सेवा भी, कमाई भीः 20 मिनट के अंदर पहुंच जाते हैं Medulance के एंबुलेंस, 40 करोड़ रेवेन्यू की उम्मीद
प्रणव बजाज और रवजोत अरोड़ा ने मिलकर जुलाई 2017 में इसकी शुरुआत की थी. 6 साल की अवधि में मेडुलेंस के बिजनेस मॉडल की बदौलत 10 लाख से ज्यादा लोगों की जान बचाई जा चुकी हैं. आइए जानते हैं मेडुलेंस के अब तक के सफर के बारे में……
आए दिन हम अपने आस पास ऐसे मामले देखते या सुनते रहते हैं जब किसी शख्स की जान इसलिए नहीं बचाई सकी क्योंकि एंबुलेंस लेट से आई या ट्रैफिक में फंसने की वजह से समय पर नहीं पहुंच सकी.
नहीं तो, कोविड का दौर ही याद कर लेते हैं. हर दूसरे घर में लोगों को एंबुलेंस की जरूरत थी. उस समय शॉर्टेज की वजह से प्राइवेट एंबुलेंस कंपनियों ने मरीज के परिवार वालों से मनमाने दाम वसूले. जिस स्थिति में परिवार वाले मुश्किल से खुद को मजबूत बनाए रखते हैं उस स्थिति में ऐसे हालात से सामना उन्हें और तोड़ देता है.
बस इन्हीं समस्याओं को दूर करने और लोगों को मेडिकल ट्रांसपोर्टेशन सेगमेंट में सुधार लाने के इरादे से काम कर रहा है स्टार्टअप
. प्रणव बजाज और रवजोत अरोड़ा ने मिलकर जुलाई 2017 में इसकी शुरुआत की थी. 6 साल की अवधि में मेडुलेंस के बिजनेस मॉडल की बदौलत 10 लाख से ज्यादा लोगों की जान बचाई जा चुकी हैं. आइए जानते हैं मेडुलेंस के अब तक के सफर के बारे में……कहां से आया आईडिया
Medulance के को-फाउंडर प्रणव बताते हैं कि 2012 की बात है, हमारे को फाउंडर रवजोत के दादाजी की तबियत बिगड़ी और उन्हें समय पर एंबुलेंस नहीं मिल रही. उन्हें आनन फानन पर्सनल गाड़ी से हॉस्पिटल ले जाया गया लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी और उन्हें बचाया नहीं जा सका.
2016 में रवजोत ने मेरे साथ एक बार ये कहानी साझा की थी. उस समय जियोलोकेशन टेक्नोलॉजी का फायदा उठाकर ओला उबर अच्छा खासा बिजनेस चला रहे थे. हमने सोचा क्यों ना टेक्नोलॉजी की मदद से हेल्थकेयर स्पेस में कुछ किया जाए. ताकि इंडस्ट्री में इमरजेंसी रेस्पॉन्स टाइम को कम किया जा सके.
इस तरह जुलाई, 2017 में मेडुलेंस की शुरुआत हुई. कंपनी ऑन डिमांड एंबुलेंस फैसिलिटी के साथ-साथ एंबुलेंस के अंदर मरीज को असिस्टेंस भी ऑफर करती है.
पहले क्या करते थे को फाउंडर्स
प्रणव बजाज मेडुलेंस में एक्विजिशन और ग्रोथ का काम देखते हैं. दिल्ली में पले बढ़े प्रणव ने शहीद सुखदेव कॉलेज ऑफ बिजनेस स्टडीज से फाइनैंस में ग्रेजुएशन की डिग्री ली है. मेडुलेंस को शुरू करने से पहले प्रणव जोमैटो में बिजनेस डिवेलपमेंट एक्टिविटीज को संभालते थे.
वहीं रवजोत सिंह अरोरा कंपनी में टेक्नोलॉजी और ऑपरेशंस संभालते हैं. रवजोत एक कम्प्यूटर साइंस इंजीनियर हैं जिन्होंने आईआईएम काशीपुर से आंत्रप्रेन्योरशिप ऑफ सर्टिफिकेट भी हासिल किया हुआ है. मेडुलेंस शुरू करने से पहले रवजोत 7 साल से अपने फैमिली बिजनेस को देख रहे थे.
क्या काम करती है कंपनी
कंपनी एंबुलेंस लीज पर देने के अलावा, कुछ खास डेडिकेटेड प्रोजेक्ट्स के लिए एंबुलेंस खरीदती भी है. प्राइवेट एंबुलेंसेज प्रोवाइडर्स को वेरिफाई करके उनका डेटा कलेक्ट करके उनके स्टाफ, फिटनेस सर्टिफिकेट, इंश्योरेंस सर्टिफिकेट और क्वॉलिटी स्टैंडर्ड की जांच करने के बाद अपने प्लैटफॉर्म पर एनलिस्ट करते हैं.
