घोर डिप्रेशन और नौकरी से निकाले जाने के बाद ये शख़्स बन गया देश का टॉप ट्रैवेल ब्लॉगर
ज्यादा घूमने की वजह से नौकरी से निकाला गया, आज हैं देश के शीर्ष ट्रैवेल ब्लॉगर
हम मैग्जीन्स में ग्लॉसी पेपर्स पर छपीं ट्रैवेल की फोटुएं देखकर ही रोमांचित हो जाते हैं, प्रकृति के खूबसूरत नजारों से हमारी आंखें चौंधिया जाती हैं, उस जगह का ब्यौरा देते ब्लॉगर्स हमें दुनिया के सबसे भाग्यशाली इंसान नजर आते हैं।
लेकिन एक चीज जो हम नहीं देख पाते, वो है इन ट्रैवेल ब्लॉगर्स की सालों की मेहनत, मुफलिसी और घुमक्कड़ी के लिए कभी न टूटने वाला जज्बा।
ये कहानी है भारत के टॉप ट्रैवेल ब्लॉगर और फोटोग्राफर अभिनव सिंह की। कैसे उन्होंने घोर डिप्रेशन और नौकरी से निकाले जाने की विषम परिस्थितियों से देश के टॉप ट्रैवेल ब्लॉगर बनने का सफर तय किया है।
हम मैग्जीन्स में ग्लॉसी पेपर्स पर छपीं ट्रैवेल की फोटुएं देखकर ही रोमांचित हो जाते हैं, प्रकृति के खूबसूरत नजारों से हमारी आंखें चौंधिया जाती हैं, उस जगह का ब्यौरा देते ब्लॉगर्स हमें दुनिया के सबसे भाग्यशाली इंसान नजर आते हैं, हमें लगता है कि वाह! जॉब इसे कहते हैं, मजे भी लूटो और पैसे भी पाओ। लेकिन एक चीज जो हम नहीं देख पाते, वो है इन ट्रैवेल ब्लॉगर्स की सालों की मेहनत, मुफलिसी और घुमक्कड़ी के लिए कभी न टूटने वाला जज्बा। आपको क्या मालूम इस मुकाम पर पहुंचने वाला वो शख्स कितनी रातें भूखे पेट सोया है, पैसों की कमी की वजह से बर्फीले पहाड़ों पर पहनने लायक कपड़े नहीं खरीद पाया, बावजूद ये यायावर घूमते रहते हैं, नई जगहें तलाशते रहते हैं और सालों की मेहनत के बाद उन्हें बड़ा मंच मिलता है, ख्याति मिलती है। ऐसी ही एक कहानी है भारत के टॉप ट्रैवेल ब्लॉगर और फोटोग्राफर अभिनव सिंह की। अभिनव पेटा के लिए फोटोग्राफी कर चुके हैं, नैशनल जियोग्राफिक ट्रैवेलर में पब्लिश हो चुके हैं, दस से भी ज्यादा मीडिया कंपनियों से बेस्ट ट्रैवेलर का तमगा पा चुके हैं। यहां तक पहुंचने से पहले अभिनव संघर्षों भरा एक लंबा रास्ता पार किया है।
योरस्टोरी से बातचीत में अभिनव ने बताया, 2008 से मैं भ्रमण कर रहा हूं, पर ट्रेकिंग मैंने साल 2012 से पहले कभी नहीं की थी। शुरुआत की महाराष्ट्र के मॉनसून ट्रेक से और उसके बाद मुझे ट्रेकिंग से हमेशा का लिया लगाव हो गया। रात के वक्त की गई ढाक बहेरी से हरिहर फोर्ट ट्रेकिंग अब तक की सबसे भयावह अनुभवों में से एक है। इस दौरान मैं एक बड़े पत्थर से बिना किसी सुरक्षा मानकों के लटका हुआ था। एक गलती और मैं गहरी खाई में गिर जाता। मैं हर किसी को यही सलाह देता हूं कि बिना सही मार्गदर्शन के कभी भी ट्रेकिंग ना करें। 2013 में मैंने पहली सबसे ऊंची रूपकुंड लेक पर हिमालयों पर ट्रेकिंग की। 2014 में मुझे 7 साल की नौकरी से इसलिये निकाल दिया गया क्योंकि मैं टूर के लिये बहुत ज्यादा छुट्टियां लेता था। ठीक एक साल के बाद मैंने अपनी ज़िंदगी की सबसे अहम ट्रेकिंग एवरेस्ट बेस कांप ट्रेक के रूप में नेपाल में की। सबसे बेहतरीन ट्रेकिंग अनुभवों में से एक है ये। मैंने इस दौरानन वाटर राफ्टिंग, काफी ऊंटी ट्रेकिंग, ज़िप लाइनिंग भी की। ये सब मेरे लिये आसान नहीं था। मना करने के बावजूद मेरे कुछ दोस्तों ने प्रबंधन से मुझे वापस नौकरी पर रखे लेने के लिये बात की। पर कोई फायदा नहीं हुआ। मैं खुद भी काम करना नहीं चाहता था।
