भोपाल गैस त्रासदी: यूनियन कार्बाइड को नहीं देना होगा पीड़ितों को अधिक मुआवजा, केंद्र की याचिका खारिज
1984 के भोपाल गैस हादसे में 3000 से अधिक लोगों की मौत हुई थी. इस घटना के कारण पर्यावरण को भी बेहद क्षति पहुंची थी. केंद्र ने मुआवजा राशि बढ़ाने के लिए दिसंबर 2010 में शीर्ष अदालत में सुधारात्मक याचिका दाखिल की थी.
1984 के भोपाल गैस पीड़ितों को अधिक मुआवजे की मांग वाली केंद्र सरकार की याचिका को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मंगलवार को खारिज कर दिया. केंद्र सरकार ने मुआवजे की राशि घटना के लिए जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (यूसीसी) की जगह लेने वाली कंपनियों से दिलवाने के लिए याचिका दाखिल की थी.
बता दें कि, 1984 के भोपाल गैस हादसे में 3000 से अधिक लोगों की मौत हुई थी. इस घटना के कारण पर्यावरण को भी बेहद क्षति पहुंची थी. केंद्र ने मुआवजा राशि बढ़ाने के लिए दिसंबर 2010 में शीर्ष अदालत में सुधारात्मक याचिका दाखिल की थी.
अपनी याचिका में केंद्र सरकार ने यूसीसी की उत्तराधिकारी कंपनियों से 7,844 करोड़ रुपये मांगे थे. हालांकि, जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इस मुद्दे को फिर से खोलना "केवल भानुमती का पिटारा खोलकर यूसीसी के पक्ष में काम करेगा और दावेदारों के लिए हानिकारक होगा." पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति ए. एस. ओका, न्यामयूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी भी शामिल थे.
सुप्रीम कोर्ट ने दावेदारों की जरुरतों को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार को भारतीय रिजर्व बैंक के पास पड़े 50 करोड़ रुपये को इस्तेमाल करने का निर्देश दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने अनदेखी करने के लिए केंद्र सरकार की खिंचाई भी की. संविधान पीठ ने कहा, 'मुआवजे में कमी को पूरा करने की जिम्मेदारी भारत सरकार पर थी. बीमा पॉलिसियों को लेने में विफलता केंद्र की घोर लापरवाही है और इस न्यायालय के निर्णय का उल्लंघन है. केंद्र इस पहलू पर लापरवाह नहीं हो सकता है और यूसीसी पर जिम्मेदारी तय करने के लिए इस अदालत से अपील करता है.'
पीठ ने कहा, 'दो दशक बाद भी मामले के निपटारे के लिए कोई तार्किक कदम नहीं उठाने के कारण हम भारत सरकार से असंतुष्ट हैं.
बीते 12 जनवरी को मामले की सुनवाई के दौरान यूसीसी की उत्तराधिकारी कंपनियों ने अदालत को बताया था कि 1989 में केंद्र सरकार और कंपनी एक समझौते पर पहुंचे थे और उसके बाद से रुपये के मूल्य में बदलाव के आधार पर भोपाल गैस पीड़ितों के लिए तय किए जाने वाले मुआवजे की राशि में बदलाव नहीं किया जा सकता है.'
इसके बाद, अदालत ने केंद्र सरकार की ओर से पेश होने वाले अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमानी से कहा था, 'किसी और के जेब में हाथ डालकर पैसे निकालना बहुत आसान है. अपने जेब में हाथ डालें और पैसे दें और फिर देखें कि आप उनकी (UCC) जेब से पैसे निकाल सकते हैं या नहीं.'
3000 की मौत हुई थी और 1 लाख लोग प्रभावित हुए थे
उल्लेखनीय है कि 2 और 3 दिसंबर 1984 की मध्यरात्रि को यूनियन कार्बाइड कारखाने से जहरीली ‘मिथाइल आइसोसाइनेट’ गैस रिसने के बाद 3,000 से अधिक लोग मारे गए थे और 1.02 लाख से अधिक प्रभावित हुए थे.
इस त्रासदी में जिन लोगों की जान बची वे जहरीली गैस के रिसाव के कारण बीमारियों का शिकार हो गए. वे पर्याप्त मुआवजे और उचित चिकित्सा उपचार के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं.
मुख्य आरोपी की हो चुकी है मौत
सात जून 2010 को भोपाल की एक अदालत ने यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) के सात अधिकारियों को दो साल के कारावास की सजा सुनाई थी.
यूसीसी के तत्कालीन अध्यक्ष वारेन एंडरसन मामले में मुख्य आरोपी था, लेकिन मुकदमे के लिए उपस्थित नहीं हुए था. एक फरवरी 1992 को भोपाल सीजेएम अदालत ने उसे भगोड़ा घोषित कर दिया था.
भोपाल की अदालतों ने 1992 और 2009 में दो बार एंडरसन के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया था. सितंबर 2014 में उनकी मृत्यु हो गई थी.
Edited by Vishal Jaiswal