[कोविड वॉरियर्स] हिमालय में महामारी से लड़ने में मदद कर रहे हैं नॉन-प्रोफिट ऑर्गेनाइजेशन 'लिव टू लव' और 'कुंग फू नन'
गैर-लाभकारी संगठन लिव टू लव और कुंग फू नन लद्दाख, लाहौल-स्पीति और काठमांडू में नजरअंदाज किए गए उन हिमालयी समुदायों को महत्वपूर्ण राहत सहायता और संसाधन प्रदान कर रहे हैं जो विशेष रूप से कनेक्टिविटी की कमी, खराब स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं।
लद्दाख, लाहौल-स्पीति और नेपाल के कुछ हिस्सों को शामिल करने वाला हिमालयी क्षेत्र पृथ्वी पर सबसे खूबसूरत जगहों में से एक हो सकता है, लेकिन यह क्षेत्र कनेक्टिविटी की कमी, खराब बुनियादी ढांचे और नगण्य स्वास्थ्य सेवाओं जैसी चुनौतियों से जूझ रहा है।
और COVID-19 महामारी की शुरुआत के साथ ही इस क्षेत्र में रहने वाले समुदायों की समस्याएं और बढ़ी ही है।
गैर-लाभकारी संगठन लिव टू लव (Live to Love), कुंग फू नन (Kung Fu Nuns) और अन्य स्थानीय भागीदारों के साथ, हाशिए पर रहने वाले समुदायों, स्थानीय समूहों और महिलाओं को आवश्यक सहायता प्रदान कर रहे हैं, जो महामारी से बुरी तरह प्रभावित हैं।
द्रुकपा वंश की कुंग फू नन लैंगिक असमानता के मुद्दे पर हमेशा आवाज उठाती रही हैं। उन्होंने न केवल उन्हें मार्शल आर्ट सिखाकर बल्कि आत्मविश्वास और खुद का बचाव कैसे करें, इसको लेकर लड़कियों के रवैये में बदलाव लाया है।
इसलिए लद्दाख के दूर-दराज के गांवों में विशेष रूप से सोर्सिंग और सहायता पहुंचाने के लिए सबसे दूरस्थ स्थानों तक पहुंचने के लिए यह उनके साथ एक सूझबूझ भरी साझेदारी थी।
हिमालय में कोविड-19 से निपटना
YourStory से बात करते हुए, Live to Love की प्रोग्राम्स एंड कम्युनिकेशंस ऑफिसर सिमरन थपलियाल और इसकी वाइस प्रेसिडेंट ऑफ कम्युनिकेशंस एंड एडवोकेसी स्मृद्धि मारवाह ने महामारी के दौरान की गई पहलों पर चर्चा की और बताया कि आखिर क्यों इस क्षेत्र में टिकाऊ समाधान ही भविष्य का निर्माण कर सकता है।
सिमरन कहती हैं, "हिमालयी क्षेत्र में काम करने वाले सबसे सक्रिय संगठनों में से एक के रूप में, हम इस क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों जैसे कि कनेक्टिविटी की कमी को अच्छी तरह समझते हैं। एक बार जब लॉकडाउन की घोषणा की गई, तो सप्लाई चेन बाधित हो गई और लोगों को भोजन और अन्य आवश्यक चीजों के लिए सेना पर निर्भर रहना पड़ा।”
लॉकडाउन के चलते पर्यटन को बड़ा झटका लगा, जिससे हजारों लोगों की आजीविका प्रभावित हुई, तो घर में फंसी महिलाओं को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ा और मानव तस्करी की घटनाएं भी बढ़ने लगीं।
स्मृद्धि बताती हैं, “हमारा तत्काल ध्यान राशन, भोजन और चिकित्सा संसाधन उपलब्ध कराने पर था। हमने लद्दाख में 18,000 मास्क की आपूर्ति की, और पहले सप्ताह के दौरान 3,000 परिवारों को भोजन प्रदान किया और यह वर्तमान में लाहौल-स्पीति, नेपाल और लद्दाख में 4,000 परिवारों तक बढ़ गया है।”
लिव टू लव, अपने ऑन-ग्राउंड पार्टनर यंग ड्रुकपा एसोसिएशन गरशा के साथ, पहले ही 2,000 परिवारों को स्टीमर, गार्गल और दवा की आपूर्ति कर चुका है और राहत कार्य के अपने पहले चरण में लाहौल-स्पीति के 171 गांवों को सेनिटाइज कर चुका है और आने वाले महत्वपूर्ण हफ्तों में सहायता की एक नई लहर चलाने की तैयारी कर रहा है।
प्रवासियों के लौटने के साथ, युवाओं के लिए रोजगार खोजने के वास्ते नेटवर्क और चैनल बनाने की तत्काल आवश्यकता थी। लिव टू लव ने इनक्यूबेशन सेंटर स्थापित किए और युवाओं को उनके सामाजिक उद्यमिता उपक्रमों को बनाए रखने के लिए सलाह और संसाधन प्रदान करने के लिए निवेशकों के साथ बैठकें कीं।
इसके अलावा वायरस के बारे में जागरूकता की कमी एक और चुनौती थी। सिमरन कहती हैं, “केवल लेह जैसे शहर में बेसिक इक्विपमेंट और आवश्यक चिकित्सा उपकरण हैं। आस-पास कई ऐसे गांव हैं जहां लोग नहीं जानते कि वायरस क्या है या फेस मास्क का इस्तेमाल कैसे किया जाता है।"
