शून्य डॉलर से नीचे पहुँच गए कच्चे तेल के दाम, लेकिन ये सब हुआ कैसे?
कोरोना वायरस महामारी के बीच कच्चे तेल के दाम माइनस में चले गए हैं और यह इतिहास में पहली बार हुआ है।
अमेरिकी तेल बाज़ार में सोमवार को कच्चे तेल की कीमतें 0 डॉलर से भी नीचे पहुंच गईं। देश में श्रेष्ठ क्वालिटी के कच्चे तेल की कीमतें माइनस 40.32 डॉलर प्रति बैरल आँकी गई हैं। यह कच्चे तेल के इतिहास में सबसे कम कीमत है, इसके पहले द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ये कीमतें सबसे कम पाई गई थीं।
गौरतलब है कि इस स्थिति में तेल बेंचने वाले खुद 40 डॉलर प्रति बैरल की दर से भुगतान कर रहे हैं, लेकिन ये सब हुआ कैसे और ये संभव कैसे है इसके लिए आपको मौजूदा स्थिति को समझना होगा।
ये है मामला
पूरा विश्व इस समय कोरोना वायरस के संकट से जूझ रहा है, लेकिन कच्चे तेल की कीमतों में कमी कोरोना वायरस संकट के पहले ही शुरू हो गई थी, लेकिन इस महामारी ने कच्चे तेल की मांग को बुरी तरह चोट पहुंचाई है। जब साल 2020 शुरू हुआ तब कच्चे तेल की कीमतें 60 डॉलर प्रति बैरल थीं, लेकिन मार्च के आखिरी तक ये कीमतें 20 डॉलर प्रति बैरल तक आ पहुंची।
हालांकि ये सब हुआ कैसे, इसका सीधा सा जवाब है डिमांड और सप्लाई में भारी असमानता। आज वैश्विक बाज़ार में कच्चे तेल की मांग बेहद तेजी से नीचे आ गई है, जिससे तेल उत्पादन करने वाली कंपनियों के होश उड़ गए हैं।
अब इस स्थिति में यदि कच्चे तेल का उत्पादन करने वाली कंपनियाँ अपने उत्पादन को कम करती हैं या बंद करती हैं तो इस स्थिति में उन्हे इसे फिर से शुरू करना महंगा पड़ेगा, इसी के साथ अगर सभी कंपनियाँ यह निर्णय एक साथ नहीं लेती हैं तो पहले उत्पादन बंद करने वाली कंपनियाँ बाज़ार में अपना हिस्सा खो सकती हैं।
प्राइस वार बनी सरदर्द
बीते मार्च में सऊदी अरब और रूस के बीच कीमतों को स्थिर रखने के लिए उत्पादन में कमी लाने की बात नहीं बन सकी और दोनों ही देशों ने एक दूसरे के खिलाफ प्राइस वार में हिस्सा लेते हुए तेल का उत्पादन जारी रखा। हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के हस्तक्षेप के बाद यह मामला कुछ सुलझा जरूर लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
तेल आयात करने वाले देशों ने अपने उत्पादन को 60 लाख बैरल प्रति दिन के हिसाब से कम करने का निर्णय जरूर लिया, लेकिन तब तक कोरोना वायरस के चलते कच्चे तेल की डिमांड में 1 करोड़ बैरल प्रति दिन की कमी दर्ज़ की जाने लगी।
इस बीच तेल खरीदने वाले देशों के बाद अब तेल को स्टोर करने की समस्या सामने आने लगी है, ऐसे में बिना तेल की खपत के तेल के ट्रांसपोर्टेशन आदि में तमाम खर्च करना आयातकों के लिए भी बड़ा सरदर्द बन गया है और वे भी इससे बचना चाह रहे हैं। ऐसे में तेल निर्यातक जिनके पास अब तेल को इकट्ठा करने की जगह नहीं बची है, वे 40 डॉलर प्रति बैरल के नुकसान के साथ इससे छुटकारा पाना चाह रहे हैं।
तेल की कीमतों में सबसे अधिक गिरावट अमेरिकी बाज़ार में दर्ज़ की गई है, इसी के साथ आने वाले जून तक कच्चे तेल की कीमत 20 डॉलर प्रति बैरल हो सकती है।