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मेडिकल सुविधाओं के अभाव में हो रहीं असमय मौतों को रोकने में जुटा है 'जीवनदीप'

सुमित फाउंडेशन 'जीवनदीप' के पास देश के बेहतर से बेहतर हॉस्पिटल और बहुत से अच्छे डॉक्टर्स की जानकारी है। ऐसे हॉस्पिटल जहां विश्वस्तरीय सुविधा है और ऐसे भी हॉस्पिटल जहां निशुल्क इलाज होता है।

संगठन के संस्थापक रवींद्र

संगठन के संस्थापक रवींद्र


सुमित फाउंडेशन 'जीवनदीप' के सदस्य अपना या अपने करीबियों का जन्मदिन एक खास अंदाज मे मनाते हैं। बर्थडे पर किसी भी तरह के उपहार लाने की मनाही होती है। खास बात यह है की सदस्यों द्वारा कार्ड में पहले से ही निवेदन कर दिया जाता है गिफ्ट ना लाने के लिए।

सही वक्त पर एम्बुलेंस न पहुंच पाने पर, डॉक्टरों की कमी से, ब्लड न मिल पाने पर, ऑर्गन डोनेशन की सही व्यवस्था न होने से हर दिन कई जानें चली जाती हैं। हम मानवता की दुहाई देते हैं, मदद न कर पाने की अपनी असमर्थता का रोना रोते हैं और बस अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेते हैं। लेकिन इसी बीच एक ऐसा संगठन बड़ी मुस्तैदी से हजारों लोगों की जान बचा रहा है, वो भी बिना किसी स्वार्थ के। सुमित फाउंडेशन 'जीवनदीप' नाम का ये संगठन फेसबुक ग्रुप, वॉट्सएप के माध्यम से जरूरतमंदों के पास तेजी से पहुंच जाता है और आपातकालीन संसाधनों की आपूर्ति को सुनिश्चित करता है। इस संगठन के कर्ता धर्ता रविन्द्र सिंह क्षत्री हैं।

सुमित फाउंडेशन 'जीवनदीप' छत्तीसगढ़ राज्य में एक रजिस्टर्ड संगठन है। ये संगठन उन लोगों के इलाज और मदद में ध्यान देता है, जो गरीबी, लाचारी, जागरूकता और कागजी कार्यवाही के अभाव में अपना इलाज नही करवा पाते हैं। ऐसे में टीम के सदस्य उस मरीज तक पहुच कर उसके इलाज से सम्बंधित सारी जानकारी मसलन मेडिकल पेपर, टेस्ट रिपोर्ट, शारीरिक जांच, सम्बंधित फोटोग्राफ, बैंक अकाउंट डिटेल्स आदि लेते हैं और उसे वॉट्सएप के माध्यम से उसे टीम को फॉरवर्ड करते हैं। जहां कम से कम समय में उसके आगे के इलाज के लिए प्रोटोकॉल तैयार किया जाता है। इलाज के लिए सबसे पहले सरकारी हॉस्पिटल को प्राथमिकता दी जाती है। उसके बाद जरूरत के अनुसार हर बड़े से बड़े हॉस्पिटल भी ले जाने के लिए टीम तत्पर रहती है।

हर वक़्त मरीज को कम से कम टीम के दो से चार सदस्य बात करके मदद और परिजनों को काउंसलिंग देते रहते हैं और अंतिम वक़्त तक उस परिवार के सम्पर्क में रहते हैं। मरीज के हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो जाने के बाद उस परिवार को यथा संभव कम से कम कीमत पर मेडिकल टीम द्वारा दवाई उपलब्ध करवाई जाती है। उन्हें भी आगे चल कर इस कड़ी को आगे बढाने का आग्रह किया जाता है। साथ ही हर मरीज को इलाज के बाद एक पौधा लगाने के लिए जरूर से कहा जाता है। इस बात की भी तस्दीक जरूर की जाती है कि कहीं मरीज जानबूझ कर अपनी आर्थिक परिस्थिति के बारे में झूठ तो नहीं बोल रहा है।

