जिंदगी की कड़ी आंच पर निखरे अरबपति पिता की संतान द्रव्य ढोलकिया
"सालाना छह हजार करोड़ रुपए के टर्नओवर वाली सूरत (गुजरात) की डायमंड कंपनी ‘हरि कृष्णा एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड’ के सर्वेसर्वा सावजी ढोलकिया के पुत्र द्रव्य जब अमेरिका से एमबीए कर इंडिया लौटे तो उन्हे इतने बड़े अंपायर का मालिक होने से पहले पिता की शर्तों पर सामान्य नौकरियों से दिन गुजारने पड़े। यही वो आंच थी जिसमें तप कर वो सोना बने।"
आम आदमी की कतार में खड़े रहकर ही बड़े होने की संभावनाएं आसान हो पाती हैं। तभी तो सालाना छह हजार करोड़ रुपए के टर्नओवर वाली सूरत (गुजरात) की डायमंड कंपनी ‘हरि कृष्णा एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड’ के सर्वेसर्वा सावजी ढोलकिया अमेरिका में पढ़े-लिखे अपने पुत्र द्रव्य ढोलकिया को मालिक बनने से पहले कहीं सामान्य सी नौकरी में अपनी मेहनत-मशक्कत के बूते मजबूत आदमी बनने की सीख देते हैं। द्रव्य भी पिता की इस तरह की जटिल तालीम को ही अपने बेहतर भविष्य की सबसे अच्छी कुंजी मानकर उसी राह पर चल पड़ते हैं।
गौरतलब है कि ‘हरि कृष्णा एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड’ दुनिया के 71 देशों को हीरा निर्यात करती है। सावजी ढोलकिया हर साल एक दिन के लिए पूरी दुनिया के मीडिया की सुर्खियों में होते हैं, जब दीपावली पर वह अपनी कंपनी के पांच हजार से अधिक कर्मचारियों को नई-महंगी कारें और 2-बीएचके फ्लैट्स गिफ्ट करते हैं। इसी बहाने वह अपनी सालाना कमाई का एक बड़ा हिस्सा अपने कर्मचारियों के बीच बांट देते हैं। ऐसी कंपनी के मालिक का बेटा किसी दुकान पर सामान्य सी नौकरी करे, किसी के लिए भी हैरत की बात हो सकती है लेकिन द्रव्य ढोलकिया कहते हैं - 'ऐसी नौकरी से उन्हे जो पहली सैलरी मिली तो बिना किसी के समझाए समझ में आ गया कि पैसे की तंगी क्या चीज होती है। जो लोग तंगी से गुजरते हैं, उनकी क्या-क्या मजबूरियां होती हैं। हम आमतौर पर इस पर ध्यान नहीं देते लेकिन यही बेहत और मजबूत भविष्य के लिए सबसे अधिक गौर करने वाली बात होती है।'
दरअसल, द्रव्य के पिता सावजी अपनी कंपनी में जब भी किसी नए कर्मचारी को भर्ती करते हैं तो उसे सबसे पहले पांच साल की ट्रेनिंग दी जाती है। इस दौरान अगर वह निखर कर कंपनी के काम लायक बन जाता है, उसे रेगुलर कर दिया जाता है अन्यथा उसका हिसाब-किताब हो जाता है। सावजी ने कभी खुद नौकरी से ही अपनी रोजी-रोटी की शुरुआत की थी। कुछ साल बाद उधार लेकर बिजनेस शुरू किया। दस साल तक हीरे तराशते रहे थे, तब कहीं दशकों की साधना के बाद आज उनका ‘हरि कृष्णा एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड’ अंपायर दुनिया की नजरों में बड़ा हाउस बन चुका है।
वही सबक लेने के लिए सावजी ने अमेरिका से एमबीए कर निकले अपने होनहार पुत्र को उस अंपायर का मालिक बनने से पहले कहीं सामान्य सी नौकरी करने की सीख दी। उन्होंने द्रव्य को रोजी रोटी कमाने के लिए कोच्चि के रेस्त्रां, जूते के शोरूम और कॉल सेंटर में काम करने के लिए भेज दिया। द्रव्य काफी समय तक उन नौकरियों से मिलने वाले पांच-सात हजार रुपए में ही अपना जीवन यापन करते रहे।
न्यूयॉर्क की ‘पेस यूनिवर्सिटी’ से एमबीए द्रव्य ढोलकिया की लाइफस्टाइल की हकीकत इंस्टाग्राम पर शेयर उनकी तस्वीरों से पता चलती है। यद्यपि वह रोमांचक क्षणों में कैद दिखते हैं लेकिन इंडिया लौटकर वह बीपीओ में नौकरी करने को तैयार हो जाते हैं। अमेरीकी कंपनी के सोलर पैनल बेचने लगते हैं। पिता की शर्तों के मुताबिक हफ्ते भर बाद बिना मेहनताना लिए वह उस नौकरी को छोड़ देते हैं।
द्रव्य बताते हैं कि उन्हें जूते खरीदने का शौक था, लेकिन पिता की ट्रेनिंग के बाद उन्हें वैसी जरूरते सतही लगने लगी थीं। अब वह अपने लिए हर वैसे शौक को गैरजरूरी मानते हैं। अमेरिका से लौटने के बाद द्रव्य ढोलकिया एक महीने तक साधारण जिंदगी जीते रहे। तीन जोड़ी कपड़ों के साथ पांच-सात हजार रुपए वेतन में ही कोच्चि में एक महीना बिताया। इस दौरान पिता की शर्त थी कि हर सप्ताह वह पुरानी नौकरी छोड़कर किसी नई जगह काम किया करेंगे।
सावजी चाहते थे कि द्रव्य जिंदगी को निकट से समझें और खुली आंखों देखें कि एक छोटी सैलरी वाला व्यक्ति किस तरह पैसा कमाने के लिए संघर्ष करता है। कोई चाहे कितनी भी बड़ी यूनिवर्सिटी में पढ़ ले, लेकिन जीवन की पाठशाला का ऐसा सबक, ऐसी शिक्षा तो अपने रोजमर्रा के उतार-चढ़ावों से ही मिलती है।