90 फीसदी लकवाग्रस्त गिरीश अपनी दर्द भरी कहानी से बदल रहे हैं करोड़ों की जिंदगी
शारीरिक अक्षमता के चलते जो पड़े रहते थे कभी बिस्तर पर, आज वो बदल रहे हैं करोड़ों की ज़िंदगी...
गिरीश अब बाकी की जिंदगी दूसरों को प्रेरणा देने में लगा रहे हैं। यह देखकर डॉक्टर भी खुश हो गए। इसके बाद गिरीश ने कभी मुड़कर नहीं देखा। जैसी भी उनकी हालत थी वे बिना परवाह करते हुए आगे बढ़ते गए। इसके बाद उन्होंने इंटीरियर डिजाइन का बिजनेस शुरू किया।
एक समय ऐसा भी था, जब गिरीश को हर वक्त एक पर्सनल केयरटेकर की जरूरत पड़ती थी। बिस्तर पर पड़े-पड़े उन्हें इतना बुरा लगता कि वे चीखने लगते थे लेकिन वे असहाय थे, ऐसे में किसी का इस तरह सामने आना अपने आप में काबिल-ए-तारीफ है।
शारीरिक अक्षमता कई लोगों को असहाय बना देती है और कहीं का नहीं छोड़ती, लेकिन कुछ लोग अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति की बदौलत उसे न केवल मात देते हैं बल्कि न जाने कितने लोगों के जीवन में खुशियां भर देते हैं। ऐसे ही एक इंसान का नाम है गिरीश गोगिया। गिरीश का शरीर लकवाग्रस्त है और वह व्हीलचेयर के सहारे चलते हैं, लेकिन वह मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं और लाखों लोगों को जिंदगी में बहुत कुछ हासिल करने के लिए प्रेरित करते रहते हैं। आज हम आपको उनके जीवन से रूबरू करवाने जा रहे हैं। आज से लगभग 18 साल पहले की बात है। साल 1999 में दिसंबर में गिरीश के साथ एक गंभीर हादसा हुआ था।
गोवा में एक दुर्घटना में वह समुद्र में डूबने वाले थे। उनकी जान लगभग जाने वाली थी। वह मदद के लिए तड़प रहे थे। उन्हें लग रहा था कि वह अब जिंदा नहीं बचेंगे। लेकिन एक यूरोपियन महिला ने उन्हें बचा लिया। लेकिन दुख की बात ये रही कि वह महिला जीवित नहीं बची और समुद्र में ही लापता हो गई। गिरीश को आज भी इस बात का दुख है कि वह उसे शुक्रिया नहीं कह सके। समुद्र से बाहर आने पर गिरीश हिल-डुल पाने में असमर्थ थे। उन्हें तुरंत एंबुलेंस के जरिए अस्पताल पहुंचाया गया। ट्रैफिक की वजह से थोड़ी देरी भी हुई, लेकिन मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में भर्ती कराने के बाद डॉक्टरों ने उनका इलाज करना शुरू किया।
डॉक्टरों ने बताया कि उनकी हालत काफी गंभीर है। उनका इलाज शुरू होते ही डॉक्टरों को पता चला कि उनकी गर्दन का निचला हिस्सा काम ही नहीं कर रहा है। यानी कि उनके शरीर को लकवा मार गया था। इसके बाद पता चला कि वे अब कभी भी वापस सामान्य जिंदगी नहीं जी सकेंगे। शरीर का 90 प्रतिशत हिस्सा काम करना बंद चुका था और यह हमेशा के लिए हो गया था। यह सुनकर उनके माता-पिता को कठोर आघात पहुंचा। कुछ ही देर पहले वे परिवार के साथ गोवा में समुद्र के किनारे जिंदगी का आनंद ले रहे थे और अब वे अस्पताल में बिस्तर पर थे। उनकी पूरी जिंदगी पल भर में जैसे तबाह हो गई थी। उनकी पत्नी की भी जिंदगी में एक सूनापन आ गया था।
