'बोटल्स फॉर चेंज' के तहत लोगों को प्लास्टिक रिसाइकल करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है बिसलेरी
बिसलेरी द्वारा 2017 में शुरू की गई 'बोटल्स फॉर चेंज' पहल से प्लास्टिक की खपत और उसके निस्तारण को लेकर भारतियों का तरीका बदल रहा है। इस पहल के तहत प्लास्टिक प्लास्टिक कचरे को इकट्ठा किया जाता है और इसे कपड़े, हैंडबैग और बेंच जैसे प्लास्टिक उत्पादों में परिवर्तित किया जाता है।
भारत के 60 प्रमुख शहरों से डेटा इकट्ठा करने के बाद केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की सितंबर 2017 की रिपोर्ट में सामने आया कि देश में एक दिन में लगभग 25,940 टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है।
भारत में इतने बड़े स्तर पर हो रहे प्लास्टिक उत्पादन का मुख्य कारण तेज़ी से हो रहा शहरीकारण, बढ़ते रिटेल स्टोर और तमाम सामानों के को पैक करने के लिए बढ़ती हुई प्लास्टिक की मांग है।
'डाउन टू अर्थ' की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2018 में प्लास्टिक प्रसंस्करण उद्योग ने यह अनुमान लगाया था कि साल 2017 से 2022 के बीच पॉलिमर की खपत 10.4 प्रतिशत तक बढ़ने की संभावना है, जिसमें लगभग आधी खपत सिंगल यूज़ प्लास्टिक है।
प्लास्टिक की खपत और रीसाइक्लिंग को लेकर बदलाव के लिए बिसलेरी की ‘बॉटल्स फॉर चेंज’ पहल लोगों के बीच पिछले कुछ सालों से जागरूकता फैला रही है।
‘बॉटल्स फॉर चेंज’ का काम क्या है?
‘बॉटल्स फॉर चेंज’, 2017 में बिसलेरी द्वारा शुरू की गई एक पहल है जो भारतीय नागरिकों के प्लास्टिक को देखने के नज़रिये को बदल रही है। इसका उद्देश्य प्लास्टिक रीसाइक्लिंग के महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करना और नागरिकों को इसे लेकर शिक्षित करना है।
बिसलेरी इंटरनेशनल की मार्केटिंग और ओएसआर की निदेशक अंजना घोष के अनुसार, पहल के पीछे का विचार यह है कि
“आप जो बदलाव देखना चाहते हैं, वो बदलाव सबसे पहले आपको अपने भीतर लाना होगा।"
अंजाना कहती हैं,
"ऐसा करके हमारा उद्देश्य है कि समुद्र, महासागर, नदियों और नालों में प्लास्टिक को जाने से बचाया जा सके। इससे एक स्वच्छ वातावरण का निर्माण होगा।"
बिसलेरी ने इस पहल को आगे ले जाने के लिए मुंबई आधारित कुछ एनजीओ से भी हाथ मिलाया है। परिसर भागनी विकास संघ और 'सम्पूर्ण अर्थ' कुछ ऐसे एनजीओ हैं, जो इस मुहिम में बिसलेरी की मदद कर रहे हैं।
इसी के साथ इस्तेमाल किए जा चुके समान का बड़े स्तर पर निस्तारण करने वाले कबाड़वालों के साथ भी बिसलेरी ने हाथ मिलाया है।
अंजना बताती हैं कि,
"हमने साल 1999 में जापानी कंपनी हरई द्वारा 1 करोड़ रुपये की कीमत पर भारत में प्लास्टिक रीसाइक्लिंग मशीन की थी। ऐसा करने वाले हम पहले संगठन थे।
चार चरण में पूरा होता है काम
प्लास्टिक निस्तारण को लेकर शुरू की गई ये मुहिन चार चरणों में आगे बढ़ती है। पहले चरण में टीमें लोगों के पास जाकर उन्हे सही तरीके से प्लास्टिक निस्तारण के लिए उन्हे जानकारी देते हुए शिक्षित करती हैं। इसके बाद दूसरे चरण में एक चैनल बनाया जाता है जिसके तहत एजेंट विभिन्न इलाकों से प्लास्टिक को इकट्ठा करते हैं।
तीसरे चरण में प्लास्टिक को रिसाइकिंग के आधार पर प्रथक किया जाता है, उसके बाद ही प्लटिक की रिसाइकलिंग प्रक्रिया शुरू होती है।
अंजना आगे बताती हैं,
“अन्य कचरे से प्लास्टिक को साफ करने और अलग करने की हमारी छोटी आदत एक बड़ा प्रभाव पैदा करेगी। हम चाहते हैं कि नागरिक समाचार पत्रों की तरह ही प्लास्टिक को एक मूल्यवान संसाधन के रूप में देखें। आपके द्वारा उपयोग की गई प्लास्टिक फिर एक नए उत्पाद के रूप में आपके पास आएगी। इससे प्लास्टिक में कमी आएगी साथ ही एक स्वच्छ वातावरण बनाने में भी मदद मिलेगी।”
रिसाइकल प्लास्टिक से बनी बेंचें
पिछले महीने ही इस पहल के चलते रिसाइकल प्लास्टिक से बनी तीन बेंचों को मुंबई में स्थापित किया गया है। इन्हे चर्च गेट स्टेशन और सांताक्रूज रेलवे कॉलोनी में स्थापित किया गया है। ये बेंच हर मौसम के लिए बेहतर हैं, साथ ही ये लकड़ी की बेंचों की तरह ही मजबूत हैं।
बॉटल्स रिसाइकल के लिए इकट्ठी की गई प्लास्टिक को छोटे टुकड़ों में तब्दील करने के बाद सीएनसी मशीन की मदद से इन बेंच का निर्माण किया गया है।
मोबाइल ऐप भी की गई है लाँच
इस मुहिम से अधिक से अधिक लोगों को जोड़ने के लिये मार्च 2019 में मोबाइल ऐप की भी शुरुआत की गई थीे फिलहाल मुंबई में करीब 5 हज़ार लोग मोबाइल ऐप के जरिए इस मुहिम जुड़े हुए हैं।
आगे बढ़ रही है ये मुहिम
‘बॉटल्स फॉर चेंज’ मुहिम के तहत अब तक 50 हज़ार टन से आधिक प्लास्टिक का निस्तारण किया जा चुका है। इस मुहिम में 5 लाख वयस्क और 3 लाख छात्र जुड़े हुए हैं। मुहिम के साथ मुंबई की करीब 500 से अधिक सोसाइटी जुड़ी हुईं हैं, साथ ही करीब 300 कॉर्पोरेट होटल भी इस मुहिम में शामिल हैं।