2007 में अभिनव के साथ कुछ ऐसा हुआ कि उन्होंने जीना ही छोड़ दिया। डिप्रेशन की अजीब सी अवस्था थी वो, वो ना कुछ करना चाहते थे, करियर नहीं चाहिए था, पैसे नहीं चाहिए था। हर वक्त मन में आत्महत्या का ख्याल आता था। पर ट्रैवल ने न केवल उन्हें सिर्फ जीना सीखा, बल्कि लोगों से मिलने और बात करने मे कोई हिचक को भी दूर भगा दिया। पर नौकरी से निकाले जाने के बाद फिर एक साल तक अभिनव डिप्रेशन में चले गए। सारे ऐशो-आराम को छोड़कर वो चौल में रहने चले गए। बकौल अभिनव हर तरह के माहौल में ढल जाने की मेरी प्रवृति ने मुझे चौल में रहने से कोई परेशान नहीं दी। सारे खर्चों को समेट कर महीने के खर्च को मैंने 7000 रुपए पर समेट दिया। बिना मन के कई जगहों पर नौकरी के लिये इंटरव्यू भी दिया। मेरे दोस्तों ने इस दौरान मेरा बहुत साथ दिया। 2016 में दिल्ली आ गया। भाई और दोस्तों के घर पर रह कर किसी तरह एक साल निकाला और फिर ठीक कमाई हो जाने पर एक मकान रेंट पर ले लिया। कई बार बर्थडे पार्टियों पर फोटोग्राफी कर के दिन के 3000 रुपए तक की कम कीमत कमाई क्योंकि मैं मां-बाप से और पैसे नहीं लेना चाहते थे। हालांकि उन्होंने मेरी कभी नहीं सुनी, और हमेशा मेरी आर्थिक मदद करते रहे। मैंने शराब पीना भी 2 सालों में बिल्कुल ही बंद कर दिया। खर्चे भी बचे और सेहत भी अच्छी रहने लगी।
भ्रमण करते रहना और उसके बारे में लिखना कभी आसान नहीं था। जिन्हें लिखने का जज़्बा है, चाहत हो दिल से उन्हें ही सिर्फ लिखना चाहिये अपने अनभवों के बारे में। वैसे भी सफलता रातों रात नहीं मिलती। अभिनव बताते हैं, मैं 10 सालों से भ्रमण कर रहा हूं और 18 सालों से भारत की लीडिंग मैग्जीन्स के लिए लिख रहा हूं जबकि सफलता मुझे अब 35 साल की उम्र में मिली है। लिखना मैंने बहुत कम उम्र में ही शुरू कर दिया था। अब ट्रैवेल राइटिंग से ऐसा लगाव है कि कुछ के लिये भी इससे दूर नहीं जा सकता। सबसे यही कहना चाहूंगा कि भारत में खास तौर पर परिवार के दबाव में कई लोग अपने सपनों से दूर हो जाते हैं, जिम्मेदारियां उन्हें उनकी चाहतों से दूर कर देती है। पर सबकुछ करते हुए अपना चाहतों के लिये हर दिन थोडा वक्त ज़रूर निकालें। मुझे ट्रैवेलिंग ने ज़िंदगी के कई अहम पड़ावों से लड़ना सिखाया। एडवेंचर स्पोर्ट्स ने मन से हर तरह का डर दूर कर दिया। मैंने कभी कोई ट्रेकिंग डर से बीच में नहीं छोड़ी। मैं खुद को हमेशा से ज्यादा अब शक्तिशाली मानता हूं। अभिनव की यात्राओं के बारे में ज्यादा जानने के लिए आप उनकी वेबसाइट पर घूमकर आ सकते हैं।
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