तेजी से फैलता फीवर ‘फूड ट्रक’, चपेट में आए तो मुंह से निकलेगा...वाह! मज़ा आ गया
स्ट्रीट फूड का एक और विकल्प ...लोगों की पसंद बने ‘फूड ट्रक’ ...थोड़े पैसों में बढ़िया डिशेज का विकल्प
इन दिनों बैगलौर में एक नया फीवर चल रहा है और वो है फूड ट्रक फीवर। हैरान मत होइए, लेकिन इन आकर्षक ट्रक्स पर आप इंडियन, इटैलियन से लेकर मैक्सिकन डिशेज तक ट्राई कर सकते हैं और वह भी सस्ते में। तो कम पैसे में होटल जैसी डिशेज का मजा लेने के लिए ये अच्छा ऑप्शन है।
अगर आपने न्यूयॉर्क, फ्लोरिडा और कैलिफोर्नियां में या किसी और जगह फूड ट्रक्स के टेस्टी फूड्स का लुत्फ उठाया हो तो आप उसे बैंगलौर में जरूर मिस करते होंगे। लेकिन अच्छी बात ये है कि फूड ट्रक का ट्रेंड अब बैंगलौर में भी तेजी से बढ़ रहा है। स्ट्रीट फूड को नए लेवल पर लाने वाले इन फूड ट्रक्स की शुरूआत कुछ साल पहले ही हुई है।
सड़क पर नया दानव : जिप्सी किचन
शक्ति सुब्बाराव कभी स्वतंत्र कॉर्पोरेट ट्रेनर हुआ करते थे लेकिन उनका मन काम में कम और दिल की तमन्नाओं को हकीकत में बदलने में ज्यादा लगा रहता। करीब 14 साल नौकरी करने के बाद सुब्बाराव ने कुछ अलग करने की ठानी और इस काम में मदद ली अपनी पत्नी नोरमा रोस और अपने रिश्तेदार स्टीवन रोस की। जिनके हाथों में खाना बनाने का जादू था तो उनका दिमाग बिजली से भी तेज दौड़ता था। सुब्बाराव की पत्नी एंग्लों-इंडियन हैं लिहाजा उन्होने सोचा कि अपने नए काम की शुरूआत गोवा में एक रेस्टोरेंट खोलकर करें। जहां पर वो बिरयानी, रोस्टेड चिकन, बीफ और सेंडविचेज जैसी चीजें लोगों को एंग्लों इंडियन स्टाइल में परोसेंगे। लेकिन जिंदगी के दोराहे पर खड़े सुब्बाराव बेंगलौर की ओर चल पड़े। यहां बड़ी समस्या थी ऐसे जगह की तलाश जो ना सिर्फ सस्ती हो बल्कि रेस्टोरेंट चलाने के लिए मुफिद भी हो। तब एक दिन टीवी पर फॉक्स ट्रैवलर चैनल पर ईट स्ट्रीट कार्यक्रम को देखते हुए उनके इरादों ने करवट ली और उन्होने सोचा कि क्यों ना एक ऐसा रेस्टोरेंट बनाया जाए जिसे वो कहीं भी अपने साथ ले जा सकते हैं। इसके अलावा बेंगलौर जैसे शहर में गली नुक्कड़ में मिलने वाला खाना भी काफी कम मिलता था।
बस फिर क्या था अपने सपनो को पंख देते हुए उन्होने मदद ली स्टीवन रोस की और धीरे धीरे जिन हालात से वो लड़ रह थे वो काबू में आते गए और उनका कारोबार चल निकला। आज उनका जिप्सी किचन बेंगलौर की कमन्नाहल्ली, कोरमंगला और वसंतनगर की सड़कों में आसानी से देखने को मिल जाएगा। उनके ट्रक में चिकन बेस्ड मैन्यू बर्गर, सैंडविचेज और हॉट डाग के साथ शाकाहारी खाना भी मिल जाएगा। अब उनकी योजना बेकन और हैम जैसे व्यंजन शुरू करने की है। सुब्बाराव कहते हैं कि “हमें सब कुछ मिला...हम ग्राहकों की जरूरत का ख्याल रखते हैं भले ही हम मांसाहारी भोजन परोस रहे हों बावजूद शाकाहारियों के लिए हमारे यहां खास व्यवस्था है क्योंकि मेरे लिये ग्राहकों का विश्वास और उनकी संतुष्टि बेहद जरूरी है।”
