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जमानत मिलने के बाद भी कैदियों को क्यों नहीं मिल पाती रिहाई? उन्हें आर्थिक सहायता देना क्यों जरूरी है?

31 जनवरी को NALSA ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी थी कि ऐसे 5000 अंडरट्रायल (विचाराधीन) कैदी जेलों में बंद हैं, जिन्हें जमानत मिल चुकी है. हालांकि, अब उसमें से 1417 को रिहा किया जा चुका है.

जमानत मिलने के बाद भी कैदियों को क्यों नहीं मिल पाती रिहाई? उन्हें आर्थिक सहायता देना क्यों जरूरी है?

Thursday February 02, 2023 , 4 min Read

बीते 1 फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के दूसरे कार्यकाल के आखिरी पूर्ण बजट को पेश करते हुए देशभर की जेलों में बंद कम से कम 5000 कैदियों के लिए एक बड़ी राहत भरी खबर लेकर आईं.

उन्होंने लोकसभा में फाइनेंशियल ईयर 2023-24 के लिए बजट पेश करते हुए घोषणा की कि जेलों में बंद ऐसे गरीब व्यक्तियों को आर्थिक सहायता दी जाएगी, जो जुर्माने की राशि या जमानत भरने की स्थिति में नहीं हैं. उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे कैदी जो गरीब हैं और जुर्माना या जमानत नहीं भर सकते हैं, जिन्हें आर्थिक मदद की जरूरत है, उन्हें यह मदद दी जाएगी.’’

पीएम मोदी ने की थी प्राथमिकता देने की मांग

पिछले साल जुलाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले ऑल इंडिया डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विसेज को संबोधित करते हुए कहा था कि अंडरट्रायल कैदियों से जुड़े ऐसे मामलों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. प्रधानमंत्री मोदी ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों और सभी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिसों की एक संयुक्त कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए अपील की थी कि जेलों में बंद अंडरट्रायल कैदियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और कानून के तहत मानवीय संवेदना के तहत उन्हें रिहा किया जाना चाहिए. प्रधानमंत्री ने कहा था कि हर जिले में जिला जजों की अध्यक्षता वाली कमिटी होनी चाहिए, ताकि इन केसों की समीक्षा की जा सके और जहां भी संभव हो ऐसे कैदियों जमानत पर रिहा किया जा सके.

राष्ट्रपति ने उठाया था सवाल

पिछले साल नवंबर में, संविधान दिवस के मौके पर अपने भाषण में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने गृह राज्य ओडिशा और झारखंड के गरीब आदिवासियों की दुर्दशा पर प्रकाश डालते हुए कहा था कि जमानत राशि भरने या जमानत की व्यवस्था करने के लिए पैसे की कमी के कारण जमानत मिलने के बावजूद वे कैद हैं.

इस दौरान राष्ट्रपति ने अधिक जेलों के बनाए जाने के औचित्य पर भी सवाल उठाया था. इस दौरान उन्होंने जेलों में बढ़ती भीड़ को कम करने का सुझाव दिया था. उन्होंने कहा था कि जेलों में बंद गरीब कैदियों की मदद की जानी चाहिए.

जमानत के बावजूद 5000 कैदी जेलों में बंद

इसके कुछ ही दिन बाद सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों को आदेश दिया था कि 15 दिनों के अंदर नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी (NALSA) को ऐसे सभी कैदियों की जानकारी मुहैया कराई जाए, ताकि उनकी रिहाई के लिए एक राष्ट्रीयकृत योजना तैयार की जा सके. इसके बाद, 31 जनवरी को NALSA ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी थी कि ऐसे 5000 अंडरट्रायल (विचाराधीन) कैदी जेलों में बंद हैं, जिन्हें जमानत मिल चुकी है. हालांकि, अब उसमें से 1417 को रिहा किया जा चुका है.

समाज के वंचित तबकों से आते हैं अधिकतर अंडरट्रायल

वहीं, अगर नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की प्रिजनर स्टैटिस्टिक्स इंडिया रिपोर्ट 2021 के अनुसार, देशभर की जेलों में बंद 77.1 फीसदी कैदी अंडरट्रायल हैं. उससे अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि इसमें से अधिकतर कैदी अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य़ पिछड़ा वर्ग (OBC) से आते हैं. यानि की 4 लाख 27 हजार 165 अंडर ट्रायल कैदियों में से 2 लाख 83 हजार 535 कैदी SC, ST और OBC कैटेगरी से हैं.

पूर्व सीजेआई ने की थी रिमांड प्रक्रिया की आलोचना

भारत के पूर्व चीफ जस्टिस यूयू ललित ने कहा था, 'रिमांड पर लिए जाने की शक्ति का उपयोग मशीनीकृत तरीके से किया जाता है. इस तरह की प्रैक्टिस की निंदा की जानी चाहिए और उसे सुधारा जाना चाहिए, क्योंकि इसकी कीमत आरोपी को अपनी स्वतंत्रता खोकर चुकानी पड़ती है. एक दिन के लिए भी जेल भेजा जाना कई लोगों की जिंदगी को बुरी तरह से प्रभावित करता है. रिमांड पर सौंपे जाने की शक्ति को मशीनीकृत के बजाय, पवित्र न्यायिक प्रक्रिया की तरह देखा जाना चाहिए.'

अंडरट्रायल कैदियों की रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट की नीतियां

जमानत देने की नीतिगत रणनीति-2022 (In Re: Policy Strategy for Grant of Bail 2022) में, सुप्रीम कोर्ट ने अंडरट्रायल कैदियों की रिहाई की वकालत की है. इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने या तो उन्हें निर्दोष मानते हुए त्वरित सुनवाई का अधिकार देने की वकालत की है या फिर सौदेबाजी की याचिका की प्रक्रिया के माध्यम से अपराध की स्वीकृति के साथ रिहाई की सौदेबाजी करने की अनुमति देने की वकालत की थी.

वहीं, सितंबर, 2021 में जमानत मिलने के बाद भी कैदियों की रिहाई में होने वाली देरी को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में उसके आदेशों को तेजी से प्रेषित करने और उनके अनुपालन के लिए ‘फास्ट एंड सिक्योर ट्रांसमिशन ऑफ इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्डस’ (फास्टर) परियोजना को लागू करने का आदेश दिया था. उसने सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों से हर जेल में इंटरनेट सुविधा सुनिश्चित करने के लिए भी कहा था.

वहीं, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने रोजाना जमानत से जुड़े 10 मामलों की सुनवाई करने की घोषणा की. हालांकि, इस समस्या की व्यापकता को देखते हुए ये प्रयास पर्याप्त नहीं हैं.