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जानिए कैसी थी भारत की श्रेष्ठतम महिला चित्रकार अमृता शेरगिल की जिंदगानी

देश के शीर्ष नौ चित्रकारों में एक अमृता शेरगिल के जन्मदिन पर विशेष...

जानिए कैसी थी भारत की श्रेष्ठतम महिला चित्रकार अमृता शेरगिल की जिंदगानी

Tuesday January 30, 2018 , 5 min Read

दुनिया में कम ही लोग ऐसे हुए हैं, जिन्होंने अपने छोटे से जीवन में हुनर को इतनी ख्यात ऊंचाई दी हो। अपनी शर्तों पर जीने वाली अमृता की खासियत थी, उनसे कोई भी व्यक्ति तुरंत सम्मोहित हो जाता था। वह स्वाभिमानी इतनी थीं कि अपने पर मुग्ध जवाहर लाल नेहरू का प्रस्ताव भी उन्होंने ठुकरा दिया था। नेहरू जी चाहते थे कि अमृता एक पेंटिंग उन पर भी बनाएं लेकिन संभव न हो सका...

अमृता शेरगिल और उनकी बनाई पेंटिंग्स

अमृता शेरगिल और उनकी बनाई पेंटिंग्स


अमृता शेरगिल जिन दिनों पेरिस में अध्ययन कर रही थीं, उन्होंने एक पत्र लिखा था, जिसमें उनकी भारत लौट आने की जिज्ञासा थी। उस पत्र में उन्होंने स्पष्ट किया था कि चित्रकार होने के नाते वे अपना भाग्य अपने देश भारत में ही आज़माना चाहती हैं।

देश के शीर्ष नौ चित्रकारों में एक अमृता शेरगिल का आज यानी 30 जनवरी को 115वां जन्मदिन है। एक जमाने में वह जितनी ख़ूबसूरत थीं, उतनी ही अपनी पेंटिंग्स के लिए विश्वविख्यात भी। उनकी एक पेंटिंग 'यंग गर्ल्स' को पेरिस में 'एसोसिएशन ऑफ़ द ग्रैंड सैलून' तक पहुँचने का मौक़ा मिला था। वहाँ पर उनकी चित्रकारी की प्रदर्शनी लगी थी। यहाँ तक पहुँचने वाली वह पहली एशियाई महिला चित्रकार मानी जाती हैं। इसके साथ ही ऐसा गौरव प्राप्त करने वाली वह सबसे कम उम्र की महिला चित्रकार रही हैं।

उनका जन्म भले ही हंगरी में हुआ था, लेकिन उनकी पेंटिंग्स भारतीय संस्कृति और उसकी आत्मा का बेहतरीन प्रतिकृति हैं। उनकी पेंटिंग्स को धरोहर की तरह दिल्ली की 'नेशनल गैलेरी में सहेजा गया है। 20वीं सदी की इस महान कलाकार को एक भारतीय सर्वे ने 1976 और 1979 में देश की नौ सबसे श्रेष्ठ कलाकारों में शामिल किया था। आज भी उन्हें भारत की श्रेष्ठतम महिला चित्रकार के रूप में जाना जाता है। अमृता की एक-एक पेंटिंग लाखों रुपए में नीलाम होती रही हैं।

बुडापेस्ट (हंगरी) में 30 जनवरी 1913 को संस्कृत-फारसी के विद्वान नौकरशाह उनके सिख पिता उमराव सिंह शेरगिल और हंगरी मूल की यहूदी ओपेरा गायिका मां मेरी एंटोनी गोट्समन के घर हुआ था। कला, संगीत और अभिनय बचपन से ही उनके जुनून में रहा। उन्होंने फ्लोरेंस के सांता अनुंज़ियाता आर्ट स्कूल (इटली) से पेटिंग का कोर्स किया था। वह जिन दिनो पेरिस में अध्ययन कर रही थीं, उन्होंने एक पत्र लिखा था, जिसमें उनकी भारत लौट आने की जिज्ञासा थी। उन्होंने स्पष्ट किया था कि चित्रकार होने के नाते वे अपना भाग्य अपने देश भारत में ही आज़माना चाहती हैं।

सन् 1933 में पाश्चिमात्य होने के नाते बाईस साल की उम्र में उनकी यह सोच काफी मायने रखती थी। उन दिनों भारतीय स्त्रियों में व्यावसायिक शिक्षा लेने की प्रथा नहीं थीं, सिर्फ़ मज़दूरी करनेवाली स्त्रियाँ ही होती थीं, जो दास या नौकर की हैसियत से काम करती थीं। बहुत कम भारतीय स्त्रियों ने ऐसी व्यावसायिक शिक्षा अगर ली भी थी तो शिक्षा को व्यवसाय के रूप में नहीं अपनाया था लेकिन अमृता अपनी अलग पहचान चित्रकार बनकर दिखाना चाहती थीं। उनके बीउक्स आर्टस् के एक अध्यापक के अनुसार उनका पैलेट पूर्वी रंगों के लिए ही बना था। यही वजह थी कि प्रतिभाशाली अमृता इतनी दूर भारत में घर बसाने को प्रोत्साहित हुईं।