इसके बाद स्थिति ऐसी आ गई कि कि हर वक्त उन्हें एक पर्सनल केयरटेकर की जरूरत पड़ने लगी। बिस्तर पर पड़े-पड़े उन्हें इतना बुरा लगता कि वे चीखने को होते। लेकिन वे असहाय हो गए थे। एक वक्त तो उन्हें ऐसा भी लगा कि इससे बेहतर तो मौत ही आ जाती। क्योंकि उन्हें इतना दर्द और कष्ट सहना पड़ रहा था। गिरीश बताते हैं, 'मैं एक जगह पर ठहरने वाला इंसान नहीं था, मुझे घूमना काफी पसंद था, लेकिन मेरी जिंदगी ने मुझे एक जगह रोक दिया था। मैं कहीं आगे नहीं बढ़ पा रहा था।' गिरीश को इतना दर्द होता था कि उनके लिए हर एक दिन एक साल के जैसे लगता था। इससे वे खुद को मानसिक और शारीरिक दोनों तरीके से कमजोरपा रहे थे।
अस्पताल में रहते हुए 17वें दिन अस्पताल के स्टाफ ने उन्हें खिसकने में मदद करने के लिए हाथ बढ़ाया तो पता चला कि उनके शरीर में कई घाव हो चुके थे। डॉक्टरों ने उनके परिवार वालों को बताया कि अब वे ज्यादा दिन के मेहमान नहीं हैं, क्योंकि उनकी हालत काफी बुरी हो चुकी थी। उनके माता-पिता जो ये सोच चुके थे कि अब अपने बेटे का अच्छे से ख्याल रखेंगे, स्तब्ध रह गए। उन्हें कुछ समझ नहीं आया कि जिंदगी उन्हें किस मोड़ पर लेकर जा रही है। परिवार का हर एक सदस्य जैसे टूट सा गया था। लेकिन 19वां दिन उनकी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ।
गिरीश ने खुद से पूछा, 'तुम शरीर के 90 प्रतिशत हिस्से को लेकर क्यों चिंतित हो, वो तो अब वापस आने वाला नहीं है। लेकिन बाकी 10 फीसदी हिस्सा तो अभी भी काम कर रहा है। तुम सोच सकते, हो, खा-पी सकते हो, बोल सकते हो, देख सकते हो, दिल की धड़कनें अभी भी चल रही हैं, यानी कि अभी भी तुम जिंदा हो।' उन्हें लगा कि जिंदगी जीने के लिए ताकत अंदर से ही मिलती है उसमें कोई दूसरा इंसान कुछ नहीं क सकता। इससे उन्हें आगे बढ़ने की ताकत मिली और वे व्हीलचेयर के सहारे डॉक्टर के पास गए। उन्होंने डॉक्टर से कहा, 'मैंने आपका डायग्नोसिस देखा है, लेकिन मुझे उस पर यकीन नहीं है। मैं अपनी बाकी जिंदगी किसी सब्जी की तरह पड़े नहीं काटना चाहता हूं।'
गिरीश अब बाकी की जिंदगी दूसरों को प्रेरणा देने में लगाने वाले थे। यह देखकर डॉक्टर भी खुश हो गए। इसके बाद गिरीश ने कभी मुड़कर नहीं देखा। जैसी भी उनकी हालत थी वे बिना परवाह करते हुए आगे बढ़ते गए। इसके बाद उन्होंने इंटीरियर डिजाइन का बिजनेस शुरू किया। उन्होंने इसके बाद कई सारे बड़े-बड़े प्रॉजेक्ट किए। मुंबई की लैंडमार्क बिल्डिंग सीएसटी स्टेशन पर भी उन्होंने डिजाइनिंग की। उन्होंने यह काम 90 प्रतिशत लकवाग्रस्त शरीर के सहारे किया। वे कहते हैं कि यह सिर्फ और सिर्फ दृढ़ इच्छाशक्ति और पैशन की बदौलत ही संभव था। इसके बाद उन्हें सुखद अनुभूति हुई।