वो कहते हैं “मेरे लिए खाना पकाना एक शौक है...मुझे खाने से प्यार है और मैं चाहता हूं कि लोग अच्छा खाना खाएं। हम अपने खाने में गुणवत्ता बनाए रखने के लिए ताजा चीजों का इस्तेमाल करते हैं। जिस ब्रैड का हम इस्तेमाल करते हैं उसे या तो हमने खुद बेक की होती है या फिर स्थानीय बाजार से खरीदते हैं।” अपने प्रतिद्धंदी ‘द स्पीट फॉयर बीबीक्यू’ के बारे में सुब्बाराव के विचार कुछ हट कर हैं। वो कहते हैं कि इसमें मुकाबले की बात ही कहां है ? “हम लोग साथ काम करते हैं वो लोग अच्छा खाना बनाते हैं और ये अच्छी बात है कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस कारोबार में उतरें। ऐसे में मुकाबले की बात ही कहां ? दरअसल हम लोग अलग तरह का खाना लोगों के लिए परोसते हैं जो इसमें विविधता को जोड़ता है।”
आखिरकार सुब्बाराव को उम्मीद है कि वो अपने जिप्सी किचन को कॉलेज, विश्वविद्यालों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी लेकर जाएंगे। इस सब के बावजूद वो मानते हैं कि उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी कीमतों और संसाधनों में संतुलन बनाना है। विश्वविद्यालयों के संदर्भ में उनका कहना है कि “ये सब कीमत पर आधारित है...वहां पर हमें लोग भी मिलेंगे और हमें अपना मुनाफा भी देखना है लेकिन हमें ये देखना होगा कि कितने छात्र ये कीमत चुका सकते हैं। इसलिए ये एक चुनौती है लेकिन हम लोग इससे निपटने पर काम कर रहे हैं।” आज सुब्बाराव गर्व से कहते हैं कि उनका फूड ट्रक काला दानव है जो गलियों में भूखे को भोजन देने का काम करता है।
सड़कों पर चलने वाले दूसरा दानव: ‘द स्पीट फॉयर बीबीक्यू’
सिद्धांत सावकर को इस कारोबार में उतरने का ख्याल तब आया जब वो चिक्कमंगलूर के आलीशान बुटिक में काम करते थे। वो कुछ रचनात्मक काम करना चाहते थे। बेंगलौर उनको बढ़िया जगह लगी जहां पर रेस्टोरेंट चलाया जा सकता था। 23 साल के सावकर ने जब दो साल पहले ये कारोबार शुरू किया तो उनका कहना था कि वो रेस्टोरेंट खोलना चाहते थे लेकिन कुछ वक्त ठहरने के बाद फूड ट्रक शुरू किया। ये देखने के लिए कि ये कितना फायदेमंद है। पहले 6 महीने के दौरान ही कारोबार ने रफ्तार पकड़ी और उनका ये काम लोगों को पसंद आने लगा। तब उन्होने फैसला लिया कि उनको इतालवी व्यंजन में मास्टर्स करना चाहिए। मास्टर्स डिग्री हासिल करने के बाद सावकर ने अपना ध्यान अपने कारोबार पर लगाना शुरू किया और आज दो साल भी ‘द स्पीट फॉयर बीबीक्यू’ लगातार सफलता की सीढ़ियां चढ़ता जा रहा है और कई ग्राहक तो ऐसे हैं जो नियमित तौर पर उनके पास बढ़िया खाने का लुत्फ उठाने के लिए आते