सामाजिक सन्देश देनेवाली भगवान मामा की अनोखी रिक्शा
भगवान मराठे समाज को अच्छाई का पाठ पढ़ाने का तथा जागरूक बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं, इस काम में उनका साथीदार है उनका रिक्शा है |
‘सादा जीवन उच्च विचार’ यह विचारधारा किसी महापुरुष के नहीं बल्कि एक रिक्शा चालक की है आज आपको जिनके बारे में बतानेवाली हूँ वो कहानी किसी और की नहीं बल्कि रिक्शा चालक भगवान मराठे की है |
भगवान मामा का मानना है की, आजकल लोग दिखावे की दुनिया में जि रहे हैं जैसे जन्मदिन के मौके पर बड़े -बड़े सड़कों के चौराहों पर बैनर लगाना इससे बेफुजुल खर्ची और शहर की खूबसूरती खराब होती है | इससे तो बेहतर होगा की जरुरतमंद को मदद करनी चाहिए |
नाशिक में रहनेवाले भगवान मामा रिक्शा चलाने जैसे कष्टदायी काम को करने के साथ-साथ समाज को अच्छाई का पाठ पढ़ाने का तथा जागरूक बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं, इस काम में उनका साथीदार है उनका रिक्शा है |
जब पहेली बार उनका रिक्शा मैंने देखा तो मैं भी आश्चर्यचकित रह गयी थीं क्योंकि उनका रिक्शा एक दम अनोखा है |
इस भीड़ में भगवान् मामा का रिक्शा बिना कहे भी बहोत कुछ कहती है अगर इसे हम बोलनेवाली रिक्शा का नाम दे, तो गलत ना होगा |
आमतौर पर रिक्शा चालक का नाम लेते ही गैरबर्ताव ,अशिष्ट ,प्रवासियों से झगड़ा करने वाली तस्वीर नज़रों के सामने आ जाती है लेकिन भगवान मराठे ने इन सभी बातों से कोशों दूर है वो बिलकुल जुदा है, भगवान मराठे सभी प्रवासियों से अच्छा बर्ताव करते है |उन्हें उनके जगह पहुँचने और रिक्शा चलने के साथ-साथ समाजिक कार्य भी करते है नासिक के उत्तमनगर से सीबीएस के दरम्यान पिछले १० से १२ साल रिक्शा चला रहे है |अपने निजी काम की व्य्स्तता की वजह से समाजकार्य के लिए वक्त निकलना बहोत ही मुश्किल बात है | लेकिन भगवान मामा की रिक्शा को देखकर ये काम उतना भी मुश्किल नहीं लगता है| जितना हम और आप सोचतें हैं
उन्होंने अपने रोजगार को सामाजिक कार्य का रूप दे दिया भगवान मामा की रिक्शा बोलने वाली आप जरूर सोच रहे होगें की ये रिक्शा में क्या ख़ास बात है ?एक रिक्शा कैसे बोल सकती है? वो ऐसे की उनकी रिक्शा पर हमेशा किसी ना किसी सामाजिक विषय पर बोलती रहती है कभी ‘रस्ते की सुरक्षा तो कभी बेटी बचाओ तो कभी शहीदों को श्रद्धांजलि, जवानों को बुरी आदतों से दू रहने की सलाह देते हुए हमेशा नजर आती है’ भगवान मामा के सामाजिक संदेश लिखने का अंदाज भी बहोत अलग हैअब तक कई लोगों ने अपने-अपने तरीके से सामाजिक कार्य करने की कोशिश की है | लेकिन भगवान मामा सामाजिक विषयों पर जिस तरह से अपने विचार बोर्ड पर दर्शाते है | मानो जैसे किसी महाविद्यालय की शिक्षका द्वारा लिखें गए हो एक-एक शब्दों में अर्थ के साथ-साथ जोशभरा होता है ‘हमारे देश में अगर सबसे बड़ी समस्या है तो वो भ्रूण हत्या है जिस पर वो आये दिन उनकी रिक्शा बोलती रहती है’ जो की समाज को कहीं ना कहीं सोचने पर मजबूर करती है ‘सीमा पर जवान और खेत में किसान हैं’ इसीलिए हम अपना जीवन इतनी बेफिक्री के साथ जी रहे है |ये संदेश वो युवाओं को बताने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे है| जो हमारे समाज ने हमें बहोत कुछ दिया है, तो उसके बदले में हमें भी समाज को कुछ देना चाहिए, और इस बात का जब अहसास हो, तब जरूर कुछ न कुछ समाज के हित के लिए करना चाहिए |
यही सोच भगवान मामा की भी है तभी तो उनकी रिक्शा दूसरी रिक्शा चालकों से अलग है माना की उनके काम का स्वरूप छोटा है| लेकिन उसका असर हमरे समाज में देखने को मिल रहा है क्योंकि उसके पीछे उनकी सोच बहोत बड़ी है |रिक्शा पर इस तरह से बोर्ड लगाकर समाजकार्य किया जा सकता है | इसकी प्रेरणा उन्हें उनके बेटे से मिली जब वो बीमार पड़ा था |कई बार मदद मांगने पर भी उन्हें किसी की मदद नहीं मिली आखिर में हताश और निराश हुए भगवान मामा की मदद एक मजदुर ने १००० रुपये दे कर की थी की जो खुद रोज की कमाई पर जगता था लेकिन उनके लिए ये मदद किसी लाख रुपये से कम ना थी| और फिर वंही से भगवान मामा ने निर्णय लिया समाज कार्य करने का, गरीबों और जरूरतमंदों की आवाज बनने का फैसला लिया और तब से वो कहीं ना रुके, बस वो और उनकी बोलने वाली रिक्शा आगे बढ़ती जा रही है और लोगों को अच्छे संदेश का पाठ पढ़ा रही है |
हम सब के जीवन में ऐसे अनेकों प्रसंग आते है | तब इस बात का ईलम होता है की हमें जरूरतमंदों के लिए कुछ करना चाहिए लेकिन सोचने और करने में बहोत अंतर होता है लेकिन भगवान मामा ने इसे प्रत्य्क्ष रूप में कर दिखाया है |तो देर किस बात की है भगवान मामा की इस बोलने वाली रिक्शा को आदर्श मान कर अपने-अपने अंदाज में समाज कार्य में हम सभी को जुट जाना चाहिए |
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