अध्ययन में हुआ बड़ा खुलासा, प्रदूषण से बढ़ सकता है गर्भपात का खतरा
एक अध्ययन के मुताबिक भारत में 2017 में 10 लाख से ज्यादा मौतों के लिए वायू प्रदूषण जिम्मेदार है।
भारत में पिछले साल तंबाकू के इस्तेमाल के मुकाबले वायु प्रदूषण से लोग अधिक बीमार हुए और इसके चलते प्रत्येक आठ में से एक व्यक्ति ने अपनी जान गंवाई। हवा के अत्यंत सूक्ष्म कणों-पीएम 2.5 के सबसे ज्याद संपर्क में दिल्लीवासी हैं और उसके बाद उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा है।
हर चीज़ पैसे से मिल सकती है, यहां तक कि शुद्ध जल भी लेकिन शुद्ध हवा अब सपने जैसी हो गई है। सुबह की मॉर्निंग वॉक में भी प्रदूषण की कितनी बड़ी मात्रा हम अपने फेफड़े में उतारते हैं ये आमतौर पर जान पाना मुमकिन नहीं। शहरी जीवन तो दिन-ब-दिन और बिगड़ता ही जा रहा है, लेकिन गांव और जंगल भी अब प्रदूषित वायु की चपेट से बचे नहीं हैं। हम जैसे-जैसे अपना एक दिन आगे बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे बढ़ती प्रदूषित वायु की समस्या से रू-ब-रू हो रहे हैं। वायु प्रदूषण से होने वाली बिमारियों के बारे में हम सभी जानते हैं, लेकिन हाल में हुए एक अध्ययन में ये बात सामने आई है, कि वायु प्रदूषण के संपर्क में थोड़ी देर के लिए भी आने से गर्भपात का खतरा बढ़ सकता है।
वायु प्रदूषण हमारे समय की सबसे बड़ी समस्या है, जिसे दमा से लेकर समयपूर्व प्रसव तक, स्वास्थ्य पर पड़ने वाले तमाम बुरे प्रभावों से जोड़ कर देखा जाता है। बढ़ती बिमारियों के लिए सिगरेट से ज्यादा खतरनाक है प्रदूषित वायु, जिसे जाने अनजाने हम अपने फेफड़ों में हर वक्त उतार रहे हैं। सांस नहीं लेगें तो करेंगे भी क्या।
फर्टिलिटी एंड स्टर्लिटी पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में अमेरिका के यूटा विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि यूटा राज्य की सबसे अधिक आबादी वाले क्षेत्र में रहने वाली महिलाएं जब वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ने के बाद उसके संपर्क में आईं तो उनमें गर्भपात होने का खतरा 16 प्रतिशत तक बढ़ गया। 2007 से 2015 तक किए गए इस अध्ययन में 1300 महिलाएं शामिल थीं, जिन्होंने गर्भपात के बाद (20 हफ्ते की गर्भावस्था तक) चिकित्सीय मदद के लिए आपातकालीन विभाग का रुख किया था। इस अध्ययन के दौरान अनुसंधानकर्ताओं की टीम ने हवा में तीन साधारण प्रदूषक तत्वों- अतिसूक्ष्म कणों (पीएम 2.5), नाइट्रोजन ऑक्साइड और ओजोन की मात्रा बढ़ जाने के बाद तीन से सात दिन की अवधि के दौरान गर्भपात के खतरे को जांचा और टीम ने पाया कि नाइट्रोजन ऑक्साइड के बढ़े स्तर के संपर्क में आने वाली महिलाओं को गर्भपात होने का खतरा 16 प्रतिशत तक बढ़ गया।
ये बात तो हो गई यूटा की और जब हम अपने देश भारत की बात करते हैं, तो पाते हैं कि यहां हर आठ में एक मौत वायु प्रदूषण से हो रही है। तंबाकू और सिगरेट से भी ज्यादा खतरनाक है ये प्रदूषित वायु। आईसीएमआर, पीएचएफआई, आईएचएमआई और हेल्थ मिनिस्ट्री की ज्वाइंट स्टडी के मुताबिक, पिछले साल (2017) भारत में इंडोर और आउटडोर एयर पॉल्यूशन से 10 लाख से ज्यादा लोगों की हुई मौत।
अध्ययन के मुताबिक दुनिया की 18 फीसदी आबादी भारत में रहती है लेकिन 26 फीसदी की असामयिक मौत वायु प्रदूषण की वजह से हो रही है। भारत में 77 फीसदी आबादी का सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर का एक्सपोजर राष्ट्रीय परिवेश गुणवत्ता के मानक के दोगुना से भी ज्यादा है। राष्ट्रीय परिवेश गुणवत्ता मानक के मुताबिक 40 μg/m3 पार्टिकुलेट मैटर का एक्सपोजर सुरक्षित माना जाता है, लेकिन भारत में औसतन एक्सपोजर 90 μg/m3 है जो दुनिया में सबसे ज्यादा है। सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर (वायु प्रदूषण) का एक्सपोजर सबसे ज्यादा दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा है।
हेल्थ मिनिस्ट्री की ज्वाइंट स्टडी में यह बात भी सामने आई है कि भारत में वायू प्रदूषण से औसत आयु 1.7 साल घट जाती है। उत्तरी भारत के राज्य जैसे राजस्थान में औसतन आयु 2.5 साल,उत्तर प्रदेश में 2.2 साल और हरियाणा में 2.1 साल वायु प्रदूषण से घट जाती है, जो कि अपने आप में चौकाने वाला आकड़ा है। यदि हम रिसर्च पेपर की बात करें तो वायू प्रदूषण की मुख्य वजह मोटर गाड़ियों का इस्तेमाल, धड़ल्ले से चल रहा कंस्ट्रक्शन, थर्मल बिजली उत्सर्जन, डीजल जेनरेटर और मैनुअल सड़क धूल व्यापक है। माना जा रहा है, कि इस स्टडी के प्रकाशित होने से सरकार वायु प्रदूषण की मुख्य वजहों पर विशेष ध्यान देगी।
अमेरिका के यूटा विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं के अध्ययन पर हमें भी गंभीरता से सोचना होगा, नहीं तो आने वाला समय और भी खतरनाक हो जायेगा। दुनिया में आने वाला बच्चा या तो दुनिया में आयेगा ही नहीं और यदि आ गया तो प्रदूषित वायु उसे खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। अब देखना ये है कि इन सबके बाद हमारी सरकार किस तरह के कदम उठाती है।
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