जिसे 40 कंंपनियों ने किया रिजेक्ट, उसने समाज और पर्यावरण को बचाने के लिए उठाया एक सराहनीय कदम
ठीक तरह से न बोल पाने की वजह से नहीं मिली नौकरी तो कर दिया किताबों का एक अनोखा स्टार्टअप शुरू...
देश के एक बड़े शहर यानि कि बेंगलुरु से मैकेनिकल इंजीनियरिंग और दिल्ली के एक प्रतिष्ठित कॉलेज से एमबीए करने के बावजूद एक लड़के को सिर्फ इसलिए नौकरी नहीं मिली क्योंकि वो अपने कटे हुए तालुओं की वजह से सामान्य लोगों की तरह बात करने में समर्थ नहीं था। उसने हार नहीं मानी और शुरू कर दिया पर्यावरण को बचाने का एक ऐसा काम जिसके लिए रद्दी में रखी हुई किताबें उसका हर पल शुक्रिया कहती हैं...
सुशांत झा अपनी धुन के पक्के हैं। कई रिजेक्शन के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और खुद का कुछ ऐसा काम शुरू करने का फैसला लिया, जिससे सिर्फ पैसे ही न कमायें, बल्कि समाज के लिए भी कुछ कर सकें।
भाई के साथ ने सुशांत को दी हिम्मत और शुरू कर दिया पुरानी किताबों के साथ एक नया प्रयोग।
बेंगलुरु के एक प्रतिष्ठित कॉलेज से मैकेनिकल इंजिनियरिंग में बी. टेक करेन के बाद भी सुशांत झा को नौकरी के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा था। कॉलेज में प्लेसमेंट के दौरान कई सारी कंपनियां आईं, लेकिन सुशांत को किसी ने सेलेक्ट नहीं किया। वजह? सुशांत बताते हैं कि उनके कटे हुए तालुओं की वजह से वे सामान्य व्यक्ति की तरह बोलने में असमर्थ हैं, इसलिए उन्हें नौकरी नहीं मिली। सुशांत कहते हैं, 'कैंपस प्लेसमेंट के बाद भी मैं नौकरी ढूंढ़ने का प्रयास करता रहा, लेकिन कंपनियां सिर्फ मेरी बातचीत की वजह से मुझे रिजेक्ट करती रहीं। वे मुझसे कोई टेक्निकल क्वैश्चन ही नहीं पूछते थे। सिर्फ कुछ जनरल क्वैश्चन पूछने के बाद मुझे रिजेक्ट कर दिया जाता।'
एक साल तक नौकरी खोजने में बिताने के बाद भी जब सुशांत को नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने अपनी स्किल बढ़ाने का फैसला कर लिया। उन्होंने मैनेजमेंट कोर्स में एडमिशन के लिए होने वाले टेस्ट MAT की तैयारी शुरू की। MAT में अच्छा स्कोर होने के बावजूद उन्हें किसी कॉलेज से कॉल ही नहीं आ रही थी। इसलिए वह किसी भी टॉप बिजनेस स्कूल में नहीं पढ़ सके। काफी प्रयास के बाद सुशांत को दिल्ली के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में दाखिला मिल गया।
सुशांत एमबीए में भी अच्छा कर रहे थे, हालांकि इस डिग्री से भी उन्हें कुछ खास फायदा नहीं हुआ और उन्हें नौकरी के लिए फिर से भटकना पड़ गया। सुशांत बताते हैं कि उन्हें लगभग 40 कंपनियों ने रिजेक्ट किया। इसके बाद वह काफी हताश और निराश हो गए थे। एमबीए करने के 2 साल बाद सुशांत अपने घर पर बैठकर सोच रहे थे कि उनकी मिडल क्लास फैमिली ने उनसे कितनी उम्मीदें की थीं और उन्हें एक नौकरी तक नहीं मिली। सुशांत भी अपनी धुन के पक्के हैं। उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और खुद का कुछ शुरू करने का फैसला कर लिया। लेकिन इस बार सुशांत का मकसद सिर्फ पैसे कमाना नहीं था। वह समाज के लिए कुछ अच्छा करना चाहते थे।
