अपनी तनख्वाह से गरीब बच्चों को पढ़ा रहा ये ट्रैफिक कॉन्स्टेबल
पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में ट्रैफिक विभाग में कॉन्स्टेबल अरूप मुखर्जी ने अपनी तनख्वाह और मां से लिए गए पैसों से गरीब बच्चों के लिए स्कूल बनवा दिया है।
इस स्कूल का नाम पुंचा नबादिशा मॉडल स्कूल है जिसकी शुरुआत 2011 में हुई थी। यहां पढ़ने वाले बच्चे खास तौर पर अनुसूचित जाति तबके से आते हैं। अरूप ने अपनी मां से 2.5 लाख रुपये उधार लिए थे ताकि यह स्कूल बनवा सकें।
नेल्सन मंडेला ने कहा था, 'शिक्षा वह शक्तिशाली हथियार है जिसकी बदौलत दुनिया बदली जा सकती है।' भारत में शिक्षित समाज बनाने के लिए वैसे तो कई प्रयास किए गए, लेकिन आज भी एक बड़ी आबादी शिक्षा के अधिकार से वंचित है। इस आबादी में दलित, पिछड़े और आर्थिक रूप से विपन्न लोगों की संख्या ज्यादा है। पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में ट्रैफिक विभाग में कॉन्स्टेबल अरूप मुखर्जी ने अपनी तनख्वाह और मां से लिए गए पैसों से गरीब बच्चों के लिए स्कूल बनवा दिया है। वह हर महीने अपनी तनख्वाह का एक हिस्सा इस स्कूल में लगा देते हैं ताकि गरीब बच्चों को मुफ्त में शिक्षा मिल सके और उनका भविष्य संवर सके।
इंडिया टुडे की खबर के मुताबिक इस स्कूल का नाम पुंचा नबादिशा मॉडल स्कूल है जिसकी शुरुआत 2011 में हुई थी। यहां पढ़ने वाले बच्चे खास तौर पर अनुसूचित जाति तबके से आते हैं। अरूप ने अपनी मां से 2.5 लाख रुपये उधार लिए थे ताकि यह स्कूल बनवा सकें। उन्होंने कुछ और लोगों से उधार पैसे लिए और यह स्कूल जाकर तैयार हुआ। यह स्कूल बोर्डिंग स्कूल के जैसा है जिसमें 112 बच्चों के रहने की सुविधा है। अरूप ने बताया कि पहले 15-20 लड़कों के साथ शुरुआत हुई थी, लेकिन साल दर साल बच्चों की संख्या बढ़ती गई।
बच्चों को पढ़ाने के अलावा उनके शारीरिक विकास पर भी उचित ध्यान दिया जाता है और उन्हें खेलकूद में भी हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। अरूप के इस नि:स्वार्थ काम ने कई अध्यापकों को प्रोत्साहित भी किया जिन्होंने इस स्कूल में आकर बच्चों को मुफ्त में पढ़ाने का जिम्मा संभाला। एक अध्यापक पीयू प्रमाणिक ने कहा, 'ये बच्चे गरीब परिवारों से आते हैं जिनके पास पैसों की भारी कमी होती है और इस वजह से वे अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाते। हम उन्हें देश के लिए एक बहुमूल्य संसाधन के तौर पर तैयार कर रहे हैं। ताकि वे देश के विकास में अपना योगदान दे सकें।'
इस स्कूल को पूर्व क्रिकेटर सौरव गांगुली की चैरिटी संस्था द्वारा भी 25,000 रुपये मिलते हैं। अरूप से सौरव की मुलाकात एक टीवी शो में हुई थी। जहां सौरव इस स्कूल के बारे में जानकर काफी खुश हुए थे और उन्होंने अपनी संस्था द्वारा हरसंभव मदद का आश्वासन दिया था। वाकई में अपने स्वार्थों को पीछे छोड़कर समाज और देश के लिए कुछ करना छोटा काम नहीं है। इसके लिए पूरी तरह समर्पित होना पड़ता है। अरूप उन तमाम लोगों के लिए एक मिसाल हैं जो बदलाव के लिए सिर्फ सरकारों को कोसना जानते हैं।
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