कोरोना वायरस दिखाएगा 2008 से भी बुरे दिन! लेकिन अभी भी हमारे पास बचने का मौका है
कोरोना वायरस के चलते लगभग पूरे विश्व में लॉकडाउन के हालात बने हैं, जिसका असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ना तय है।
दुनिया भर में कोरोना वायरस के चलते सब कुछ ठप पड़ा है। इस दौरान बने हालात एक महामंदी को जन्म दे रहे हैं, जो साल 2008 में आई मंदी से भी बड़ी हो सकती है। इस समय उत्पादन से लेकर शेयर बाज़ार सभी को बड़ा झटका लगा है।
साल 2008 में आई मंदी ने अमेरिका समेत दुनिया भर के बाज़ार को हिलाकर रख दिया था, हालांकि उस दौरान भारत के बाज़ार पर उसका उतना असर नहीं हुआ था, लेकिन इस बार कोरोना वायरस के चलते बने हालात भारत के हित में बिलकुल भी नहीं हैं।
वैश्विक स्तर पर अनुमान है कि इस बार अमेरिकी शेयरों में 20 फीसदी की गिरावट दर्ज़ की जाएगी, ईंधन के मूल्य में 35 फीसदी की कमी आएगी और इसी के साथ बेस मेटल में भी 29 फीसदी की गिरावट का अनुमान है। इस बार लगभग सभी बाज़ार बुरी तरह प्रभावित होंगे।
इस वर्ष मार्च तक 68 दिन के भीतर ही सेंसेक्स 6 बार 700 से अधिक अंक तक नीचे जा चुका था, जबकि दो बार तो यह 1 हज़ार अंक से भी अधिक नीचे गया। साल 2008 में आई मंदी के दौरान 6 बड़ी गिरावटें 10 महीनों में दर्ज़ की गई थी। उस दौरान भी साल में दो बार ही एक हज़ार से अधिक की गिरावट दर्ज़ की गई थी।
विश्व आर्थिक परिदृश्य रिपोर्ट में इस साल चीन की विकास दर 1.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है, जबकि भारत की विकास दर को 1.9 फीसदी अनुमानित किया गया है, हालांकि बावजूद इसके भारत विश्व की सबसे तेजी से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना रहेगा। हालांकि वैश्विक आर्थिक विकास दर में तीन फीसदी गिरावट का अनुमान है, जो साल 2008 मंदी के दौरान आए आर्थिक संकट से भी बुरी है।
कोरोना वायरस के चलते इस समय उत्पादन ठप पड़ा है, तो वहीं इस दौरान हुए लॉकडाउन के चलते सप्लाई चेन बुरी तरह प्रभावित हुई है। भारत में एक महीने से अधिक चलने वाले लॉकडाउन का प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर काफी नकारात्मक पड़ने वाला है।
आईएमएफ़ के अनुसार विश्व की अर्थव्यवस्था साल 2021 तक काबू में आ सकती है, लेकिन इसके लिए दुनिया के तमाम बड़े देशों को दिवालियापन और छटनी से खुद को बचाना होगा।
कोरोना वायरस संक्रमण से निपटने वाले टीके के आने में भी अभी 12 से 18 महीने लग सकते हैं, हालांकि दुनिया भर के वैज्ञानिक इसके लिए कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में लॉकडाउन हटने के बाद कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में फिर से वृद्धि देखी जा सकती है। दुनिया को इस मुश्किल से बचाने के लिए अभी सोशल डिस्टेन्सिंग ही एक मात्र कारगर उपाय है।