लिव टू लव स्वयंसेवकों ने इन क्षेत्रों को टारगेट किया और महिलाओं को मास्क सिलने के लिए छोटी इकाइयां बनाकर उन्हें सशक्त बनाया, साथ ही उन्हें आय का एक स्रोत भी दिया। इस दौरान करीब 18,000 मास्क बांटे गए।
स्मृद्धि बताती हैं, “सरकार ने भी ऑक्सीजन सिलेंडर, कंसंट्रेटर और अन्य महत्वपूर्ण चिकित्सा उपकरणों को उन क्षेत्रों में पहुंचाने के लिए हमारा समर्थन मांगा, जिनकी उन्हें जरूरत थी। पिछले तीन महीनों में, हमने लद्दाख को एक उच्च प्रवाहक नाक प्रवेशनी (high-flow nasal cannula) प्रदान की है। इसके साथ ही, हमने ऑडियंस को COVID-19 के प्रति शिक्षित करने के लिए सूचनात्मक वीडियो और बैनर डेवलप किए हैं।”
नन हिमालयी क्षेत्र के लोगों को टारगेट कर रही हैं, जबकि उनके परिवार, मित्र, स्वयंसेवक और प्रशंसक सड़क मार्ग से दुर्गम क्षेत्रों तक पहुँचते हैं। यह लोग सुनिश्चित करते हैं कि वे जो कुछ भी उपाय अपना रहे हैं उनको लेकर वहां के लोगों को बताया जाए।
बचाव के लिए कुंग फू नन
द्रुक्पा वंश की मैरून वस्त्र पहनने वाली इन बौद्ध भिक्षुणियों यानी कुंग फू नन ने दुनिया के हिमालयी महिलाओं को देखने के नजरिए को बदल दिया है। जहां उन्होंने ताकत और आत्मविश्वास पाने के लिए कुंग फू सीखना शुरू किया था, तो वहीं अब वे अपने कौशल का उपयोग दूसरों की सेवा करने के लिए करती हैं। वे अन्य महिलाओं को आत्मरक्षा सिखाती हैं, मुफ्त स्वास्थ्य क्लीनिक चलाती हैं, आपातकालीन पशु बचाव के लिए पहली प्रतिक्रिया देती हैं, और उन्होंने हिमालय की भूमि से हजारों पाउंड प्लास्टिक कूड़े को हटाया है।
अन्य संगठनों के साथ साझेदारी में, वे बायोडिग्रेडेबल, रीयूजेबल सैनिटरी पैड वितरित करके मासिक धर्म स्वच्छता के लिए हरित समाधान की वकालत कर रही हैं, और आत्मरक्षा प्रशिक्षण के साथ-साथ बेहतर मासिक धर्म स्वास्थ्य प्रथाओं के बारे में समुदायों को शिक्षित कर रही हैं।
एक वरिष्ठ कुंग फू नन जिग्मे कोंचोक योरस्टोरी को बताती हैं, “महामारी ने हमें बहुत कुछ सिखाया। इसने हमें सिखाया कि लैंगिक असमानता महिलाओं के लिए और अधिक पीड़ा - और उच्च मृत्यु दर - की ओर ले जाती है। इसने हमें सिखाया कि बतौर महिला, हमें अपने स्वास्थ्य और सुरक्षा की जिम्मेदारी खुद लेनी होगी। और अगर हमें जीवित रहना है, तो हम सभी को एक दूसरे का ख्याल रखना होगा।"
उनका मानना है कि हर महिला और हर लड़की को यह पता होना चाहिए कि "कोई भी आपको पावर नहीं देता - वह पावर आपके पास पहले से ही होती है, आपको बस इसे महसूस करना है।"
कुंग फू नन ने भोजन वितरण और चिकित्सा अभियान चलाते समय देखा कि जब उनके परिवार की देखभाल करने की बात आती है तो महिलाएं सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती हैं।
सिमरन ने बताया, “हमने देखा कि वे परिवार के भोजन और स्वच्छता का ध्यान रखती हैं, और नियमित रूप से हाथ धोने आदि पर जोर देती हैं। इसने हमें उन्हें सामुदायिक नेता बनाने में सक्षम बनाया जिन्होंने यह सुनिश्चित किया कि COVID-19 का प्रसार कम हो। उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि भोजन समान रूप से वितरित किया जाए।”
देश में लॉकडाउन के कारण कई नन नेपाल में फंसी हुई हैं, लेकिन वे यह सुनिश्चित कर रही हैं कि लद्दाख और लाहौल-स्पीति में उनके परिवार विभिन्न पहलों के माध्यम से समुदायों की मदद करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं।
वह कहती हैं, "स्थानीय लोगों के साथ नियमित रूप से संपर्क में रहने से उन्हें ऑन-ग्राउंड पार्टनर्स की पहचान करने में मदद मिलती है और यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि चिकित्सा जरूरत, भोजन और अन्य आवश्यक चीजें वहां पहुंचें जहां उनकी सबसे ज्यादा जरूरत है।"
येशे ल्हामो, एक कुंग फू नन, जो नेपाल में लिव टू लव गतिविधियों को संभालती हैं, संक्षेप में कहती हैं, “नारीवाद महिलाओं को मजबूत बनाने के बारे में नहीं है। महिलाएं पहले से ही मजबूत हैं। यह दुनिया के महिलाओं को देखने और उनके साथ व्यवहार करने के तरीके को बदलने के बारे में है।"
Edited by Ranjana Tripathi