लोकसभा चुनाव 2019: इन चुनावों से उद्योगों को क्या चाहिए?
भारत में उद्योग की रीढ़ माने जाने वाले माइक्रो, स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइजेज (एमएसएमई) की देश के कुल उत्पादन में 45 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी है। भारत में लगभग 40 मिलियन MSME हैं और इस मामले में चीन के बाद भारत दूसरी रैंक पर है। इन उद्यमों का देश के कुल निर्यात में 40 प्रतिशत से अधिक का योगदान है और सकल घरेलू उत्पाद में नौ प्रतिशत का योगदान है।
केपीएमजी की एक स्टडी के अनुसार, भारत का हथकरघा (handloom) और हस्तशिल्प (handicrafts) उद्योग निर्यात में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत को रेशम (सिल्क) की सभी व्यावसायिक रूप से उपयोगी किस्मों के उत्पादन के लिए विश्व में सबसे अच्छा माना जाता है। हाल के वर्षों में, यह सेक्टर बड़े पैमाने पर उपभोग के सामान के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक और बिजली के उपकरणों, दवाओं व फार्मास्यूटिकल्स के एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरा है। दुनिया भर की बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी इस भारतीय बाजार में कदम रखना चाहती हैं।
जहां MSMEs का प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था में काफी मजबूत है, तो वहीं दूसरी तरफ इसमें काफी उतार-चढ़ाव भी देखे गए हैं। सरकार द्वारा MSMEs के सशक्तिकरण के लिए विभिन्न योजनाओं को लागू करने के बावजूद, 2016 में GST के कार्यान्वयन और ऋण उपलब्धता (credit availability) की कमी ने इस सेक्टर को झटका दिया है।
हर पांच साल में, आम चुनावों से ठीक पहले, राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्रों में एमएसएमई सेक्टर को लुभाने के लिए तमाम वादे करते हैं। प्रत्येक पार्टी भारतीय उद्योग की रीढ़ को मजबूत करने के लिए योजनाओं और विधियों को लागू करने का वादा करती है। लेकिन छोटे पैमाने के उद्यमियों के अनुसार, अभी बहुत कुछ किया जाना है।
भाजपा ने हाल ही में आम चुनाव 2019 से पहले अपना घोषणापत्र जारी किया, जिसमें कहा गया कि यदि पार्टी दोबारा सत्ता में आई तो छोटे व्यापारियों के हितों की रक्षा के लिए, जीएसटी के तहत पंजीकृत सभी व्यापारियों को 10 लाख रुपये का दुर्घटना बीमा प्रदान करेगी। दूसरी ओर, कांग्रेस पार्टी के घोषणापत्र में एमएसएमई को तीन साल की अवधि के लिए सभी लागू कानूनों से छूट देने का वादा किया गया है।
SMBStory ने कुछ MSME उद्यमियों से बात की और जाना कि वे 2019 के लोकसभा चुनावों से क्या चाहते हैं।
पॉजिटिव कंज्यूमर सेंटीमेंट, विश्व अर्थव्यवस्था के उदारीकरण और गतिशील शिक्षा जैसे सूक्ष्म कारकों के कारण पिछले कुछ वर्षों में, MSMEs के लिए देश में एक सुरक्षित माहौल बना है। हालाँकि, MSMEs को सशक्त बनाने के लिए, सरकार को उन्हें पोषण देने के दृष्टिकोण को अपनाने की आवश्यकता है।
भारत में आईवीएफ के शीर्ष निर्माताओं में से एक 'ऐश्वर्या हेल्थकेयर' के संस्थापक नीरज कुमार नीर कहते हैं, “सरकार को एमएसएमई के खिलाफ जाकर जाकर एक्शन नहीं लेना चाहिए, बल्कि उनको सपोर्ट करना चाहिए और उनकी सहायता करनी चाहिए। एक बार जब यह हासिल हो गया तो उसके बाद सिस्टम को घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों बाजारों में मान्यता, अभिनन्दन और नियमित प्रशिक्षण के माध्यम से इन व्यवसायों को बढ़ावा देना चाहिए।”
MSME सेक्टर के लिए जागरूकता कार्यक्रमों की सख्त जरूरत है। स्प्रिंगफिट मैट्रेस के निदेशक निपुन गुप्ता कहते हैं, “एमएसएमई मंत्रालय केवल उस उद्योग को मान्यता दे रहा है जो आगे बढ़ रहा है लेकिन इसके अलावा भी सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली विभिन्न योजनाएं और लाभ हैं जिनके बारे में लोगों को जानकारी नहीं है। उन्हें जागरूकता कार्यक्रम शुरू करना चाहिए ताकि एमएसएमई लाभ उठा सकें।”
सरकार ने एमएसएमई सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न फंडिंग योजनाएं शुरू की हैं। महिला उद्यमियों के साथ-साथ उन लोगों के लिए भी योजनाएं हैं जो अपनी पहचान बनाने के लिए तैयार हैं। लेकिन इस प्रक्रिया को महिला उद्यमियों को समझने की जरूरत है।
कृष्णा इंडस्ट्रीज की संस्थापक कीर्ति अग्रवाल कहती हैं, “एमएसएमई योजनाओं का लाभ मिलना मुश्किल है क्योंकि इसमें शामिल प्रक्रियाएँ लंबी हैं। कई योजनाओं का उचित और व्यावहारिक कार्यान्वयन नहीं होता है।”
क्योरवेदा की संस्थापक भावना आनंद शर्मा का मानना है कि योजनाओं से हकटकर कुछ कारणों के चलते पुरुषों की संसाधनों तक पहुंच आसान है। वह कहती हैं, "कई कारण हैं जैसे कि काम के घंटों और पुरुष सहायता समूहों से अलग नेटवर्किंग एक्सटेंशन आदि। दुर्भाग्य से, व्यापार में ज्यादा महिलाएं नहीं हैं और न ही पर्याप्त समर्थन संरचनाएं हैं।"
पारंपरिक छोटे पैमाने के उद्यम सरकार से अधिक ध्यान चाहते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वे तेजी से बढ़ रही इस डिजीटल दुनिया में खो गए हैं। रामनारायण ब्लू आर्ट पॉटरी के विमल प्रजापत कहते हैं, "एमएसएमई मंत्रालय को अपने प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ाना चाहिए क्योंकि इससे छोटे पैमाने के व्यवसायों तक पहुँचने में मदद मिलती है और फंडिंग में सहायता मिलती है।
फिक्की (FICC) की एक स्टडी के अनुसार, समग्र औद्योगिकीकरण रणनीति और रोजगार सृजन में इस सेक्टर के रणनीतिक महत्व के बावजूद, एमएसएमई सेक्टर को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। तकनीकी अप्रचलन (Technological obsolescence) और फाइनेंशियल समस्याएं इस क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं, साथ ही साथ ऋण की उच्च लागत, नई तकनीक तक कम पहुंच, बदलते रुझानों के लिए खराब अनुकूलनशीलता, अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंच में कमी, कुशल श्रमशक्ति की कमी, अपर्याप्त बुनियादी सुविधाएं जिसमें बिजली, पानी, सड़क आदि शामिल हैं, जैसी कई बाध्यताएं हैं। इसके अलावा कराधान (taxation स्टेट सेंट्रल), श्रम कानून, पर्यावरण मुद्दे आदि से संबंधित नियामक मुद्दे भी इसकी विकास प्रक्रिया से जुड़े हैं।
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