कभी भारत के कॉरपोरेट वर्ल्ड के थे बड़े नाम, आज जेल और मुकदमों से है रिश्ता
कई बड़े नाम तो ऐसे हैं, जो आज भी सलाखों के पीछे हैं लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें जमानत तो मिल गई है लेकिन जांच अभी भी जारी है.
भारत के कॉरपोरेट वर्ल्ड में कई ऐसे बड़े नाम हैं, जो कभी अपने कारोबार की कामयाबी के लिए काफी फेमस थे. हर जगह उनके चर्चे रहते थे. लेकिन फिर उनके घोटाले सामने आए और वे जितने नामी थे, उतने ही ज्यादा बदनाम हो गए. कई बड़े नाम तो ऐसे हैं, जो आज भी सलाखों के पीछे हैं लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें जमानत तो मिल गई है लेकिन जांच अभी भी जारी है. साल 2011 के बाद से भारत में ऐसे कई मामले सामने आए, जब नामी कंपनियों/एंटिटी (India Inc) के टॉप लाइन प्रमोटर और सीईओ को गिरफ्तार किया गया. ये लोग धोखाधड़ी, बेइमानी, बैंक लोन फ्रॉड, रिश्वत देना आदि मामलों में सलाखों के पीछे गए. सीबीआई (CBI), प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate, ED) जैसी जांच एजेंसियां इन टॉप प्रमोटर्स और सीईओ के पीछे हाथ धोकर पड़ी हैं, यहां तक कि कुछ मामलों में संपत्ति भी जब्त की गई है. डालते हैं एक नजर भारत के कॉरपोरेट सेक्टर के ऐसे ही कुछ बड़े नामों और मामलों पर...
संजय चंद्रा
यूनिटेक (Unitech) के पूर्व एमडी संजय चंद्रा (Sanjay Chandra) अप्रैल 2017 से सलाखों के पीछे हैं. संजय और उनके भाई अजय चंद्रा की गिरफ्तारी गुरुग्राम के सेक्टर 70 में एक हाउसिंग प्रॉजेक्ट पूरा न कर पाने के आरोप में हुई थी. दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने उन्हें गिरफ्तार किया था. संजय के खिलाफ कई एफआईआर हुईं, जिनमें कई आरोप लगे. इनमें दिल्ली पुलिस की ओर से धोखाधड़ी, बेइमानी और आपराधिक षड़यंत्र; प्रवर्तन निदेशालय की ओर से मनी लॉन्ड्रिंग और दिसंबर 2020 में सीबीआई की ओर से बेइमानी व केनरा बैंक को 198 करोड़ रुपये का चूना लगाने के लिए आपराधिक षड़यंत्र शामिल है. सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दावा किया गया है कि यूनिटेक ने 29800 होम बायर्स से 14270 करोड़ रुपये इकट्ठे किए. इसमें से केवल 13364 करोड़ का लेखाजोखा बैंक स्टेटमेंट्स में मिला. ईडी 537 करोड़ रुपये के एसेट्स अटैच कर चुका है. जमानत याचिकाएं खारिज हो चुकी हैं.
मालविंदर सिंह और शिविंदर सिंह
रेलिगेयर एंटरप्राइजेज के पूर्व प्रमोटर मालविंदर और शिविंदर को दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने अक्टूबर 2019 में गिरफ्तार किया था. ये दोनों अभी तिहाड़ जेल में हैं. आरोप है कि दोनों भाइयों और इनके साथियों ने रेलिगेयर फिनवेस्ट लिमिटेड के 2400 करोड़ रुपये के फंड का गलत इस्तेमाल किया. ईडी ने दोनों भाईयों पर मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया है. जांच चल रही है.
नीरव मोदी
हीरा कारोबारी नीरव मोदी का नाम इंडियन ज्वैलर्स में कभी बहुत पॉपुलर था. बड़ी-बड़ी हीरोइनें नीरव मोदी के ब्रांड के लिए विज्ञापन करती थीं. यह नाम आज भी पॉपुलर है लेकिन अपने घोटाले के लिए. नीरव ने अपने मामा मेहुल चोकसी के साथ मिलकर पंजाब नेशनल बैंक में 14000 करोड़ रुपये का घोटाला किया, जो साल 2018 में सामने आया. लेकिन पर्दाफाश होने से पहले ही दोनों देश छोड़कर फरार हो गए. नीरव मोदी के खिलाफ लंदन में मुकदमा चल रहा है और उसे भारत वापस लाने की कोशिशें की जा रही हैं. इस वक्त नीरव मोदी लंदन की एक जेल में बंद है. नीरव मोदी ने लेटर ऑफ अंडरटेकिंग और स्विफ्ट मैसेजिंग सिस्टम के दुरुपयोग के जरिए स्कैम को अंजाम दिया. बैंक इसी सिस्टम से विदेशी लेन देन के लिए LOUs के जरिए दी गई गारंटी को ऑथेंटिकेट करते हैं.