सुमित फाउंडेशन 'जीवनदीप' के पास देश के बेहतर से बेहतर हॉस्पिटल और बहुत से अच्छे डॉक्टर्स की जानकारी है। ऐसे हॉस्पिटल जहां विश्वस्तरीय सुविधा है और ऐसे भी हॉस्पिटल जहां निशुल्क इलाज होता है। इन सबके बारे में मरीजो को बताया जाता है, ताकि मरीज बेहतर इलाज करवा सके, उनके पैसे बच सकें। कई बार मरीज को हम खुद भी हॉस्पिटल ले कर जाते हैं। सुमित फाउंडेशन 'जीवनदीप' की टीम द्वारा मरीजों के सारे पेपर वर्क (सरकारी/निजी पत्राचार) भी खुद से किये जाते हैं ताकि समय रहते उन्हें सरकारी/निजी मदद दिलाई जा सके। क्योंकि अक्सर मरीज या उनके परिजन उतने पढ़े लिखे अनुभवी नहीं होते हैं कि ये सारी प्रक्रिया पूरी कर सकें, ऐसे में टीम के सारे सदस्य आगे आकर उसकी मदद करते हैं। टीम में यह कार्य वॉलंटियरों, समाजसेवियों द्वारा किया जाता है। जरूरत पड़ने पर लीगल सहायता के लिए वकील भी मौजूद होते हैं।

सुमित फाउंडेशन 'जीवनदीप' की तरफ से मरीजों का होता इलाज 

सुमित फाउंडेशन 'जीवनदीप' की तरफ से मरीजों का होता इलाज 


सुमित फाउंडेशन 'जीवनदीप' के सदस्य अपना या अपने करीबियों का जन्मदिन एक खास अंदाज मे मनाते हैं। बर्थडे पर किसी भी तरह के उपहार लाने की मनाही होती है। खास बात यह है की सदस्यों द्वारा कार्ड में पहले से ही निवेदन कर दिया जाता है गिफ्ट ना लाने के लिए। साथ ही कार्ड में किसी जरूरतमंद मरीज की तस्वीर पोस्ट कर उसकी मदद के लिए अपील की जाती है और शगुन में आने वाले सारे रुपये उसे दे दिए जाते हैं। जीवनदीप की सबसे बुजुर्ग दानदाता 90 वर्ष की हैं जो हर महीने अपनी पेंशन में से 500 रूपये देती हैं और हमारी सबसे नन्ही डोनर की उम्र मात्र एक साल है, हाल ही में हुए बर्थडे पर उसके मम्मी पापा ने शगुन के रूप में आए 53,167 रूपये डोनेट कर दिए।

रविंद्र ने अपने भाई के नाम पर सुमित फाउंडेशन 'जीवनदीप' बनाया है। योरस्टोरी से बातचीत में रविंद्र ने बताया, पहले हम सब वॉट्सएप पर लोगों की मदद करने की मुहिम चलाते थे, फिर वॉट्सएप में जब लोगो की संख्या बढ़ने लगी तो फेसबुक पर एक ग्रुप का भी निर्माण किया 'जीवनदीप' के नाम से। शुरू में सबने बहुत मजाक उड़ाया कि मैं ये सब क्या करता हूं। किसी ने मुझे वापस नौकरी करने की सलाह दी पर मैं अपनी जगह कायम रहा। हम अपनी हर मुहिम को जीवनदीप के फेसबुक और वॉट्सएप ग्रुप में पोस्ट करने लगे सारी जानकारी के साथ। फेसबुक के इस जीवनदीप ग्रुप में पचास हजार से भी ज्यादा लोग पूरे भारत देश से जुड़े हैं। इस ग्रुप में कुछ NRI भी जुड़े हुए हैं। कैलिफोर्निया, दुबई, टोरंटो और कुवैत जैसी जगहों से जुड़े हुए लोग इसमें मदद करते हैं हमेशा।

