दिव्यांग छात्रा ने जीता वार्ड निकाय चुनाव, बड़ी राजनीतिक पार्टियों के प्रत्याशियों को दी पटखनी, अब करेगी क्षेत्र का विकास
गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज में एमए तमिल साहित्य की प्रथम वर्ष की दिव्यांग छात्रा सरन्या ने वार्ड चुनावों में निर्दलीय लड़ते हुए चुनाव जीता है, अब वे अपने क्षेत्र की समस्याओं के लिए काम करना चाहती हैं।
तमिलनाडु की स्थानीय निकाय के चुनावों में दिव्यांग दलित महिला सरन्या कुमारी के ने जीत हासिल की है। 22-वर्षीय सरन्या ने 37 वोटों के अंतर से जीत हासिल की और 2 जनवरी को कोयंबटूर जिले में अनामीलाई संघ के अंतर्गत आने वालीआथू पोलाची पंचायत की वार्ड सदस्य चुनी गई हैं।
सरन्या जब तीन साल की थी तब एक वायरल बुखार ने उसकी नसों को बुरी तरह प्रभावित किया जिससे उसे अपने पैरों ने काम करना बंद कर दिया। पहले वह बिना सहारे के चल नहीं पा रही थी, लेकिन निरंतर अभ्यास के चलते अब वह चलने में उतनी असमर्थ नहीं हैं।
सरन्या ने घर-घर जाकर अपने लिए लोगों का समर्थन हासिल किया। सरन्या ने यह चुनाव स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में लड़ा, जबकि उनके सामने कई राजनीतिक पार्टियों से जुड़े प्रत्याशी थे। सुरन्या ने जिस दिन जीत हासिल की, उस दिन उनका जन्मदिन भी था, सरन्या को 470 में से 137 वोट मिले थे।
अपनी जीत के बाद एक न्यूज़ वेबसाइट से बात करते हुए सरन्या ने कहा,
"मेरे वार्ड के एक क्षेत्र में चालीस घरों में पीने के पानी की आपूर्ति नहीं है। इसके अलावा, सार्वजनिक शौचालयों का रखरखाव अच्छी तरह से नहीं किया गया है, अधिकांश स्ट्रीटलाइट काम नहीं कर रही हैं और सीवेज का पानी हर जगह भरा हुआ है, जिससे मच्छर भी पैदा हो रहे हैं। मैं इन सभी मुद्दों पर काम करूंगी।"
सरन्या पिछले तीन वर्षों से सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग ले रही हैं। वह नियमित रूप से कलेक्टर की बैठकों में अपने क्षेत्र की शिकायतों को रखती हैं। सरकारी स्कूल के छात्रों को मुफ्त में पढ़ाती हैं और अपने क्षेत्र के सदस्यों को मतदान के बारे में बताती है। रोटरैक्ट क्लब के स्वयंसेवकों के साथ मिलकर उन्होने एक बस स्टॉप को पुनर्निर्मित करने में मदद की, जिसका उपयोग नशे के लिए किया जा रहा था।
एक समाचार वेबसाइट के अनुसार, उनकी जीत, उनके समुदाय के लिए न केवल एक जीत थी, बल्कि एक व्यक्तिगत जीत भी थी। उनके चुनाव लड़ने से उनके माता-पिता फिर से एक हो गए, जो चार साल पहले अलग हो गए थे। सरन्या के माता-पिता, कितन और सरस्वती, दोनों ही दिहाड़ी मजदूर हैं।
उदुमलपेट के गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज में एमए तमिल साहित्य की प्रथम वर्ष की छात्रा सरन्या एक तमिल शिक्षक बनने की इच्छा रखती हैं और मानती हैं कि शिक्षा भी राजनीति जितनी ही महत्वपूर्ण है।