नीरव मोदी 2011 में बिना तराशे हीरे आयात करने के लिए लाइन ऑफ क्रेडिट के लिए पीएनबी की एक ब्रांच गया और कुछ कर्मचारियों के साथ मिलकर फर्जी एलओयू जारी किए गए. इन फर्जी एलओयू के आधार पर भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं ने लोन दिया. जब फर्जी एलओयू मैच्योर होने लगा तो पीएनबी के उन कर्मचारियों ने 7 साल तक दूसरे बैंकों की रकम का इस्तेमाल इस लोन को रीसाइकिल करने के लिए किया. जनवरी 2018 में जब नीरव मोदी ने फिर से पीएनबी के साथ फर्जीवाड़ा करना चाहा तो नए अधिकारियों ने गलती पकड़ ली और घोटाला बाहर आ गया.
राणा कपूर
राणा कपूर यस बैंक (Yes Bank) के कोफाउंडर हैं. उनके खिलाफ 25000 करोड़ रुपये के लोन फ्रॉड की जांच चल रही है. राणा कपूर की गिरफ्तारी मार्च 2020 में हुई थी और वह अभी नवी मुंबई की तलोजा सेंट्रल जेल में हैं. कपूर के खिलाफ सीबीआई ने तीन एफआईआर दर्ज की हैं और जांच जारी है. DHFL को 3700 करोड़ रुपये, ईजीगो वन ट्रैवल एंड टूर्स लिमिटेड को 900 करोड़ रुपये और ओइस्टर बिल्डवेल प्राइवेट लिमिटेड को 466 करोड़ रुपये का लोन सैंक्शन करने के मामले में एफआईआर दर्ज की गई हैं. सीबीआई द्वारा दर्ज किए गए मामलों के आधार पर ईडी ने कपूर और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया. कपूर और उनके परिवार के सदस्यों के स्वामित्व वाली 1250 करोड़ रुपये की प्रॉपर्टी को ईडी अटैच कर चुका है.
रवि पार्थसारथी
रवि पार्थसारथी (Ravi Parthasarathy), आईएलएंडएफएस ग्रुप के फाउंडर और पूर्व चेयरमैन हैं. चेन्नई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने पार्थसारथी को 12 जून 2021 को गिरफ्तार किया था. गिरफ्तारी 1 लाख करोड़ रुपये के आईएलएंडएफएस घोटाले में की गई, जिसके मास्टरमाइंड पार्थसारथी थे. आरोप है कि आईएलएंडएफएस ग्रुप की 350 से ज्यादा कंपनियों को रवि पार्थसारथी के नेतृत्व में तत्कालीन मैनेजमेंट ने घोटाला और जालसाजी करने के व्हीकल के रूप में इस्तेमाल किया.
1 लाख करोड़ रुपये के घोटाले में 63 Moons Tech के 200 करोड़ रुपये डूब गए थे. पार्थसारथी के खिलाफ ED ने भी मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत जालसाजी, घोखाधड़ी और वित्तीय अनियममितता के साथ फाइनेंशियल फ्रॉड का केस दर्ज किया हुआ है. आईएलएंडएफएस ग्रुप पर कुल 91,000 करोड़ रुपये का कर्ज है. साल 2018 की जुलाई-सितंबर तिमाही में जब आईएलएंडएफएस की दो सहायक कंपनियों ने कर्ज के भुगतान और इंटर कॉरपोरेट डिपॉजिट्स के मामले में डिफॉल्ट करना शुरू किया, तब आईएलएंडएफएस में हुए घोटाले की जानकारी सामने आई. पार्थसारथी इस वक्त चेन्नई जेल में ज्यूडिशियल कस्टडी में हैं.