सुशांत ने अपने बड़े भाई प्रशांत से बात की। सुशांत किताबों से जुड़ा कोई काम करना चाहते थे। उन्होंने सोचा कि इंजिनियरिंग के दौरान स्टूडेंट्स एग्जाम से कुछ ही दिन पहले काफी महंगी-महंगी किताबें खरीदते हैं और बाद में उसे मामूली दाम में किसी कबाड़ी को बेच देते हैं। इसके बाद दोनों भाइयों ने मिलकर 'बोधि ट्री नॉलेज सर्विस' नाम से एक कंपनी बनाई और पढ़ेगा इंडिया इनिशिएटिव नाम से 2014 में एक पहल की शुरुआत की।
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सुशांत के कई दोस्तों ने उन पर यकीन नहीं किया, लेकिन कई दोस्त ऐसे थे जिन्होंने सुशांत को हर तरह से सपोर्ट किया और उनके सफल होने की कामना भी की।
पढ़ेगा इंडिया इनिशिएटिव के तहत सबसे पहले साउथ दिल्ली के इलाके में सेकेंड हैंड किताबों को सर्कुलेट किया गया। इसका मकसद उन लोगों तक किताबें पहुंचाना था, जो किन्हीं वजहों से महंगी किताबें नहीं अफोर्ड कर सकते थे। सुशांत बताते हैं कि बचपन में वे छुट्टियों के दौरान गरीब बच्चों के लिए लाइब्रेरी बनाते थे और कॉमिक्स, कहानियों की किताबें इकट्ठा करते थे। इस काम से उन्हें अपने बचपन की याद आ गई। सुशांत ने अपना कां पहले 2 बेडरूम वाले घर से शुरू किया और आगे चलकर अपने काम को साउथ दिल्ली में शिफ्ट कर दिया। शुरुआती दौर में दोनों भाइयों ने पूरी दिल्ली में ऐसी दुकानों की पहचान की, जहां पुरानी किताबें बेची जाती थीं। वे इन दुकानों से किताबें खरीदते थे और जिसे भी इन किताबों की जरूरत होती उसे पहुंचा देते थे। सुशांत पहले तो यह काम खुद करते थे ताकि कंपनी का प्रचार हो सके और लोग उन पर भरोसा जता सकें।
सुशांत के इस आइडिया को सरकार ने स्टार्टअप के रूप में चिन्हित किया है और वे इन्वेस्टर्स से मदद की तलाश में हैं। सुशांत की वेबसाइट पर जाकर कोई भी किताबें खरीद या बेच सकता है। जो लोग किताबें दान करना चाहते हैं वे भी वेबसाइट के जरिए इन्हें बता सकते हैं।
सुशांत की कंपनी किताबों को सेलर्स के यहां से फ्री में पिकअप कर लेती है। सुशांत कहते हैं कि आप खुशियां भले ही न खरीद सकें, लेकिन किताबें जरूर खरीद सकते हैं। वह अपनी पहल पर गर्व करते हैं। पढ़ेगा इंडिया अभी सिर्फ दिल्ली और एनसीआर में अपनी सर्विस मुहैया करा रहा है, लेकिन सुशांत की चाहत है, कि पूरे देश में इस पहल का विस्तार हो और लोग आसानी से किताबों तक पहुंच सकें।
सुशांत इस बात में यकीन रखते हैं कि जो होता है, अच्छे के लिए होता है। उन्हें अपनी जिंदगी से कोई शिकायत नहीं है। बल्कि वह खुश होकर बताते हैं कि समाज और पर्यावरण के भले के लिए वह कुछ कर रहे हैं। सुशांत कहते हैं कि "मुझे खुशी है कि लोगों ने मुझे रिजेक्ट किया और मुझे ये काम करने का मौका मिला।"
पढ़ेगा इंडिया से पुरानी किताबें मंगाने के लिए आपको Padhegaindia.in पर जाना होगा और वहां से ऑर्डर करना होगा। उसके बाद आपको किताबों की होम डिलिवरी मिल जाएगी।