सुमित फाउंडेशन 'जीवनदीप' टीम का मुख्य उद्देश्य भारत में इलाज के अभाव में हो रही असमय मौत पर काबू पाना है। ताकि हर कीमती जान को बचा कर देश सेवा में लगाया जा सके। इसके लिए टीम जमीनी स्तर पर कार्य कर रही है। ग्रुप के द्वारा अभी छत्तीसगढ़ राज्य के अलावा गुजरात/ मध्यप्रदेश/ बिहार/राजस्थान/ मुंबई/ दिल्ली में भी गंभीर से गंभीर मरीजो का रेस्क्यू किया जा चुका है। सुमित फाउंडेशन 'जीवनदीप' टीम का आने वाले पांच सालो में मुख्य उद्देश्य एक ऐसे अंतर्रास्ट्रीय स्तर के मल्टीसुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल की स्थापना करना है, जहां हर तरह की मेजर सर्जरी और ट्रांसप्लांट हो सके, जहां फॉर्मल्टी की जगह जान बचाने को प्राथमिकता दी जा सके, जहां मरीजों के इलाज के साथ-साथ उनके परिजनों के स्किल डेवलपमेंट पर काम किया जा सके ताकि वो आत्मनिर्भर बनें।

इस संगठन के बनने के पीछे एक मार्मिक दास्तान है। रविंद्र ने योरस्टोरी को बताया, 'हम सिर्फ दो भाई थे। बात तब की है जब छोटा भाई सुमित 6 साल का था, तब से उसे हेल्थ प्रॉब्लम होना चालू हो गयी थी। सुमित का 16 साल तक इलाज चला, इतने सालो तक हमारा परिवार सिर्फ हॉस्पिटल के चक्कर काटता रहा, इस उम्मीद में की सुमित ठीक हो जाए। हमारा परिवार शुरू से ही दोस्तों और रिश्तेदारों से कर्ज ले ले कर इलाज करवाता रहा। लेकिन एक वक्त ऐसा आया जब सुमित की हालत बिगड़ने लगी और डॉक्टर्स ने मुझे पहले ही इशारा कर दिया की आपके भाई की किडनी धीरे धीरे फेल होती जा रही है।

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आखिरकार डाक्टर्स ने कह दिया की अब सुमित की दोनों किडनियां पूरी तरह से फेल हो गयी है और अब इन्हें सप्ताह में 3 बार डायलिसिस की जरूरत होगी। अपोलो हॉस्पिटल में एक महीने के डायलिसिस का खर्च करीब करीब 40 से 50 हजार पड़ जाता था। मेरे पिता की तनख्वाह उतनी नहीं थी की यह खर्च उठा पाए, क्योंकि 16 साल तक लगातार इलाज चलने में जो भी जमा पूंजी थी वो खर्च हो चुकी थी। भाई की डायलिसिस में कम से कम 5 घंटे का टाइम लगता था , उस समय मैं बाकी मरीजो और उनकी परिवारिक परेशानियों को देखता समझता रहता था। हर मरीज के करीब जाता तो पता चलता की हर किसी की अपनी ही एक अलग स्टोरी है, कोई पैसे के आभाव में अपनी मौत का इन्तजार कर रहा है तो कोई सरकारी मदद की उम्मीद लगाए बैठा है। जो उसने मिलने से रही।