प्रणब बताते हैं कि कंपनी यूजर्स को सीधे एंबुलेंस ड्राइवर्स से कनेक्ट कराती है. उनके प्लैटफॉर्म पर सरकार, हॉस्पिटल्स से लेकर प्राइवेट कंपनियों के एंबुलेंस भी लिस्टेड हैं. कंपनी सभी तरह के अनुपालन, पैरामेडिकल स्टाफ, ड्राइवर्स मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर को चेक करने के बाद ही कोई एंबुलेंस को अपने प्लैटफॉर्म पर एनलिस्ट करती है. जीपीएस टेक्नोलॉजी की वजह से यूजर्स को सबसे करीबी एंबुलेंस भेजना सुनिश्चित किया जाता है.
बिजनेस मॉडल
मेडुलेंस कॉरपोरेट्स से लेकर कमर्शियल, रेजिडेंशियल फैसिलिटी, गेटेड कॉलोनी, इवेंट्स में हमारी एंबुलेंस लगी रहती हैं ताकि हम एमरजेंसी हालात में जल्द से जल्द रेस्पॉन्स कर पाएं. सभी सर्विसेज सब्सक्रिप्शन बेस्ड हैं. इन जगहों पर हम मेडिकल रूम फैसिलिटी भी लगाते हैं, जो हमारी दूसरी सर्विस है. इस फैसिलटी के तहत पैरामेडिकल स्टाफ और डॉक्टर मौजूद रहते हैं. ताकि इमरजेंसी स्थिति में तुरंत ट्रीटमेंट दिया जा सके.
Medulance B2B, B2C और B2G मॉडल पर काम करती है. B2B मॉडल के तहत कंपनी मणिपाल, कोलंबिया एशिया और फोर्टिस जैसे हॉस्पिटल के अलावा HCL, Schneider इलेक्ट्रिक जैसे बड़े कॉरपोरेशंस के साथ काम करती है. वहीं B2G मॉडल के अंतर्गत कंपनी ने एनटीपीसी, कोल इंडिया जैसी सरकारी कंपनियों के साथ भी पार्टनरशिप की हुई है. आज की तारीख में दिल्ली सरकार के 102 इमरजेंसी नंबर पर भी हमारी एंबुलेंस सर्विस उपलब्ध है.
ऑन डिमांड एंबुलेंस और पैरामेडिकल सर्विसेज देने के अलावा Medulance घर पर हेल्थकेयर फैसिलिटी भी ऑफर करती है. कस्टमर को कम दाम पर ICU ऐट होम फैसिलिटी दी जाती है, जिसमें मेडिकल इक्विपमेंट, बेड सोर मैनेजमेंट, फिजियोथेरेपी, स्टोमा केयर, इंफ्यूजन और ट्रैकियोस्टॉमी केयर आते हैं. कंपनी अब ई-फार्मेसी और लैब टेस्ट की सुविधा भी देने लगी है.
को फाउंडर प्रणव ने बताया कि अभी तक हम बीटूबी और बीटूजी मॉडल पर काम कर रहे थे. अगले 2 सप्ताह में हम बीटूसी सेगमेंट भी शुरू करने जा रहे हैं, जिसमें सिंगल कस्टमर भी सीधे अपने लिए या फैमिली मेंबर्स के सब्सक्रिप्शन पैकेज ले सकता है. इसकी प्राइसिंग भी अफॉर्डेबल रखी जाएगी.
कैसे कर सकते हैं बुकिंग
हमारी साइट https://medulance.com/ पर जाकर कोई भी एंबुलेंस बुक कर सकता है. या फिर कस्टमर केयर नंबर 8882978888 पर कॉल करके अपनी रिक्वेस्ट रजिस्टर करा सकता है.
24*7 कस्टमयर केयर हेल्पलाइन रखने के पीछे हमारा एक बड़ा मकसद था. प्रणव के मुताबिक इस इंडस्ट्री में कस्टमर्स के लिए हेल्पलाइन बहुत जरूरी है. क्योंकि कॉल पर ही कस्टमर पर अपनी असल परेशानी साफ-साफ बता सकते हैं उसी आधार पर हम फैसला ले पाते हैं उन्हें कौन सी सर्विस की जरूरत है.
रिक्वेस्ट मिलते ही टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके लोकेशन मैपिंग, डेटा मैपिंग करते हैं और सबसे नजदीकी एंबुलेंस को मौके पर भेजते हैं. मेट्रो शहरों में मेडुलेंस के एंबुलेंस 20 मिनट में जबकि टियर2-3 शहरों में 25 मिनट में पहुंच जाती है.
हमने जियो के साथ मिलकर स्मार्ट एंबुलेंस भी लॉन्च किया है. इस एंबुलेंस में पेशेंट का सारा डेटा ऑक्सीजन लेवल, शुगर लेवल, बीपी सभी जरूरी जानकारियां रियल टाइम में हॉस्पिटल या डॉक्टर के पास पहुंच जाती हैं. रिमोट शेयरिंग कैमरा के जरिए डॉक्टर पैरामेडिकल स्टाफ को तत्काल उपचार के लिए गाइडेंस भी दे पाते हैं.
