अब तो फिल्म रिलीज करना कुहनी से पहाड़ ठेलने जैसा
फिल्मों के रिलीज होने के साथ कई तरह का गुणा-भाग, उठा-पटक भी अंदरखाने चलती रहती है, जो मीडिया से दूर रहने वाले दर्शकों को आखिर तक पता नहीं चल पाती हैं। मसलन, कौन सी फिल्म कब और क्यों रिलीज की जा रही है, कब रिलीज होगी तो अच्छी कमाई हो जाएगी और उस मौके से चूक हो गई तो गच्चा खा जाएगी। बात संजय लीला भंसाली की जोर और शोर से रिलीज होने वाली फिल्म 'पद्मावत' की हो या हो फिल्म 'जीना इसी का नाम है'। जब से नई टेक्नोलॉजी ने उछाल मारा है, रिलीज होने से पहले ही फिल्म दर्शकों के मोबाइल तक पहुंच जाना भी एक नई तरह की मुसीबत।
भारी-भरकम करोड़ों का बजट झोकने के बाद जब तैयार फिल्म लेकर निर्माता बाजार और देश-समाज की टोह लेने, अनुकूल हालात को पढ़ने निकलता है, उसके सामने खड़े हजार तरह के चैलेंज अक्सर पांव डिगाने लगते हैं।
नए जमाने में बातें अब 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' नामक आधुनिक जुमले से बहुत आगे निकल चुकी हैं। सीधी सी कहावत चलन में आ गई है, जिसकी लाठी, उसकी भैंस। वह लाठी कानून की हो या गैरकानूनी। आजकल निर्माता-निर्देशक कमाई के खास मौकों को ध्यान में रखते हुए फिल्में रिलीज करना चाहते हैं। फिल्म निर्माण में इतनी लागत आती है कि मौके चूके नहीं कि गए काम से। फिल्में रिलीज होने के साथ साथ कई तरह की अंदर अंदर गतिविधियां चलती रहती हैं। ऐसे में अगर कोई फिल्म रिलीज होने से पहले ही दर्शकों तक पहुंच जाती है, निर्माता की तो कमर ही टूट जाती है। ऐसी ही ऐक्टर अरबाज खान और ऐक्ट्रेस मंजरी की एक फिल्म रही है 'निर्दोष' है, जो रिलीज होने से पहले ही लीक हो गई।
रिलीज होने में धमकियां भी आड़े आती रहती है, जैसा कि इन दिनो 'पद्मावत' के साथ हो रहा है। वर्ष 2016 में ऐसा ही पाकिस्तानी कलाकारों के होने के कारण करण जौहर की फिल्म 'ऐ दिल है मुश्किल' के साथ हुआ था। कभी-कभी निर्माता जानबूझ कर पब्लिशिटी स्टंट के लिए खुद ऐसा कर दिया करते हैं और अपने ही रचे चक्रव्यूह में फंस भी जाया करते हैं। इस समय फिल्में रिलीज होने-न-होने की एक नई स्टोरी सुर्खियों में है। अक्षय कुमार दानी ऐक्शन में दिख रहे हैं तो दीपिका पादुकोण उन्हें थैंक यू बोल रही हैं। अक्षय कुमार ने ऐलान किया कि वह अपनी फिल्म 'पैडमैन' की 25 जनवरी की रिलीज डेट टाल रहे हैं। इसके बाद दीपिका पादुकोण ने ट्विट किया, सहयोग के लिए 'पद्मावत' की पूरी टीम की ओर से 'पैडमैन' टीम को शुक्रिया।
इस बीच सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद भंसाली टीम आने वाली एक नई मुसीबत पर आंखें गड़ाए हुए है। 'पद्मावती' का नाम बदलकर 'पद्मावत' कर देने और इसमें पांच संशोधन करने के बावजूद इसकी रिलीज को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। कुछ महिलाओं की ओर से बयान जारी किया गया है कि 'पद्मावत' रिलीज हुई तो वह चित्तौड़गढ़ के किले में उसी स्थान पर जौहर कर अपनी जान दे देंगी, जहां रानी पद्मिनी ने 16 हजार रानियों और दासियों के साथ जौहर किया था।
