मुंबई में 17 जानें बचाने वाली बहादुर बच्ची ज़ेन की अब सुप्रीम कोर्ट में दस्तक
राष्ट्रीय बहादुरी अवॉर्ड से सम्मानित मुंबई में 7वीं की 12 वर्षीय छात्रा ज़ेन गुणारत्न सदावर्ते अपनी एक और नई पहल से फिर सुर्खियों में हैं। उन्होंने शाहीनबाग के धरना-प्रदर्शन के दौरान चार महीने के जहान की मौत का मामला सुप्रीम कोर्ट में उठा दिया है। चीफ़ जस्टिस के नाम उनकी चिट्ठी याचिका के रूप में स्वीकार ली गई है।
बदलते ज़माने में आजकल के छोटे-छोटे बच्चे पूरी दुनिया में ऐसी मिसाल कायम करने लगे हैं, जिनसे बड़ों को भी सीख लेनी चाहिए। एक ऐसी ही बच्ची हैं, राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द के हाथों राष्ट्रीय बहादुरी पुरस्कार से अलंकृत सातवीं की छात्रा जेन गुणारत्न सदावर्ते।
जेन अपनी एक नई पहल से एक बार फिर सुर्खियों में आ गई हैं। जेन की नई पहल पर बात करने से पहले आइए संक्षिप्त में बताते हैं वह वाकया, जिसके लिए उन्हे देश के राष्ट्रपति से सम्मान मिला है। 'राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार' जीतने वाली जेन मुंबई की हैं।
वाकया अगस्त 2018 का है। मुंबई महानगर के परेल इलाके में स्थित ‘क्रिस्टल टावर’ में 12वीं मंजिल पर भीषण आग से चार लोगों की मौत हो गई थी। उस हादसे के वक़्त जेन ईद की छुट्टी के चलते घर पर सो रही थीं। पता चलते ही उन्हे स्कूल में सिखाए गए फायर सेफ्टी टिप्स याद आ गए। उन्हे बताया गया था कि ऐसे हालात में सांस नियंत्रित कर शांत रहें।
जेन सबसे पहले लपटों से घिरी बिल्डिंग में फंसे बाशिंदो को कत्तई न घबराने की सलाह के साथ गैलरी में ले गईं और उन्हें अपने-अपने एयर प्यूरीफायर इस्तेमाल करने को कहा। उसके बाद सभी को गीला कपड़ा अथवा रुई मुंह और नाक पर रखकर एयर प्यूरीफायर के सामने खड़ा करा दिया। इस तरह फायर ब्रिगेड के पहुंचने तक जेन ने 17 लोगों की जान बचा ली थी।
ताज़ा वाकया ये है कि सातवीं क्लास में पढ़ रहीं 12 वर्षीय जेन गुणारत्न सदावर्ते ने अब दिल्ली के शाहीनबाग में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के प्रदर्शन में चार माह के एक बच्चे की मौत का मामला सुप्रीम कोर्ट में उठा दिया है। जेन ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया शरद अरविंद बोबड़े को पत्र लिखा है कि इस तरह के धरने-प्रदर्शन में बच्चों को शामिल न होने के लिए सुप्रीम कोर्ट गाइड लाइन बनाए।
29 जनवरी की रात चार महीने के मोहम्मद जहान की अकारण मौत पर पुलिस प्रशासन समेत अन्य उचित प्राधिकारियों को इसकी जांच के आदेश दें। बच्चे के मृत्यु प्रमाण पत्र में भी इस बात का जिक्र नहीं है कि उसकी मौत किस कारण से हुई।
बहादुर जेन ने जिस बच्चे की जान चले जाने का मामला चीफ जस्टिस तक पहुंचाया है, बेटे को खोने के बाद भी उसकी मां नाज़िया आज भी रोजाना शाहीन बाग़ जा रही हैं। नाज़िया शाहीन बाग़ के प्रदर्शन में रोज़ाना बेटे को साथ लेकर जाती थीं। कड़ाके की ठंड में बच्चे की तबीयत बिगड़ी और वह चल बसा।
बच्चे की मौत को सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने 'शहादत' का नाम दिया तो कुछ लोगों ने नाज़िया पर ही सवाल उठाए कि इतने छोटे बच्चे को प्रदर्शन में लेकर जाने की ज़रूरत ही क्या थी। नाज़िया बताती हैं कि उनके घर में कोई दूसरा व्यक्ति नहीं, जिसके भरोसे वह बेटे को घर पर छोड़ जातीं। वह कहती हैं कि सीएए और एनआरसी-एनपीआर नहीं होता तो उनका बच्चा ज़िंदा होता।
ज़ेन ने बताया कि उन्होंने चीफ़ जस्टिस को प्रेषित अपनी चिट्ठी में लिखा है कि कोई भी बच्चा किसी भी प्रदर्शन में नहीं जाना चाहिए क्योंकि जिस तरह आज एक बच्चे के 'जीने के अधिकार' का हनन हुआ है, मानवाधिकार हनन हुआ है, ख़ासतौर पर किसी नवजात का...कोर्ट को कुछ दिशा-निर्देश देना ही चाहिए।
ज़ेन कहती हैं कि वैसे तो किसी भी बालिग़ को किसी प्रदर्शन में जाने से या शामिल होने से नहीं रोका जा सकता लेकिन बच्चों को प्रदर्शन में नहीं जाना चाहिए क्योंकि उन्हें पता ही नहीं होता है कि वह वहां हैं क्यों? ज़ेन की चिट्ठी को याचिका के रूप में स्वीकार कर लिया गया है। उन्होंने अपनी याचिका में मृत बच्चे के माता-पिता, स्थानीय पुलिस इंस्पेक्टर और प्रदर्शन का आयोजन करने वालों को कुसूरवार भी ठहराया है।
ज़ेन ने अपनी याचिका में संविधान में उल्लिखित मूल अधिकारों में से एक 'जीने के अधिकार' का हवाला दिया है। जेन के पीआईएल में इस बात का भी ज़िक्र है कि बच्चे को 30 जनवरी की सुबह अल-शिफ़ा अस्पताल ले जाया गया, जहां क़ानूनी प्रक्रियाओं की अनदेखी की गई।
यहां तक कि अस्पताल द्वारा जारी सर्टिफ़िकेट पर मौत की वजह का भी ज़िक्र नहीं था, जबकि इस केस में पोस्टमॉर्टम किया जाना चाहिए था। उल्लेखनीय है कि ज़ेन के पिता गुणरत्ने सदावर्ते पेशे से वक़ील हैं।