तनाव के बीच COVID वार्ड में जाने के लिए खुद को कैसे प्रेरित करती हैं नर्सें? जानिए मुंबई की इस नर्सिंग उप प्रमुख से
सकारात्मक सोच के साथ कोरोना मरीजों की देखभाल कर रही हैं मुंबई की यह नर्सिंग उप प्रमुख
"ग्लोबल हॉस्पिटल मुंबई में नर्सिंग की उप प्रमुख रश्मि सावंत, COVID-19 रोगियों के साथ काम करने का अपना अनुभव बता रही हैं। वह कहती हैं कि 'यह हमारा काम है'।"
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नर्सिंग की उप प्रमुख रश्मि सावंत पिछले नौ वर्षों से मुंबई के ग्लोबल अस्पताल में काम कर रही हैं। रश्मि एक अनुभवी पेशेवर हैं और उन्हें नर्सिंग में 17 साल से अधिक का अनुभव है। लेकिन जब बात COVID-19 की आती है, तो जिंदगी और काम दोनों को ही विषम चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
जब मार्च 2020 में COVID-19 को महामारी घोषित किया गया था, तब हेल्थ वर्कर्स और पूरी आबादी समान रूप से वायरस, संक्रमण के प्रकार और इसके उपचार से प्रभावित हो गई। मुंबई तब सबसे बुरी तरह प्रभावित शहरों में से एक था।
रश्मि याद करते हुए कहती हैं,
''नर्सों के रूप में, हमने नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तरह की भावनाओं का अनुभव किया, हालांकि सकारात्मक सोच के साथ काम करना अधिक प्रभावी था। जहां मरीजों की देखभाल करना हमारी पेशेवर जिम्मेदारी थी, वहीं हम अपनी जिंदगी भी जोखिम में डाल रहे थे।"
वह कहती हैं कि उन्हें डर था कि कहीं वे अपने परिवार और प्रियजनों को संक्रमित न कर दें क्योंकि वायरस और इलाज के लिए सही दृष्टिकोण के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी।
वह कहती हैं,
“हमारे पास बदतर परिस्थितियों में भी शांत रहने का कोई विकल्प नहीं था। एक कोविड वार्ड में आठ घंटे बिताने का तनाव बहुत अधिक था।"
रश्मि कहती हैं कि उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि वह खुद और नर्सें एक मॉनीटर बायो ब्रेक लें और समय पर खाना भी खाएं। हालांकि, भांडुप (एक उपनगर) में अपने घर से परेल जहां अस्पताल था वहां तक का ट्रैवल टाइम अधिक तनावपूर्ण था।
जहां लोकल ट्रेन से आमतौर पर एक घंटे का समय लगता था, तो वहीं रश्मि बसों के लिए बस स्टॉप पर घंटों इंतजार करने के लिए मजबूर थीं। चूंकि लोकल ट्रेनें बंद कर दी गई थीं, इसलिए उन्हें कभी-कभी भीड़भाड़ वाली बस पकड़ने और अस्पताल पहुंचने के लिए तीन घंटे से अधिक समय तक इंतजार करना पड़ता था।
एक बार जब अस्पताल पहुंच गईं तो, रोगियों के मानसिक स्वास्थ्य की निगरानी करना भी महत्वपूर्ण था।
वह बताती हैं,
“COVID-19 की संक्रामक प्रकृति के बारे में दुखद बात यह है कि परिवार अपने मरीजों के साथ नहीं रह सकते। यह हम पर था, यह नर्सों पर था कि हम उनकी देखभाल करें, उनके सवालों के जवाब दें और यहां तक कि वीडियो कॉल की व्यवस्था करें ताकि वे अपने परिवारों से बात कर सकें। हमें परिवार को भी समझाना होता था कि वह तनाव न लें और शांत रहें।"
इस साल मार्च के अंत तक COVID-19 की दूसरी लहर ने मुंबई में कोरोना के मामलों को दोगुना कर दिया। लेकिन इस बार, रश्मि का कहना है कि उन्हें बीमारी का डर कम लगा।
वह बताती हैं,
“हम जानते थे कि हमें लड़ाई लड़नी है और जीतनी है। उसके लिए हमें अपना 100 प्रतिशत लगाना होगा और सकारात्मक बने रहना होगा। हमें मैनेजमेंट, बायोमेडिकल टीम और खरीद टीम से भी सपोर्ट मिला, जिन्होंने संकट से निपटने के लिए एक साथ काम किया।”
वह कहती हैं कि उनके लिए एक ऐसे मरीज को खोना काफी हृदय-विदारक था जो उनकी ही आयु के बराबर है। "इतने युवाओं को अपनी जान गंवाते हुए देखना दुखद है।"
नर्सिंग की उप प्रमुख होने के नाते, उनकी जिम्मेदारी उन नर्सों की देखभाल करना भी है जो उनके साथ काम करती हैं। इसके लिए, फ्रेशर नर्सों को सहयोग और समर्थन दोनों के लिए अनुभवी लोगों के साथ रखा जाता है।
वह कहती हैं,
“कई नर्सें होस्टल में रहती हैं और अपने गृहनगर की यात्रा करने में कठिनाई होती है, इसलिए हमारा काम उनके माता-पिता से बात करना और उन्हें आश्वस्त करना है कि उनके बच्चे सुरक्षित हैं। हम सुनिश्चित करते हैं कि उनका समय पर भोजन हो और उन्हें पर्याप्त आराम भी मिले।”
उम्मीद से ज्यादा, रश्मि का मानना है कि नर्सों के पास कोई विकल्प नहीं है। "मुझे अपने मरीजों के लिए वहां पर होना है, यह मेरा काम है, और मैं इससे पीठ नहीं मोड़ सकती।"
Edited by Ranjana Tripathi