16 फरवरी 2015 को हर बार की तरह सुमित को मैं डायलिसिस के लिए ले कर अपोलो हॉस्पिटल गया था, करीब 12 बज रहे होंगे जब उसका डायलिसिस खत्म हुआ और हम घर वापस जाने के लिए हॉस्पिटल से निकले। सिटी कोतवाली चौक,बिलासपुर में बहुत ही जादा ट्रैफिक की वजह से जाम लगा था और हम उस जाम में फंस गए थे। किसी ने बाइक को धक्का मारा जिससे गाड़ी पलटने वाली थी, मैंने पीछे पलट कर देखा तो सुमित बदहवास सा हो कर पीछे की तरफ गिर रहा था। उसकी नजरे मेरी तरफ थी वो कुछ बोलना चाह रहा था पर कुछ बोल नहीं पाया और गिरने लगा, मैंने एक हाथ से गाडी का हैंडल थमा और दूसरे हाथ से सुमित की कालर के पास का कपडा पकड़ा, ताकि वह सीधे ना गिरे, सीधे गिरता तो उसका सर पीछे की तरफ से फट सकता था। अंततः हम सब नीचे गिर गए, सुमित को कार्डिएक अरेस्ट आया था, उसकी हार्ट बीट बंद होने लगी थी।'

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उन्होंने कहा, 'आप यकीन नहीं मानेंगे की लोग देखते रहे और गाड़ी आगे बढाते रहे। मैंने एम्बुलेंस को कॉल किया वो नहीं आ पायी जिसकी वजह सिर्फ ट्रैफिक थी। लोग जगह नहीं दे रहे थे। बड़ी मुश्किल से एक ऑटो वाला मिला, जिसने मैंने अपने भाई को लिटाया और हॉस्पिटल की तरफ निकल गया। हम शार्टकट रास्ते से हॉस्पिटल सिर्फ 15 मिनट में पहुंच सकते थे। पर लोगो ने रोड खाली करने की जरूरत नहीं समझी। हम दूसरे रास्ते से गए जहां से 45 मिनट लग गए पहुचने में। डॉक्टर्स को इमरजेंसी काल कर दिया था मैंने, वहा पहुचते ही डॉक्टर्स ने सुमित को बचाने के लिए, उसकी सांसो को दोबारा चालू करने के लिए हर संभव प्रयास किया। यह सब मेरी आंखों के सामने हो रहा था। पर अंत में वही हुआ और सब कुछ एक झटके में खतम हो गया, डॉक्टर्स कुछ नही कर पाए सुमित के लिए और सुमित बहुत कुछ अधूरा छोड़ कर बिना कुछ कहे हमेशा के लिए चला गया। सुमित की बॉडी को मेरे सामने पैक किया जा रहा था, मैंने घर के सभी सदस्यों को बुला लिया हॉस्पिटल और फॉर्मल्टी पूरी करने में लग गया। मेरे पापा मम्मी रात रात भर रोते रहते थे, हमारा घर उजड़ चुका था।'

रवींद्र बताते हैं, 'बस यहीं से सुमित फाउंडेशन 'जीवनदीप' की नींव रखी मैंने। क्योंकि मैं इस वजह को मन में दबा कर नहीं बैठना चाहता था। मैंने सोच लिया था की अब कुछ भी हो जाए मैं अपने हर आखिरी स्तर पर प्रयास करूंगा और जिंदगियां बचाऊंगा। मैंने एक बार जॉब छोड़ने के बाद कभी नौकरी नहीं की। बस हमेशा छोटे मोटे काम करके अपने खर्च उठाता था और सुबह से शाम इसी मेडिकल हेल्प के काम में लगा रहता था मेरा सारा दिन अक्सर सरकारी हॉस्पिटल की मदद करके बीतता था, पूरी कोशिश करता की किसी को पैसे के अभाव में तड़पने ना दूं।'

सुमित फाउंडेशन 'जीवनदीप' हर महीने कम से कम दस मेजर केस पर वर्कआउट करती रहती है। सुमित फाउंडेशन 'जीवनदीप' का फेसबुक पर एक ग्रुप बना हुआ है, इस ग्रुप में प्रतिदिन देश दुनिया में मेडिकल चिकित्सा और अन्य बातो से सम्बंधित जानकारी दी जाती है, जिस पर ग्रुप के सदस्यों के बीच विचार-विमर्श हो रहता है। आप भी अपनी मदद इस ग्रुप के माध्यम से पहुंचा सकते हैं, जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें।

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