कैसे इस डॉग बिहैवियरिस्ट ने हजारों कुत्तों और इंसानों की जिंदगी बदल दी
डॉग बिहैवियरिस्ट और ट्रेनर शिरीन मर्चेंट का परिवार तब तक पूरा नहीं होता, जब तक उसमें माया, डचेज, तारा, शांति और मैक्स शामिल न हों। माया एक लैब्राडोर है, जो शिरीन के पास तब आई थी, जब वह आठ साल की थी। शांति और मैक्स, बेल्जियन मलिनोइस हैं। वहीं डचेज और तारा, डच शेपहर्ड्स हैं।
भारत और विदेशों में हजारों डॉग को ट्रेन कर चुकीं शिरीन कहती हैं,
'मेरे डॉग ही मेरे सबसे अच्छे टीचर रहे हैं।'
भारत में अभी कुत्तों को डरा-धमका कर ट्रेन करने की पुरानी परंपरा चली आ रही है। ऐसे में लोगों के नजरिए और ट्रेनिंग के तरीकों में बदलाव लाने का शिरीन का काम इतना आसान नहीं था। इसके अलावा भारत में पालतु जानवरों को पालने वाले ज्यादातर लोगों को इन जानवरों को घर ले जाते उससे जुड़ी जिम्मेदारी के बारे में पता नहीं होता है। ऐसे में शिरीन का लक्ष्य उन्हें शिक्षित करना और पालतु जानवरों को लेकर उनके नजरिए में बदलाव लाना था।
योरस्टोरी के साथ एक बातचीत में शिरीन मर्चेंट ने अपने करियर, कुत्तों को लेकर प्यार की बात की । साथ ही उन्होंने बताया कि वह कैसे डॉग ट्रेनिंग को लेकर लोगों के नजरिए में बदलाव ला रही हैं।
बचपन का प्यार
शिरीन ने डॉग बिहैवियर और ट्रेनिंग के क्षेत्र में अपने करियर की शुरुआत 1995 में की थी। कुत्तों को लेकर उनके प्यार से शिरीन का परिवार और उनके दोस्त भली-भांति परिचित हैं। शिरीन जब छोटी थी, तब उनकी दादी कुत्तों के बच्चों को घर में लाने में उनकी मदद करती थी।
शिरीन पुणे में पैदा हुई थीं और उनके ज्यादातर शुरुआती साल मुंबई और पुणे के बीच यात्रा में बीते थे। ग्रेजुएशन के बाद शिरीन ने अपने पिता के बिजनेस को ज्वाइन करने का फैसला किया।
उन्होंने बताया,
'मेरा मन इसमें नहीं लग रहा था। मैं हमेशा से जानवरों से जुड़ा कुछ काम करना चाहती थी, लेकिन उस समय भारत में ऐसा कुछ था नहीं, इसलिए मैंने अपने पिता के बिजनेस से जुड़ने का फैसला लिया था।'
शिरीन की जिंदगी में दिलचस्प मोड़ तब आया जब उन्होंने 1995 में इंग्लैंड के मशहूर डॉग बिहैवियरिस्ट और ट्रेनर जॉन रोगर्सन के वर्कशॉप को अटेंड किया। रोगर्सन से मुलाकात ने उनकी जिंदगी बदल दी। उन्होंने शिरीन को इंग्लैड पढ़ने के लिए आमंत्रित किया और उसके बाद से शिरीन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
शिरीन एक मान्यता प्राप्त कैनाइन यानी डॉग बिहैवियरिस्ट हैं और वह कैनाइन साइकोलॉजी के विज्ञान का इस्तेमाल कर कुत्तों की समस्या का हल करने वाली पहली इंसान है। वह चार सालों तक इंग्लैंड में रहीं, जहां उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ वर्किंग ट्रायल में प्रतिस्पर्धा और वहां के बेस्ट ट्रेनरों से सीखने का काम किया। जब वह भारत वापस आई तो उन्हें पाया कि यहां डॉग ट्रेनिंग का तरीका काफी अपरिपक्व और पुराना है। यहां एक आक्रामक कुत्ते का पागल मान लिया जाता है और उसे दवा देकर सुला दिया जाता है।
उन्होंने बताया,
'डॉग बिहैवियर के बारे में यहां किसी ने नहीं सुना था और डॉग ट्रेनिंग के लिए यहां पुराना और दर्द भरा तरीका अपनाया जाता था। ऐसे में मैंने इसे बदलने का फैसला लिया।'