कपिल और धीरज वधावन
DHFL के पूर्व प्रमोटर वधावन भाइयों पर एक तो यस बैंक के 3700 करोड़ रुपये के लोन डिफॉल्ट केस में जांच चल रही है. यस बैंक ने डीएचएफएल में शॉर्ट टर्म डिबेंचर्स के रूप में 3700 करोड़ रुपये निवेश किए थे. इसे डीएचएफएल ने रिडीम नहीं किया. यस बैंक ने डीएचएफएल की कंपनियों में से एक को 750 करोड़ रुपये का लोन भी सैंक्शन किया था, उस वक्त राणा कपूर यस बैंक के मुखिया थे. इसी बीच कपिल वधावन ने कथित रूप से 600 करोड़ रुपये कपूर और उनके परिवार के सदस्यों को दिए. यह पैसा डीएचएफएल की ओर से बिल्डर लोन के रूप में डीओआईटी अर्बन वेंचर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को दिया गया, जिसके डायरेक्टर्स में राणा कपूर की बेटी रोशनी शामिल हैं.
वधावन भाइयों के खिलाफ, कर्मचारियों का PF उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन, DHFL और दूसरी हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों में निवेश करने की कथित अनियमितताओं के मामले में भी जांच चल रही है. ईडी भी इनके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग केस में जांच कर रहा है. ईडी का कहना है कि वधावन भाइयों ने कथित रूप से 5 शेल कंपनियों के माध्यम से वर्ली मुंबई में इकबाल मिर्ची से 3 प्रॉपर्टी खरीदी थीं. कीमत 111 करोड़ रुपये दर्शाई गई है लेकिन पेमेंट हवाला चैनल से दुबई 150 करोड़ रुपये भेजे गए. शेल कंपनियों को लोन DHFL ने दिया और इस लोन का एक हिस्सा कथित रूप से मिर्ची को पेमेंट में इस्तेमाल हुआ. यह भी दावा है कि कपिल और धीरज वधावन ने 79 पेपर कंपनियों की मदद से 1 लाख फर्जी ग्राहकों को लोन के तौर पर 12773 करोड़ रुपये की गड़बड़ी की. ईडी यस बैंक मामले में 1411.9 करोड़ रुपये और मिर्ची मामले में 776 करोड़ रुपये की संपत्ति अटैच कर चुका है. अभी वधावन भाई तलोजा सेंट्रल जेल में ज्यूडिशियल कस्टडी में हैं.
सुब्रत राय सहारा
सहारा हाउसिंग बॉन्ड घोटाला साल 2010 में सामने आया. घोटाले की रकम 24 हजार करोड़ रुपये थी. सहारा ग्रुप की दो कंपनियों SIRECL और SHICL के जरिए साल 2008 से ऑप्शनली फुली कन्वर्टिबल डिबेंचर्स (OFCDs) की मदद से निवेशकों से करीब 24 हजार करोड़ रुपये उठाए गए. साल 2009 में जब सहारा ग्रुप की कंपनी सहारा प्राइम सिटी ने आईपीओ लाने का प्लान किया तो बाजार नियामक सेबी ने ड्राफ्ट प्रोसपेक्टस की जांच की और फंड रेजिंग में अनियमितताएं पाईं. सेबी को शिकायत भी मिली कि SIRECL और SHICL, OFCDs जारी कर रही हैं और गलत तरीके से फंड जुटा रही हैं. सेबी ने जांच करते हुए सहारा ग्रुप से सवाल किया कि फंड रेजिंग के लिए सेबी की इजाजत क्यों नहीं ली गई. इस पर सहारा ने दावा किया कि कथित बॉन्ड हाइब्रिड प्रॉडक्ट हैं और सेबी के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं. मामला थमा नहीं और सेबी ने दोनों कंपनियों को बैन कर दिया और निवेशकों के पैसे 15 फीसदी रिटर्न के साथ वापस देने को कहा. इसके बाद मामला कोर्ट तक जा पहुंचा.
ऐसी भी रिपोर्ट सामने आईं कि जिन निवेशकों से फंड जुटाया गया, उनमें से कई तो हकीकत में हैं ही नहीं. यानी फर्जी निवेशकों के नाम पर मनी लॉन्ड्रिंग की गई. ग्रुप सुप्रीम कोर्ट में फंड के सोर्स के सबूत देने में नाकाम रहा. साल 2014 में सहारा ग्रुप के कर्ता धर्ता सुब्रत राय सहारा को गिरफ्तार कर लिया गया और अभी वह जेल में हैं.