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सन् 1921 में वह 22 साल की उम्र में परिवार सहित भारत आकर शिमला के समर हिल में बस गईं। इसके बाद उनका रहन-सहन बदल गया। यहाँ उन्होंने गरीबों की जिंदगी पर चित्रकारी शुरू कर दी। चित्रों में उनकी उदास दुखी बड़ी आँखें और खाली सीढ़ियाँ ज़िंदगी के नैराश्य या खालीपन को दर्शाती हैं। उनकी दुबली पतली उँगलियों से शायद विषादपूर्ण मन: स्थिति और मन की खिन्नता भी दिखाई देती थी। सन 1935 में उन्हें शिमला फाइन आर्ट सोसायटी की तरफ़ से सम्मान दिया गया, जिसे उन्होंने लेने से इनकार कर दिया। इसके बाद 1940 में बॉम्बे आर्ट सोसायटी की तरफ़ से पारितोषिक दिया गया। उस दौरान भारत के लगभग सभी बड़े शहरों में उनके चित्रों की प्रदर्शनियाँ लगने लगी थीं।

कहा जाता है कि असामान्य प्रतिभाशाली अमृता आठ साल की आयु में ही पियानो-वायलिन बजाने के साथ-साथ कैनवस पर भी उतरने लगी थीं। उन्होंने अपनी माता के एक सुपरिचित अपने हंगेरियन चचेरे भाई डॉक्टर विक्टर इगान से विवाह किया था। विदेश से लौट कर जब वह भारतीय पर्यटन स्थलों से रूबरू हुईं, ताज़गी भरा और अपनी तरह का मौलिक अजंता एलोरा, कोचीन का मत्तंचेरी महल और मथुरा की मूर्तियाँ देखने के बाद उन्हें चित्रकारी के दूसरे पक्ष समझ में आने लगे। भले ही उनकी शिक्षा पेरिस में हुई पर अंततः उनकी तूलिका भारतीय रंग में ही रंगी गई।

भारत के सूक्ष्म आकार के चित्रों से उनकी जान पहचान हुई और वह बसोली पाठशाला की दीवानी हो गई। इसके बाद उनकी चित्रकारी में राजपूत चित्रकारी की झलक मिली। उनकी पेंटिंग्स की विशेषता यह रही कि उन्होंने चित्रकला के प्रारम्भिक काल में ऐसे यथार्थवादी चित्रों की रचना की, जिनकी संसार भर में चर्चा हुई। उन्होंने भारतीय ग्रामीण महिलाओं को चित्रित करने का और भारतीय नारी कि वास्तविक स्थिति को बारीकी से चित्रित किया।

किसी अज्ञात बीमारी के कारण 1941 में मात्र 28 साल की उम्र में अमृता शेरगिल का देहावसान हो गया था। दुनिया में कम ही लोग ऐसे हुए हैं, जिन्होंने अपने छोटे से जीवन में अपने हुनर को इतनी ख्यात ऊंचाई दी हो। अपनी शर्तों पर जीने वाली अमृता की खास बात थी कि उनसे कोई भी व्यक्ति बहुत जल्दी प्रभावित हो जाता था। उनके पति हंगरी के होने के कारण ब्रिटेन के खुले विरोधी थे तो पिता ब्रिटिश हुकूमत के साथ लेकिन अमृता हमेशा कांग्रेस की समर्थक बनी रहीं।

कहा जाता है कि नेहरूजी अमृता की खूबसूरती पर मुग्ध हुए थे। एक बार उन्होंने अपनी तस्वीर बनाने का अमृता शेरगिल से आग्रह भी किया लेकिन वह प्रभावित नहीं कर सके। उन्होंने नेहरू जी के प्रस्ताव को सिरे से नकार दिया था। महान कलाकार माइकलेंजिलो ने कहा था कि व्यक्ति अपने दिमाग से पेंट करता है, हाथों से नहीं, शायद यही वजह है कि हर कलाकार की कलाकृति उसके हस्ताक्षर होते हैं। अमृता जब लगभग 22 साल की थीं, उन्होंने कहा था, 'मैं सिर्फ हिंदुस्तान में चित्र बना सकती हूं। यूरोप, पिकासो, मैटिस और ब्रेक का है। हिंदुस्तान सिर्फ मेरे लिए है।'

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