उनके काम को काफी ख्याति मिली और कई इंटरनेशनल आर्किटेक्चरल पत्रिकाओं में उनके काम के बारे में छापा गया। वे बताते हैं कि परिवार के सपोर्ट के बगैर यह संभव नहीं था। लेकिन अभी भी गिरीश पूरी तरह से संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने अपनी पत्नी ईशा से कहा कि वे अपनी जिंदगी और संघर्ष के अनुभवों को दूसरों से साझा करना चाहते हैं। इसके बाद उन्होंने अपने और अपने परिवार के दुख-दर्द को प्रेरणा में तब्दील कर दिया। लेकिन उनकी जिंदगी में एक दुखद हादसा हो गया। जिसकी वे कभी कल्पना भी नहीं कर सकते थे। शायद जिंदगी अभी उन्हें और परखना चाहती थी।
एक दिन गिरीश के घर में उनके और उनकी पत्नी के सिवा और कोई नहीं था। घर के दरवाजे और खिड़कियां बंद थीं और वह अपने कमरे में सो रहे थे। उनकी पत्नी उन्हें खाना खिलाने आईं। वह जब खाना खिलाकर वापस जाने लगीं तो अचानक से उन्हें सब कुछ धुंधला नजर आने लगा। इसके बाद उनका शरीर भी लकवाग्रस्त हो गया। वह बोल और चलफिर पाने में असमर्थ हो गईं। उधर बिस्तर पर गिरीश अपनी पत्नी की मदद करने में खुद को असहाय पा रहे थे। उन्होंने फिर चिल्लाना शुरू किया और घंटे भर चीखते रहे, लेकिन दरवाजे खिड़कियां बंद होने की वजह से आवाज बाहर नहीं जा पा रही थी। किसी तरह एक वॉचमैन ने उनकी आवाज सुनी और दरवाजा तोड़कर वह घर के अंदर दाखिल हुआ।
गिरीश कहते हैं, 'मेरी जिंदगी में यह दूसरा बड़ा आघात था। मेरे परिवार वाले जो मेरे दुख से उबरने की कोशिश कर रहे थे उन्हें एक और झटका लग गया। इसके बाद मेरी जिंदगी और भी कष्टमय हो गई। यह मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा दुख था जिसे मैं आज भी सह रहा हूं। मेरी पत्नी को मुझसे भी ज्यादा सहना पड़ रहा है।' बाद में जांच होने के बाद डॉक्टरों ने बताया कि ईशा को खतरनाक बीमारी मल्टीपल सेलेरोसिस का आघात पड़ा था जिसका अभी इस दुनिया में कोई इलाज नहीं है। धीरे-धीरे ईशा का स्वास्थ्य गिरता गया और उनकी 90 प्रतिशत दृष्टि और 90 प्रतिशत बोलने की क्षमता कम हो गई।
पिछले नौ सालों से वह बिस्तर पर पड़ी रहती हैं, लेकिन फिर भी गिरीश उनका पूरा सपॉर्ट करते हैं। वे कहते हैं, 'हम दोनों की हालत ऐसी है जिसे कभी ठीक नहीं किया जा सकता। लेकिन हम दोनों एक दूसरे के सहारे जी रहे हैं। मैं भगवान को इसके लिए धन्यवाद देता हूं। हमने जिंदगी को जितने करीब से देखा है, उतना शायद किसी ने नहीं देखा होगा।' गिरीश कहते हैं कि इंसानों के उत्साह और भावनाओं से मजबूत कुछ नहीं होता। उन्होंने इसके बाद अपना इंटीरियर डिजाइनिंग का बिजनेस बंद कर दिया और अब वे लोगों को मोटिवेशनल स्पीच देते हैं। उनकी पत्नी इस हालत में नहीं होतीं कि वे उनके साथ समारोह में जा सकें, लेकिन गिरीश कहते हैं कि वह हर पर उनके साथ रहती हैं।
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