Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

पॉली हाउस और इंटीग्रेटेड फॉर्मिंग से हर महीने लाखों की कमाई कर रहे किसान

बदला खेती करने का तरीका, बदली किसानों की तकदीर

पॉली हाउस और इंटीग्रेटेड फॉर्मिंग से हर महीने लाखों की कमाई कर रहे किसान

Tuesday May 08, 2018 , 7 min Read

इंटीग्रेटेड फॉर्मिंग (एकीकृत खेती) और पॉली हाउस सिस्टम से खेती कर किसान हर महीने लाखों रुपए की कमाई करने लगे हैं। धौलपुर के नाथूराम ढांडी, बदायूं के गोपेश, तेलंगाना के रंगा रेड्डी, राजस्थान के गजानंद पटेल, उत्तर प्रदेश के अमन लकारा आदि ऐसे ही आधुनिक कृषक हैं जो पारंपरिक तरीके की खेतीबाड़ी छोड़कर नए तरीके से खेती में लाखों की आय करने लगे हैं। रेड्डी का सालाना टर्नओवर तो एक करोड़ तक पहुंच चुका है।

 सांकेतिक तस्वीर

 सांकेतिक तस्वीर


पॉली हाउस में बेमौसमी उत्पादन के लिए वही सब्जियाँ उपयुक्त होती हैं जिनकी बाजार में माँग अधिक हो और वे अच्छी कीमत पर बिक सकें। पर्वतीय क्षेत्रों में जाड़े में मटर, पछेती फूलगोभी, पातगोभी, फ्रेंचबीन, शिमला मिर्च, टमाटर, मिर्च, मूली, पालक आदि फसलें तथा ग्रीष्म व बरसात में अगेती फूलगोभी, भिण्डी, बैंगन, मिर्च, पातगोभी एवं लौकी वर्गीय सब्जियाँ ली जा सकती हैं।

खेती-किसानी में उत्तर प्रदेश के अमन लकारा हों या तेलंगाना के रंगा रेड्डी अथवा राजस्थान के गजानंद पटेल, फॉर्मिंग अब उन्नतशील किसानों के लिए नकदी मुनाफे का पेशा हो चली है। गांवों में अब धान, गेहूं, चना, बाजरा की पारंपरिक खेती से हाथ झाड़ते हुए किसान ऐसी फसलों अथवा फॉर्मिंग के अन्य उत्पादनों में अपनी किस्मत आजमाने लगे हैं, जिससे खुशहाल व्यवसायियों की तरह उनके भी बैंक बैलेंस भरोसेमंद होने लगे हैं। इंटीग्रेटेड फॉर्मिंग सिस्टम किसानों को लखपति बना रहा है। इंटीग्रेटेड फॉर्मिंग यानी एक साथ खेत-खलिहान से जुड़े कई तरह के उद्यम। अब फसलों के जरिये मुनाफा कमा पाना काफी मुश्किल हो चुका है।

ऐसी स्थिति में अगर खेती के साथ कृषि से जुड़ी सह गतिविधियों को भी जोड़ दिया जाए तो खेती को आर्थिक रूप से व्यावहारिक बनाने के साथ किसानों की शुद्ध आय को भी बढ़ाया जा सकता है। ऐसा एकीकृत खेती के जरिये किया जा सकता है जिसमें जमीन के उसी टुकड़े से खाद्यान्न, चारा, खाद और ईंधन भी पैदा किया जा सकता है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि एकीकृत किसानी से दोगुनी, तिगुनी कमाई की जा सकती है। अनाज के साथ मशरूम, फल, शहद, सब्जी, अंडे, दूध का कारोबार भी किसान करें तो उन्हें कभी घाटा नहीं होगा। हालांकि इस तरह की विविध खेती प्रणाली में समाहित किए जा सकने वाले कृषि उद्यमों का चयन बेहद सावधानी से करना चाहिए।

