओर रवाना होते हैं।
शाहजहां के उस सपने के बारे में आपको मालूम है, जो उन्होंने अपनी बेग़म मुमताज महल के लिए नहीं, बल्कि अपने लिए देखा था। काले ताजमहल का सपना। शाहजहां चाहते थे, कि मुमताज के लिए बने सफेद तामहल के बाद वे अपने लिए काला ताजमहल बनवायें, लेकिन जब उन्हें उनके बेटे औरंगज़ेब ने कैद कर लिया तो ये सपना हमेशा-हमेशा के लिए सपना बनकर ही रह गया।
एक बात जो हैरान करती है वो ये है, कि ताजमहल का रंग बदलता है। ताजमहल अलग-अलग पहर में अलग अलग रंगों में दिखाई देता है और इस हैरानी की वजह है ताजमहल का संगमरमरीय सफेद रंग का होना। सफेद रंग हर रंग में मिल कर उसी का रंग ले लेता है। सुबह देखने पर ताजमह गुलाबी दिखता है, शाम को दूधिया सफेद, शाम होते-होते तक नारंगी और रात की चांदनी में सुनहरा दिखता है।
कहा जाता है, कि ताजमहल शाहजहां ने नही बल्कि समुद्रगुप्त ने छठवीं शताब्दी में बनवाया था। जिस जगह पर हम आज की तारीख में ताजमहल जैसी भव्य इमारत देख पा रहे हैं, वहां पहले शिव मंदिर था, जिसे तेजोमहालय के नाम से जाना जाता था और उसकी छत से टपकने वाले पानी शिव जी के शिवलिंग पर बूंद-बूंद करके टपकता था।
(किसी भी बात के पीछ कई तरह के रहस्य और मान्यताएं छुपी होती हैं। हमारी यह स्टोरी किसी भी तरह के सच के होने न होने का दावा नहीं करती। इस कॉलम के द्वारा हम सिर्फ उन चीज़ों के बारे में बात करेंगे, जो रहस्यमयी हैं और लोगों के कहे सुने पर आधारित हैं, इसलिए रहस्य अब भी बरकरार है।)