Petrol-Diesel के दाम जस के तस, जानिए Crude Oil सस्ता होने से किसे हो रहा फायदा!
रूस से भारत को सस्ता कच्चा तेल मिल रहा है. सवाल ये है कि फायदा किसे हो रहा है. डीजल-पेट्रोल के दाम को गिर नहीं रहे हैं. आंकड़ों से समझिए क्या चल रहा है.
हाल ही में कच्चे तेल (Crude Oil) को लेकर ग्लोबल लेवल पर एक बड़ा फैसला हुआ है. पश्चिमी देशों ने फैसला किया है कि रूस के कच्चे तेल की कीमतों (Crude Oil Price) पर कैप लगा दी जाए. इसके तहत जी-7 देशों ने रूस के कच्चे तेल पर 60 डॉलर प्रति बैरल की कैप लगा दी है. यहां सवाल ये है कि इस फैसले का भारत पर क्या असर होगा? क्या इससे भारत को कच्चा तेल सस्ते दाम में मिलेगा? क्या इससे डीजल-पेट्रोल के दाम (Petrol-Diesel Price) सस्ते हो जाएंगे? सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि क्या इससे जनता को कोई फायदा होने वाला है या नहीं?
पहले समझिए इस फैसले के मायने
नए फैसले के तहत पश्चिमी देश रूस के कच्चे तेल को 60 डॉलर प्रति बैरल से अधिक की कीमत पर नहीं खरीद सकते हैं. पश्चिमी देशों की तरफ से रूस पर इस तरह के प्रतिबंध आज से नहीं, बल्कि 24 फरवरी को रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के बाद से ही लगाए जा रहे हैं. यह फैसला रूस की तेल से होने वाली कमाई को कम करने के लिए किया गया है, ताकि वह उसे युद्ध के लिए ज्यादा इस्तेमाल ना कर सके. बता दें कि रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कच्चे तेल का निर्यात करने वाला देश है. ऐसे में ये कैप लगाए जाने से उसके रेवेन्यू पर तो असर पड़ना तय है. हालांकि, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने साफ कह दिया है कि जो भी देश इस कैप के फैसले को लागू करेंगे, उन्हें रूस कच्चा तेल नहीं देगा भले ही इसके लिए कच्चे तेल के प्रोडक्शन को घटाना ही क्यों ना पड़े.
भारत पर क्या होगा इस फैसले का असर?
भारत पर इस फैसले के असर को समझने से पहले ये समझना जरूरी है कि भारत पर पश्चिमी देशों के फैसले लागू होते भी हैं या नहीं. भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने साफ कह दिया है कि भारत और रूस के बीच ट्रेड रिलेशन बहुत पुराने हैं. दोनों देश रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने यानी 24 फरवरी से काफी पहले से ही व्यापार कर रहे हैं. यानी एक बात तो साफ है कि पश्चिमी देशों के इस फैसले को भारत नहीं मानता है. ऐसे में भारत में कच्चे तेल की कीमतों पर कोई असर नहीं होगा. भारत अभी जिस कीमत पर रूस से कच्चा तेल ले रहा है, उसी कीमत पर आगे भी खरीदारी जारी रहेगी.
सस्ते कच्चे तेल से किसे फायदा?
जब रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू हुआ, उसके बाद से ही यूरोपीय देश किसी न किसी बहाने से रूस के कच्चे तेल पर प्रतिबंध लगाते आ रहे हैं. उसके बाद रूस ने भारत को डिस्काउंट पर कच्चा तेल बेचना शुरू किया. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत को अभी रूस से हर बैरल कच्चे तेल पर 15-20 डॉलर का डिस्काउंट मिल रहा है. यानी अगर मान लें कि ग्लोबल लेवल पर कच्चा तेल 90 डॉलर प्रति बैरल है तो भारत को रूस से 70-75 डॉलर प्रति बैरल पर कच्चा तेल मिल रहा होगा. ऐसे में सवाल ये उठता है कि सस्ता कच्चा तेल मिलने से फायदा किसे हो रहा है, क्योंकि डीजल-पेट्रोल तो सस्ते हो नहीं रहे?