इन सभी तरीकों को एक दूसरे के साथ तालमेल में होना चाहिए और जमीन एवं अन्य संसाधनों की कम-से-कम खपत करने वाला होना चाहिए। एक साथ किए जा सकने वाले कृषि-अनुषंगी कार्यों की कोई कमी नहीं है। इनमें पशुपालन, बागवानी, हर्बल खेती, मशरूम उत्पादन, मधुमक्खी पालन, रेशम उत्पादन, मत्स्य पालन और कृषि-वानिकी जैसे काम शामिल हैं। एकीकृत खेती प्रणाली का अगर वैज्ञानिक तरीके से अनुपालन किया जाए तो वह खेती में लगे परिवारों को पूरे साल की आजीविका देने के अलावा उनकी आय वृद्धि का भी माध्यम बन सकता है। इसके अलावा इन खेती प्रणालियों में श्रम की अधिक आवश्यकता को देखते हुए संबंधित कृषक परिवार के अलावा कुछ अन्य लोगों को भी रोजगार मिल सकता है।

बरेली (उ.प्र.) के गांव अभयपुर के अमन लकारा ऐसे ही एक कामयाब किसान हैं। उनकी लगभग 56 बीघे की काश्तकारी में सिर्फ फसलें उगाना नहीं, पशु पालन, मछली पालन, मुर्गी पालन भी है। वह अपने खेत में तालाब बनवाकर मछलियां पाल रहे हैं, जिससे साल में चार-पांच लाख की कमाई हो जा रही है। इसके अलावा वह लगभग सवा सौ मुर्गियां पाले हुए हैं। इससे भी सालाना लाख-सवा-लाख रुपए की आय हो जाती है।

इसी तरह ट्राउट मछली पालन के बिजनेस में तो नाबार्ड बीस फीसदी तक सब्सिडी दे रहा है। दो-ढाई लाख रुपए लगाकर ट्राउट फार्मिंग शुरू की जा सकती है। इसमें सब्सिडी घटा दें तो ये लागत घटकर एक तिहाई से भी कम रह जाती है। ट्राउट साफ पानी में पाई जाने वाली मछली होती है। हिमाचल प्रदेश, जम्‍मू कश्‍मीर, उत्‍तराखंड, तमिलनाडु, करेल आदि में यह यह मछली खूब पाई जाती है। पहले ही साल में इससे तीन, साढ़े तीन लाख तक कमाई हो जाती है। चंदापुर (तेलंगाना) के एक किसान हैं के. रंगा रेड्डी, जो फॉर्मिंग से एक लाख से अधिक की हर महीने कमाई कर ले रहे हैं। वह ताजा सब्जियों की खेती कर रहे हैं। बताते हैं कि पिछले सात-आठ साल के भीतर उनका सालाना टर्नओवर एक करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है। वह पंडाल और शेड का इस्तेमाल करते हुए सब्‍जि‍यों की हाईटेक तरीके से खेती कर रहे हैं। सप्लाई के लिए उन्होंने खुद की वैन भी रख रखी है, जो बाजार तक सब्जियां पहुंचाती है।

महासमुंद (राजस्थान) के किसान गजानंद पटेल मात्र चार एकड़ जमीन में फल और सब्जी की खेती से सालाना 40 लाख रुपए तक की कमाई कर रहे हैं। पॉलीहाउस खेती की जैविक विधि है। खेत को पारदर्शी पॉलीमर से ढंक दिया जाता है। पॉलीहाउस खेती में बिना मौसम की सब्जियां, फूल और फल उगाए जा सकते हैं। इसमें सिंचाई ड्रिप सिस्टम से की जाती है। इससे पानी बहुत कम लगता है। पॉली हाउस (प्लास्टिक के हरित गृह) ऐसे ढाँचे हैं जो परम्परागत काँच घरों के स्थान पर बेमौसमी फसलोत्पादन के लिए उपयोग में लाए जा रहे हैं। ये ढाँचे बाह्य वातावरण के प्रतिकूल होने के बावजूद भीतर उगाये गये पौधों का संरक्षण करते हैं और बेमौसमी नर्सरी तथा फसलोत्पादन में सहायक होते हैं। साथ ही पॉली हाउस में उत्पादित फसल अच्छी गुणवत्ता वाली होती है।

