क्या अगली सदी में नहीं होंगे बंगाल टाइगर जैसे बड़े पशु?
बंगाल टाइगर जैसे विश्व के कई सबसे बड़े और प्रतिष्ठित पशु इस सदी के अंत तक अपना अस्तित्व खो सकते हैं। एक नए अध्ययन में यह चेतावनी दी गई है। इसमें कहा गया है कि इन पशुओं के लिए जबरदस्त संरक्षण उपाय किए जाने की जरूरत है।
अनुसंधानकर्ताओं ने कहा है कि उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिणपूर्व एशिया में यह खतरा कहीं ज्यादा गंभीर है। इन्हीं क्षेत्रों में विश्व की जैव विविधता कायम है।
पशु संरक्षण संगठन पैंथेरा में संयोजक (शेर कार्यक्रम नीतिगत पहल) पीटर लिंडसे ने कहा, ‘‘ जैव विविधता का तेजी से घटना एक बड़ा मुद्दा है और संभवत: यह जलवायु परिवर्तन के मुद्दे से भी कहीं अधिक गंभीर है।’’
उल्लेखनीय है कि विश्व की बाघों की कुल आबादी का 60 फ़ीसदी हिस्सा भारत में ही रहता है। देश में सरकार ने 38 टाइगर रिजर्व घोषित किए हुए हैं। मध्य प्रदेश में स्थित बांधवगढ़ अपने राष्ट्रीय उद्यान के लिए प्रसिद्ध है और यहां की खासियत बाघ हैं। यहां पर्यटक रॉयल बंगाल टाइगर, तेंदुए, चीतल, सांभर और भी कई प्रजातियों को देख सकते हैं। बताया जाता है कि गत 1,000 साल से बाघ का शिकार किया जाता रहा है, फिर भी 20वीं सदी के शुरू में जंगलों में रहने वाले बाघों की संख्या 1,00,000 आंकी गई थी। इस सदी के अवसान पर ऐसी आशंका थी कि विश्व भर में केवल 5,000 से 7,000 बाघ बचे हुए हैं। आज तक बाघों का महत्त्व विजयचिह्न और महंगे कोटों के लिए खाल के स्रोत के रूप में था। बाघों को इस आधार पर भी मारा जाता था कि वे मानव के लिए ख़तरा हैं। 1970 के दशक में अधिकतर देशों में शौक़िया शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया गया तथा बाघ की खाल का व्यापार ग़ैर क़ानूनी बना दिया गया।
विश्व में कई देशों में बाघों के शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। ताइवान से क़रीब 2 करोड़ 50 लाख डॉलर सालाना मूल्य के वन्य जीव उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया। कुछ सरकारों ने सहयोग का प्रयास किया। मार्च 1994 में भारत ने बाघों को बचाने के एक संगठित प्रयास के तहत 10 राष्ट्रों के 'विश्व बाघ मंच' की पहली बैठक बुलाई थी।
ग़ैर क़ानूनी शिकार बंद हो जाने के बावजूद बाघ के लिए ख़तरा समाप्त नहीं हुआ है। भारत में, जहाँ सबसे अधिक संख्या में बाघ रहते हैं। तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या की अधिक भूमि की आवश्यकता के कारण बाघों के आवास और भोजन आपूर्ति में कमी आ रही है। इसके बावजूद प्रकृति के प्रति वास्तविक सम्मान क़ायम है और बाघों को बचाने के लिए भारत पहले ही बड़ी राशि ख़र्च कर चुका है।
खत्म होते जंगल और शिकारियों पर अंकुश न होने से राष्ट्रीय पशु और जंगल के राजा बाघ की संख्या लगातार कम होती जा रही है। देश के सभी अभयारण्य में लगातार इनकी संख्या कम होती जा रही है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार बीसवीं सदी के शुरू में देश में 40 हज़ार से ज़्यादा बाघ थे। सदी के शुरुआती सात दशकों में अंधाधुंध शिकार और जंगलों के सिमटने के कारण 1972 में बाघों की संख्या घटकर 1872 रह गयी है। (पीटीआई के सहयोग के साथ)