कच्चा तेल सस्ता होने पर डीजल-पेट्रोल सस्ता नहीं हो रहा है, जिस पर सरकार का एक अलग ही तर्क है. इंडियन ऑयल ने अप्रैल-जून के दौरान हर लीटर डीजल-पेट्रोल पर 14 रुपये का नुकसान उठाए जाने की बात कही थी. उस वक्त कच्चे तेल की कीमत औसतन 109 डॉलर प्रति बैरल थी. कंपनी का कहना था कि पेट्रोल-डीजल की जो कीमतें तय की गई हैं, वह 85-86 डॉलर प्रति बैरल के आधार पर तय की गई हैं. ऐसे में इंडियन ऑयल को बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है. बाद में जब कच्चा तेल सस्ता हुआ तो सरकार ने कहा था कि इससे कंपनी को अपने नुकसान की भरपाई करने में मदद मिल रही है. खैर, इन सब बातों के बीच सवाल ये उठता है कि असली फायदा कौन कमा रहा है?
भारतीय प्राइवेट रिफाइनरी कंपनियां जैसे रिलायंस और नायरा ने रूस के भारी मात्रा में कच्चा तेल खरीदा है. ये कंपनियां रूस से कच्चा तेल खरीदकर उसे रिफाइन करती हैं और फिर अधिकतर तेल दूसरे देशों को निर्यात कर देती हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बहुत सारा तेल यूरोपियन देशों को भी बेचा जाता है. यानी एक बात तो तय है कि रूस से कच्चा तेल खरीदने का सबसे बड़ा फायदा निजी कंपनियों को हो रहा है. वहीं सरकार की तरफ से कच्चे तेल पर विंडफॉल टैक्स लगाकर उससे कमाई की जा रही है. इन सबके बीच आम आदमी को कोई राहत नहीं मिल रही है. हालांकि, ये भी किसी राहत से कम नहीं है कि लंबे वक्त से भारत में डीजल-पेट्रोल की कीमतें नहीं बढ़ी हैं. आखिरी बार 22 मई को भारत सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क में कटौती कर के कीमतें घटाई थीं, तब से अब तक कीमतों में कोई बदलाव नहीं हुआ है.
यूरोप पर इस फैसले का क्या होगा असर?
जी-7 देशों के तहत कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूके, यूरोपियन यूनियन और यूनाइटेड स्टेट्स आते हैं. यानी ये देश अब रूस से 60 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा भाव में कच्चा तेल नहीं खरीदेंगे. अगर व्लादिमिर पुतिन की बात के हिसाब से देखें तो इस कीमत पर वह यूरोपीय देशों के कच्चा तेल देंगे ही नहीं. मतलब यूरोप अपनी तेल की जरूरतें मिडिल ईस्ट से पूरी करेगा. हालांकि, वहां 60 डॉलर प्रति बैरल वाला नियम लागू नहीं होगा. यानी इस फैसले से अप्रत्यक्ष रूप से रूस का नुकसान होगा, लेकिन यूरोप पर इसका कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा. वह कच्चे तेल की जरूरत को मिडिल ईस्ट से पूरा करेगा और वही दाम देगा जो अब तक देता आ रहा है या फिर जो ओपेक देश तय करेंगे.
अभी यूरोप खरीदता है रूसी कच्चा तेल?
जी हां, एस जयशंकर ने साफ कहा है कि वह यूक्रेन-रूस संकट को अच्छे से समझते हैं, लेकिन यूरोप खुद भी रूस से जमकर कच्चा तेल खरीदता है. 24 फरवरी से लेकर 17 नवंबर के बीच यूरोपियन यूनियन ने रूस से बहुत सारा कच्चा तेल खरीदा है. उसने इतना कच्चा तेल रूस से खरीदा है, जितना उसके खरीदारों की लिस्ट में शामिल अगले 10 देशों ने खरीदा है. अगर भारत से तुलना करें तो यूरोप ने करीब 6 गुना अधिक कच्चा तेल खरीदा है. यूरोपियन यूनियन तो रूस से कच्चा तेल और कोयला भी खूब खरीदता है.