डेमोग्राफिक
हम टियर1 के अलावा टियर2-3 शहरों में भी मौजूद हैं. वहां इंडस्ट्रियल यूनिट्स हमारे रेडार पर हैं. हां, इन शहरों में पैरामेडिकल स्टैंडर्ड पर काम करने की जरूरत है खासकर पैरामेडिकल स्टाफ की ट्रेनिंग सबसे बड़ी चुनौती है ताकि वहां भी मेट्रो सिटीज जैसी क्वॉलिटी सर्विस दे सकें. अगले दो सालों में हमारा 1000 शहरों तक पहुंचने का है. इस टारगेट को हासिल करने के लिए एंबुलेंस की क्वॉलिटी को अपग्रेड करना बहुत जरूरी है.
रेवेन्यू
मेडीलेंस अभी तक बूटस्ट्रैप्ड कंपनी ही रही है. हम लगातार तीन साल से नेट प्रॉफिटेबल बने हुए हैं और आगे भी प्रॉफिटेबल बने रहने का ही टारगेट है. पिछले साल हमने 24 करोड़ रुपये का रेवेन्यू हासिल किया था. इस साल हमारा रेवन्यू 40 करोड़ के आसपास रह सकता है.
अगले 12 से 15 महीनों में हम अपना रेवेन्यू 100 करोड़ और 15 से 20 फीसदी प्रॉफिटेबिलिटी बरकरार रखने का टारगेट रख रहे हैं. प्रणव कहते हैं, ‘जितना ज्यादा रेवेन्यू उतनी ज्यादा जानें बचाई गई हैं. यही हमारे लिए इंपैक्ट मेट्रिक्स की तरह काम करता है.’
कोविड काल ने दी सीख
कोविड पीरियड हमारे लिए लर्निंग वाला दौर रहा है. कोविड के दौरान हर दिन 800 से 1000 इनक्वायरी आती थीं. उस समय हर किसी को एंबुलेंस की जरूरत थी, हॉस्पिटल में बेड अवेलेबल नहीं थे, ऑक्सीजन नहीं था. हॉस्पिटल में वेटिंग टाइम की वजह से एंबुलेंट में एवरेज स्पेंड टाइम बढ़ गया था. इन सबसे हमने अपनी एग्जिक्यूशन कैपेबिलिटी बढ़ाई है यानी कि एक रिक्वेस्ट मिलने पर कितनी जल्दी रेस्पॉन्स कर सकते हैं, एंबुलेंस पहुंचा सकते हैं. हमने अपने बिजनेस को आगे ऐसी स्थिति के लिए तैयार किया है.
प्राइसिंग
हमारा विजन शुरू से ही सभी कैटेगरीज में स्टैंडर्ड प्राइसिंग रखने का था. जब हमने शुरू किया तो हमने पाया कि प्राइवेट एंबुलेंस मनमाना चार्ज कर रही हैं. कोई रेट कार्ड नहीं था. इसलिए हमने प्राइसिंग बहुत स्टैंडर्ड रखा जो अब भी बाकी जगहों के चार्जेस से 20 फीसदी कम है.
माइलस्टोन
अभी तक 100 स्मार्ट एंबुलेंस का ऑर्डर मिल चुका है, जिस पर काम हो रहा है. साथ में 7500 की अपनी एंबुलेंस फ्लीट को भी अपग्रेड करके उन्हें स्मार्ट एंबुलेंस बनाने पर काम कर रहे हैं. जो डिवाइस हमने बनाई है वो उसे किसी भी इक्विपमेंट में लगाकर उसे स्मार्ट बनाया जा सकता है. इस तरह ड्राइवर्स को अपने एंबुलेंस में कोई बड़ा बदलाव कराने की जरूरत नहीं पड़ती. अगले डेढ़ साल में अपने नेटवर्क में 3000 स्मार्ट एंबुलेंसेज रखने का टारगेट लेकर चल रहे हैं.
कॉम्पिटीशन और चुनौती
अभी ये इंडस्ट्री काफी शुरुआती दौर में है. कॉम्पिटीशन बढ़ने का मतलब होता है कि इंडस्ट्री को वैलिडेशन मिल रहा है. इसलिए कल को और कंपनियां इस फील्ड में उतरती हैं तो हम इसे पॉजिटिव साइन की तरह देखते हैं. इन सबके अलावा भारत में इमरजेंसी रेस्पॉन्स सर्विसेज बेहतर होंगी जिसकी बेहद सख्त जरूरत है.
कॉम्पिटीशन कितना भी हो मेडुलेंस इस फील्ड में अपना काफी नाम बना चुकी है और हम पहले की तरह बिजनेस करते रहेंगे. कंपनी अभी 100 से ज्यादा शहरों में मौजूद हैं. हमने ऐसा मॉडल तैयार किया है जो सक्सेसफुल है. एंबुलेंस सर्विसेज में एग्जिक्यूशन बहुत जरूरी है, जो क्रैक करना सबके लिए इतना आसान नहीं है. इसके अलावा हम बीटूबी बिजनेस में क्या काम करता है कैसे काम करता है इसकी बारिकियां समझ चुके हैं, जो बाकियों को समझने में काफी समय लगेगा.