सैलरी लौटाने का दावा करने वाले बिहार के प्रोफेसर के खाते में सिर्फ 970 रुपये, माफी मांगकर चेक वापस लिया
बिहार के बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी, मुजफ्फरपुर के एक कॉलेज के एक टीचर ने अपने कर्तव्यों का पूरी तरह से पालन न कर पाने की बात कहते हुए अपने 2 साल 9 महीने की पूरी 23 लाख 82 हजार 228 रुपये का सैलरी वापस लौटाने का दावा किया था.
कॉलेज में छात्र न होने और उन्होंने पढ़ाने का अपना दायित्व पूरा न कर पाने के कारण अपनी 2 साल 9 महीने की पूरी 23 लाख 82 हजार 228 रुपये की सैलरी लौटाने का दावा करने वाले बिहार के बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी, मुजफ्फरपुर स्थित नीतीश्वर कॉलेज के 33 वर्षीय असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. ललन कुमार ने अब माफी मांग ली है.
नीतीश्वर कॉलेज के 33 वर्षीय असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. ललन कुमार ने माफी मांगने से पहले YourStory से इस पूरे मामले पर विस्तार से बात की थी.
आपने अपनी ज्वाइनिंग से लेकर अब तक की सैलरी क्यों लौटा दी?
बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित नीतीश्वर कॉलेज में मेरी नियुक्ति 24 सितंबर, 2019 को हुई थी. मैं हिंदी साहित्य का टीचर हूं जिसमें 1100 से अधिक बच्चों ने प्रवेश लिया है. हालांकि, यहां पर पढ़ने के लिए बच्चे ही नहीं आते हैं. अब जब मैं एक टीचर के कर्तव्यों को पूरा नहीं कर पाया तो मैं उस सैलरी का हकदार नहीं हूं. यही कारण है कि मैंने अपनी ज्वाइनिंग से लेकर मई, 2022 तक खाते में आई हुई पूरी सैलरी का हिसाब कर उसे विश्वविद्यालय प्रशासन को लौटा दिया है.
कॉलेज में बच्चों के नहीं आने का क्या कारण है?
शुरू में मुझे ऐसा लगा कि हिंदी साहित्य में रूचि न होने के कारण छात्र क्लास में नहीं आ रहे होंगे. हालांकि, मैंने देखा कि साइंस, मैथ व अन्य विषयों के छात्र भी क्लास करने नहीं आते हैं. यहां पर पढ़ाई-लिखाई का माहौल ही नहीं है.
अगर छात्र कॉलेज में पढ़ाई करने नहीं आते हैं तो फिर वे पास कैसे होते हैं?
यहां पर बच्चे केवल प्रवेश लेते हैं और फिर परीक्षा देने आते हैं और वे पास हो जाते हैं. यह तो डिस्टेंट एजुकेशन की तरह है. अगर छात्रों को पढ़ाई किए बिना पास होने की सुविधा यहीं पर उपलब्ध है तो फिर दूरस्थ शिक्षा निदेशालय की क्या जरूरत है? उसे बंद कर दिया जाना चाहिए.
आपने सैलरी वापस लेने का कदम उठाने से पहले क्या विश्वविद्यालय प्रशासन से इस बारे में कोई बात की थी?
नियुक्ति के बाद जब मैंने देखा कि छात्र पढ़ाई करने के लिए नहीं आ रहे हैं. कोविड-19 महामारी के दौरान छात्र ऑनलाइन क्लासेज में भी हिस्सा नहीं ले रहे थे. इसके बाद मैंने प्रशासन के साथ कई बार इस मुद्दे को उठाया. मैंने उनसे मांग की कि मुझे किसी ऐसी जगह ट्रांसफऱ कर दिया जाए तो जहां छात्र आते हों और मैं उन्हें पढ़ाकर टीचर के कर्तव्यों को पूरा कर सकूं. हालांकि, 6 बार ट्रांसफर आदेश निकाले जाने के बावजूद उसमें मेरा नाम नहीं शामिल था.
आपने अपनी सैलरी कब वापस की और क्या इसे प्रशासन ने स्वीकार कर लिया है?
मैंने मंगलवार को अपना चेक ले जाकर कुलसचिव आरके ठाकुर को सौंपा. उन्होंने मुझे उसे वापस लेने का अनुरोध किया लेकिन मैं अपने फैसले पर अडिग रहा. इसके बाद सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए उन्होंने चेक की कॉपी अपने पास रख ली और मेरा ओरिजिनल चेक मुझे लौटा दिया. अब वाइस चांसलर की मंजूरी मिलने के बाद मैं उन्हें चेक सौंप दूंगा.
क्या सैलरी लौटाने का कदम आपको दूसरे कॉलेज में ट्रांसफर नहीं किए जाने के विरोध में है?