यह ऐलान चित्तौड़गढ़ में सर्व समाज की बैठक में बड़ी संख्या में उपस्थित महिलाओं ने किया। उनका तो यहां तक कहना था कि राजस्थान में ही नहीं, देश में कहीं भी 'पद्मावत' रिलीज हुई तो जौहर कर बैठेंगी। इसके अलावा रेलवे और राजमार्ग जाम करने की भी धमकियां दी जा रही हैं। इस तरह की ललकार राजपूत करणी सेना के संरक्षक लोकेंद्र सिंह कालवी की अगुवाई में हो रही है। ऐसे में एक सवाल उठता है कि क्या करणी सेना का ऐलान सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों से ऊपर है और क्या केंद्र सरकार इस सबसे बेखबर रहना चाहती है, जैसे कि यह सब देश से बाहर हो रहा हो और उसे इस सबसे कोई लेना-देना न हो।
करणी सेना 25-26 जनवरी को भारत बंद के ऐक्शन पर भी विचार कर रही थी लेकिन गणतंत्र दिवस आड़े आ गया है। इस बीच हजारों पर्यटकों की चिंता किए बगैर चित्तौड़गढ़ जौहर स्मृति संस्थान चित्तौड़गढ़ किला बंद करने की तैयारी में है। गौरतलब है कि गणतंत्र दिवस को ही ध्यान में रखते हुए 'पद्मावत' दो दिन पूर्व 24 जनवरी को रिलीज हो रही है।
इन सब हालात में अब फिल्मों का व्यवसाय खतरों के खिलाड़ी जैसा हो चुका है। भारी-भरकम करोड़ों का बजट झोकने के बाद जब तैयार फिल्म लेकर निर्माता बाजार और देश-समाज की टोह लेने, अनुकूल हालात को पढ़ने निकलता है, उसके सामने खड़े हजार तरह के चैलेंज अक्सर पांव डिगाने लगते हैं। एक सच्चाई ये भी है कि फिल्म निर्माण में माफिया किस्म के लोगों के शामिल हो जाने से भी समीकरण गड़बड़ा रहे हैं। माफिया अपने काले धन बूते कुछ भी कर गुजरने में सक्षम रहते हैं।
एक ऐसी विवादित छवि के फिल्म निर्माता हुआ करते थे शराब व्यवसायी पोंटी चड्ढा। कई बार फिल्में सरकारी नीतियों की भी चपेट में आ जाया करती हैं। मसलन, केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले के दौरान फिल्म व्यवसाय को भी उसका शिकार होना पड़ा था। व्यवसाय को कई सौ करोड़ रुपये का झटका लगा। देश में मल्टीप्लेक्स थिएटरों की संख्या लगभग 3500 एवं एकल स्क्रीन थिएटरों की संख्या लगभग 7000 है। मल्टीप्लेक्स थिएटरों के व्यवसाय में 40 से 60 फीसद और एकल स्क्रीन थिएटरों के व्यवसाय में करीब 70 से 90 फीसद की कमी दर्ज हुई थी।
फिल्मों के व्यवसाय का मिजाज अन्य तरह के कारोबार से जरा हटकर होता है। वह ऊपर से जितना ग्लैमरस दिखता हैं, अंदर उतनी ही उथल-पुथल होती है। निर्माण लागत में लगा बैंकों का कर्ज, फिल्म की कहानी, सेंसर बोर्ड की तलवार, दर्शक का मूड आदि फैक्टर भी इस व्यवसाय में आड़े आ जाया करते हैं। फिल्म अगर बड़े बजट की हो, फिर तो कामयाबी मिलने तक जान सांसत में झूलती रहती है।
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