88.4% महिला MSMEs ने झेले महामारी के प्रतिकूल प्रभाव, केवल 5.8% को मिली सरकारी मददः रिपोर्ट
महिला उद्यमियों के लिए फाइनेंस तक पहुंच को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा कई योजनाएं शुरू की गई हैं. लेकिन इसके बावजूद MSME क्षेत्र में महिलाओं में जागरूकता की कमी है.
देश में महिलाओं द्वारा संचालित लगभग 88.4 प्रतिशत MSME (Micro, Small and Medium Enterprises) ने अपने व्यवसाय पर महामारी (Covid-19) के प्रतिकूल प्रभावों की सूचना दी और उनमें से केवल 5.8 प्रतिशत को ही महामारी के दौरान सरकार से मदद मिली. यह बात इकनॉमिक पॉलिसी थिंक टैंक ICRIER और डेवलपमेंट बैंक नाबार्ड (NABARD) के एक सर्वे से सामने आई है. यह सर्वे MSME सेक्टर में 308 महिलाओं पर किया गया. सर्वे रिपोर्ट का नाम 'Digital Financial Inclusion of Women in MSMEs: G20 and India' है.
रिपोर्ट में भारत में महिलाओं और MSMEs के डिजिटल वित्तीय समावेशन (Digital Financial Inclusion) में उपलब्धियों और गैप्स का अध्ययन किया गया. सर्वेक्षण की 308 महिला उत्तरदाताओं में 8 सेक्टर्स- जैसे फूड प्रोसेसिंग, गारमेंट्स व टेक्सटाइल्स, हैंडीक्राफ्ट्स, इलेक्ट्रॉनिक्स व इंजीनियरिंग, लेदर, रिटेल, IT/ITeS, टूरिज्म एंड हॉस्पिटैलिटी की 86 MSME मालिक और 222 कर्मचारी शामिल थीं. यह सर्वे राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में किया गया.
महिला उद्यमियों के लिए मिले ये सरकारी समर्थन
रिपोर्ट में कहा गया है कि MSME मालिक, महिला उद्यमियों के लिए ऋण प्राप्ति, कम कागजी कार्रवाई, तेजी से मंजूरियां, पुनर्भुगतान के लिए अधिक समय और इंफ्रास्ट्रक्चर अपग्रेडेशन कार्यक्रमों के लिए सरल प्रक्रियाओं के संदर्भ में सरकारी समर्थन चाहते हैं. महिला उद्यमियों के लिए फाइनेंस तक पहुंच को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा कई योजनाएं शुरू की गई हैं. लेकिन इसके बावजूद एमएसएमई क्षेत्र में महिलाओं में जागरूकता की कमी है.
इसके अलावा योजनाओं के बारे में अधिक जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप कार्यक्रमों से लाभान्वित होने वाली महिलाओं की संख्या कम है. वहीं डिजिटल टूल्स के उपयोग और डिजिटल वित्तीय साक्षरता की कमी भी, सूचना विषमता का कारण बन रही है.
सबसे आम समस्या फाइनेंस तक पहुंच
रिपोर्ट के अनुसार, सर्वेक्षण किए गए MSME मालिकों के सामने सबसे आम समस्या फाइनेंस तक पहुंच की रही. 60.5 प्रतिशत एमएसएमई मालिकों को क्रेडिट तक पहुंच मुश्किल लगती है. लगभग 47.7 प्रतिशत मालिकों का सोचना है कि अगर मालिक एक महिला है तो ऋण प्राप्त करना और भी मुश्किल है, जो लिंग पूर्वाग्रह की छिपी धारणा को दर्शाता है.
क्या कदम उठाए जा सकते हैं
सर्वे के निष्कर्षाें में यह भी शामिल रहा कि उपलब्ध वित्तीय पैकेजेस और स्कीम्स को लेकर जागरूकता और सूचना का फैलाव बढ़ाने की जरूरत है. साथ ही मौजूदा स्कीम्स की बेहतर निगरानी और मूल्यांकन भी डिजिटल फाइनेंशियल इन्क्लूजन में मदद करेंगे. एमएसएमई मालिकों को कैश बेस्ड ट्रांजेक्शंस से शिफ्ट करने की जरूरत है और इससे कर्मचारी, अपना वेतन बैंक अकाउंट में पा सकेंगे. डिजिटल वित्तीय साक्षरता की खाई को पाटने में ट्रेनिंग मदद कर सकती है.
Edited by Ritika Singh