मेरा कॉलेज या विश्वविद्यालय प्रशासन से कोई मनमुटाव नहीं है. मैं तो उनसे लगातार केवल यही मांग कर रहा हूं कि या तो यहां पर पढ़ाई का माहौल बनाया जाए या फिर मुझे किसी ऐसे कॉलेज में भेज दिया जाए जहां पर मैं अपने टीचर के कर्तव्यों का पूरी तरह से पालन कर सकूं. यहां आस-पास कई ऐसे कॉलेज हैं, जहां पर पढ़ाई-लिखाई का माहौल है. लंगत सिंह कॉलेज, आरडीएस कॉलेज और आरबीबीएम कॉलेज में मुझे भेजा जा सकता है.
कॉलेजों में पोस्टिंग वरीयता क्रम के आधार पर होती है. आपकी पोस्टिंग भी इसी आधार पर हुई होगी. फिर क्या समस्या है?
विश्वविद्यालय की रैंकिंग में मेरा स्थान 15वां था. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या पोस्टिंग वरीयता क्रम के आधार पर हुई है. मैं बता सकता हूं कि 19वें या 20वें या 34वें क्रम वालों का अच्छे कॉलेजों में भेजा गया है. यहां पर तो पिक एंड चूज के आधार पर किसी को भी कहीं भी उठाकर फेंक दिया गया.
आपकी पढ़ाई कहां-कहां से हुई है?
मैंने बिहार के वैशाली से इंटरमीडिएट किया है. इसके बाद मैंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया और इस दौरान मुझे एकेडमिक एक्सीलेंस प्रेसिडेंट अवार्ड मिला. मैंने जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) से पोस्ट ग्रेजुएशन किया और इसी दौरान मेरा नेट-जेआरएफ हो गया. इसके बाद मैंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पीएचडी और एमफिल की डिग्री ली. मैं पीएचडी में गोल्ड मेडलिस्ट हूं.
कर्तव्यों का पालन न कर पाने के कारण सैलरी लौटाने के आपके कदम की सोशल मीडिया पर काफी तारीफ हो रही है. आप इसको कैसे देखते हैं?
लोगों की तारीफों के लिए मैं शुक्रगुजार हूं. मेरा बस यही कहना है कि मैं एक टीचर हूं और मेरा काम छात्रों को पढ़ाना है. मैंने दिल्ली और जेएनयू जैसी जगहों से पढ़ाई की है. यहां के अधिकतर टीचरों के पास उतनी डिग्री नहीं है. मुझे जो काम सौंपा गया है, मैं केवल उसे पूरा करना चाहता हूं. मैं चाहता हूं कि विश्वविद्यालय प्रशासन इसमें मेरा सहयोग करे.
प्रोफेसर ने मांगी माफी, कहा- भावनाओं में बह गया था
सैलरी लौटाने का मामला सामने आने के बाद प्रभात खबर ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि ललन कुमार ने अपनी सैलरी के 23.80 लाख लौटाने के लिए जिस खाते से जुड़ा चेक साइन करके प्रशासन को दिया था, उस खाते में केवल 970.95 रुपये ही थे.
वहीं, इसके बाद सोशल मीडिया पर उनका एक माफीनामा भी सामने आया. ललन कुमार ने माफीनामे में लिखा कि मैं कुछ निर्णय की स्थिति में अपने आप को नहीं पा रहा था। इसलिए काफी दुखी था। मैं अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर पाया। भावावेश में मैंने ट्रांसफर आवेदन के साथ अपनी पूरी वेतन राशि का चेक प्रस्तुत किया। परंतु बाद में कुछ वरिष्ठ लोगों और सहकर्मियों के साथ चर्चा करने के बाद यह समझ में आ गया कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था।
उन्होंने आगे लिखा कि महाविद्यालय और विश्वविद्यालय की व्यवस्था के अनुरूप ही आचरण अपेक्षित है। मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगा कि भविष्य में कोई भी भावावेशपूर्ण कदम नहीं उठाया जाए। इस संदर्भ में जो भी लिखित या मौखिक वक्तव्य मेरी ओर से जारी किए गए हैं उन सब को मैं वापस लेता हूं।
इससे पहले YourStory ने ललन कुमार का इंटरव्यू करने के दौरान उनसे पूछा था कि सैलरी लौटाने का उनका यह कदम कहीं ट्रांसफर कराने की रणनीति के तहत तो नहीं उठाया गया है. तब उन्होंने इससे साफ तौर पर इनकार कर दिया था. हालांकि, अब उनके बैंक अकाउंट में मौजूद राशि और माफीनामे की जानकारी सामने आने के बाद ऐसा लगता है कि उन्होंने यह कदम ट्रांसफर के लिए दबाव बनाने के लिए उठाया था.
YourStory ने डॉ. ललन कुमार से बात करने और उनका पक्ष जानने के लिए उन्होंने कई कॉल और मैसेज किए लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया. डॉ. ललन कुमार का जवाब आने पर खबर को अपडेट किया जाएगा.
(इस खबर को डॉ. ललन कुमार का माफीनामा सामने आने के बाद अपडेट किया गया है.)