अब बड़ी संख्या में किसानों का रुझान पॉली हाउस की खेती की ओर बढ़ रहा है। किसान आधुनिक तरीके से खेती कर मुनाफा कमाना चाह रहे हैं। बदायूं (उ.प्र.) में विनावर के बरखेड़ा गांव के किसान गोपेश ने पॉली हाऊस बनाकर बीज रहित खीरे की खेती की थी। उनका उगाया खीरा देश भर में निर्यात हो रहा है। उनसे प्रेरित होकर आसपास के किसान भी पॉली हाऊस के माध्यम से खेती करने के लिए कृषि विभाग से संपर्क साध रहे हैं। इसी तरह धौलपुर (राजस्थान) में कृषि विभाग से रिटायर्ड नाथूराम ढांडी ने कृषि विभाग के अनुदान पर पॉलीहाउस बनवाया। पहली बार खीरे की पांच वैरायटी उगाई। छह सप्ताह में फसल तैयार। आधा माल आगरा की मंडी में बेच दिया। उन्होंने बताया कि करीब 20 टन खीरे के उत्पादन से चार माह में ही करीब 3 लाख कमाई हो गई। थोक मार्केट में उनका खीरा 22 रुपए किलो तक बिक रहा है।

इसके साथ ही वह पीली और लाल शिमला मिर्च की खेती पर भी ध्यान लगा रहे हैं। ढाँचे की बनावट के आधार पर पॉली हाउस कई प्रकार के होते हैं। जैसे- गुम्बदाकार, गुफानुमा, रूपान्तरित गुफानुमा, झोपड़ीनुमा आदि। पहाड़ों पर रूपान्तरित गुफानुमा या झोपड़ीनुमा डिजायन अधिक उपयोगी होते हैं। ढाँचे के लिए आमतौर पर जीआई पाइप या एंगिल आयरन का प्रयोग करते हैं जो मजबूत एवं टिकाऊ होते हैं। अस्थाई तौर पर बाँस के ढाँचे पर भी पॉली हाउस निर्मित होते हैं जो सस्ते पड़ते हैं। आवरण के लिए 600-800 गेज की मोटी पराबैगनी प्रकाश प्रतिरोधी प्लास्टिक शीट का प्रयोग किया जाता है। इनका आकार 30-100 वर्गमीटर रखना सुविधाजनक रहता है।

पॉली हाउस में बेमौसमी उत्पादन के लिए वही सब्जियाँ उपयुक्त होती हैं जिनकी बाजार में माँग अधिक हो और वे अच्छी कीमत पर बिक सकें। पर्वतीय क्षेत्रों में जाड़े में मटर, पछेती फूलगोभी, पातगोभी, फ्रेंचबीन, शिमला मिर्च, टमाटर, मिर्च, मूली, पालक आदि फसलें तथा ग्रीष्म व बरसात में अगेती फूलगोभी, भिण्डी, बैंगन, मिर्च, पातगोभी एवं लौकी वर्गीय सब्जियाँ ली जा सकती हैं। फसलों का चुनाव क्षेत्र की ऊँचाई के आधार पर कुछ भिन्न हो सकता है। वर्षा से होने वाली हानि से बचाव के लिए अगेती फूलगोभी, टमाटर, मिर्च आदि की पौध भी पॉली हाउस में डाली जा सकती है। इसी प्रकार ग्रीष्म में शीघ्र फलन लेने के लिए लौकीवर्गीय सब्जियों टमाटर, बैंगन, मिर्च, शिमला मिर्च की पौध भी जनवरी में पॉली हाउस में तैयार की जा सकती है।

यह भी पढ़ें: स्टार्टअप में आटा चक्की और पान की दुकान!