हैं। सावकर में इस बात को लेकर जुनून है कि उनके बनाये खाने में गुणवत्ता के साथ साथ विविधता भी होनी चाहिए। जब उनसे पूछा गया कि बाजार पर कोई भी फूड ट्रक हावी नहीं है तो उनका कहना था कि “मेरा लक्ष्य फूड ट्रक के कल्चर को बढ़ावा देना है और मैं ज्यादा से ज्यादा फूड ट्रक सड़क पर उतारने के लिए प्रोत्साहित करूंगा।” लेकिन ये रास्ता इतना आसान नहीं है तभी तो उनको कुछ जगहों पर मुश्किलों का भी सामाना भी करना पड़ा। सावकर के मुताबिक शहर के कुछ पुराने रेस्टोरेंट हमें खतरा मानने लगे लेकिन कुछ ऐसे भी रेस्टोरेंट थे जिन्होने हमारा समर्थन किया। बावजूद इसके जब हम कभी डोमलर इलाके में होते हैं तो जे पी नगर में रहने वाले लोग हमारे खाने का लुत्फ उठाने आते हैं। सावकर जोर देकर कहते हैं कि खाना हर कोई बना सकता है। लेकिन बात जब खाने के व्यापार की खासतौर से फूड ट्रक की हो तो थोड़ा तकनीकि ज्ञान की भी जरूरत होती है कि कैसे ट्रक लंबी दूरी तक पैसों की बचत पर चल सकता है।
‘द स्पीट फॉयर बीबीक्यू’ अपने यहां मिलने वाली ब्रैड को खुद बैक करता है जबकि ताजी सब्जियां स्थानीय बाजार से सस्ते दामों पर खरीदी जाती हैं। फूड ट्रक चलाने से आपना सीधा नियंत्रण खाने की गुणवत्ता पर रहता है। इससे ग्राहक का विश्वास आसानी से जीता जा सकता है।
हम नई चीजों को बनाते हैं और उनको बदलते भी रहते हैं
‘द स्पीट फॉयर बीबीक्यू’ अपना मैन्यू हर रोज बदलते हैं। इस बदलाव में 3-4 नये आइटम रोज शामिल किये जाते हैं। बावजूद हमारे सामने चुनौती रहती है कि कैसे हम अपने खाने में रचनात्मक तौर पर रोमांच पैदा करें और लोग हमारे बनाये खाने को पसंद करें। अपने फूड ट्रक में मिलने वाले मांसाहारी खाने में वो कैसे तालमेल बैठाते हैं तो इस पर सावकर बड़ी बेबाकी से जवाब देते हैं उनका कहना है कि “हमने सामाजिक रूप से अस्वीकार्य मीट को भी लोगों के लिए परोसना शुरू कर दिया है। हमारे यहां आने वाले कई मुस्लिम ग्राहक हैं जिनको हम बताते हैं कि ये हलाल का मीट है।” अपने कारोबार के विस्तार के बारे में सवाकर का कहना है कि वो चाहते हैं कि 5 राज्यों में उनके 30 ट्रक चलें। उनके मुताबिक जब आप इस कारोबार में हों और गली नुक्क़ड़ में खाना बेचते हों तो स्वभाविक है कि आपको फायदा मिलेगा इसकी वजह ये देश, जहां विभिन्न धर्म और संस्कृतियों के कारण रोज कोई ना कोई त्यौहार सा माहौल रहता है।
फूड ट्रक चलाने के लिए कुशल योजना की जरूरत होती है खासतौर पर आपको वो जगह पहचाननी होती है जहां पर खड़े होकर आप अपना कारोबार करना चाहते हैं। लेकिन सबसे ज्यादा जिस चीज की जरूरत होती है वो है लोगों को अच्छे से अच्छा खाना परोसना और उसमें विभिन्न सांस्कृतिक शैलियों को जोड़ना। साथ ही खाने में स्वाद के मिश्रण के साथ मसालों का बढ़िया संतुलन होना चाहिए।