कैनाइन्स कैन केयर
शिरीन ने 1998 में 'कैनाइन कैन केयर' नाम से एक संस्था शुरु की। यह कुत्तों से जुड़ी विभिन्न तरह की समस्याओं को समर्पित देश की पहली संस्था थी। इसने शारिरिक रूप से अक्षम लोगों की सहायता के लिए डॉग को ट्रेनिंग देने का काम शुरु किया। सनम करुणाकर के शरीर के नीचे के हिस्से को लकवा मार गया था। संस्था ने उन्हें अस्टिटेंट के रूप में मैजिक नाम के एक लैब्राडोर को दिया और दोनों बाद में काफी लोकप्रिय हुए।
शिरीन ने बताया,
'इन कुत्तो को अपनी पहुंच से दूर की चीजों को खोजने और उन्हें वापस लाने, लाइट को ऑन और ऑफ करने, व्हीलचेयर्स खींचने, इमरजेंसी की स्थिति में मदद खोजने और इस तरह की दूसरी चीजों के लिए ट्रेन किया जाता है।'
उन्होंने बताया,
'2001 में गुजरात के भुज में आए भूकंप के बाद चले तलाशी अभियान में शामिल सर्च डॉग टीम में भारत से सिर्फ 'कैनाइन कैन केयर' की डॉग टीम ही शामिल थी।'
शिरीन पुरी दुनिया में डॉग ट्रेनिंग को लेकर विभिन्न टॉक शो और वर्कशॉप में भाग लेती है। साथ ही वह भारत में डॉग प्रेमियों के लिए बिहैवियर कोर्सेज को कराती हैं।
कैनाइन कैन केयर ने 2007 में 'कैनाइन्स फॉर कॉरपोरेट' भी शुरु किया था। यह एक ऑफ-साइट ट्रेनिंग कैंप था, जिसमें भाग लेने वाले कुत्तों के साथ समय बिताने से उनके बारे में सीखते हैं और कई तरह के लाइफ स्किल्स को विकसित करते हैं।
प्रमुख उपलब्धियां
शिरीन देश में और दुनिया भर में पालतू जानवार को पालने वाले लोगों और स्टूडेंट्स को डॉग ट्रेनिंग के बारे में बताने के लिए वर्कशॉप्स का आयोजन करती हैं। वह ऐसे मामलों में भी परामर्श देती हैं, जहां पालतू जानवर को पालने वाले लोगों को डॉग बिहैवियरिस्ट की जरूरत होती है।
शिरीन ने बताया,
'क्लाइंट कई बार मेरे पास आखिरी उम्मीद के तौर पर आते हैं क्योंकि उनके कुत्ते पर किसी चीज का असर नहीं हो रहा होता है। मैं इन समस्याओं की जड़ में जाती हूं और देखती हूं कि किस तरह के बिहैवियरियल पैटर्न से ऐसा हुआ है।'
डॉग को प्यार से ट्रेनिंग देने का तरीका उनके लिए बड़ी जीत है। उन्होंने बताया,
'जब आप कुत्तों के लिए कुछ करते हों और बदले में शुक्रिया अदा करने के लिए उनकी आंखों में जो भाव आता है, वहीं मेरे लिए सबसे बड़ी जीत है।'
शिरीन ने 2002 में 'Woof! The Mag with a Wag!' भारत की पहली डॉग मैग्जिन भी शुरु की थी और इसे2012 तक चलाया था। 2013 में उन्होंने डॉग ट्रेनर्स और बिहैवियरिस्ट का KCAI-केनल क्लब ऑफ इंग्लैंड एक्रीडेशन स्कीम को पास किया। 2015 में शिरीन को डॉग ट्रेनर्स और बिहैवियरिस्ट के KCAI-केनल क्लब ऑफ इंग्लैंड एक्रीडेशन स्कीम की ओर से ट्रेनर फॉर द ईयर का प्रतिष्ठित इंटरनेशनल कमेंडेशन अवार्ड से भी सम्मानित किया गया था। उन्हें इंग्लैंड के बिरमिंघम में क्रूफ्ट नाम से होने वाले दुनिया के सबसे बड़े डॉग शो में इस अवार्ड से सम्मानित किया गया था। यह अवार्ड आमतौर पर ब्रिटिश नागरिक को दिया जाता है, लेकिन शिरिन के एप्लिकेशन और उनकी उपलब्धियों को देखते हुए उस साल यह अवार्ड् उन्हें दिया गया था।
पिछले साल भारत सरकार की ओर से राष्ट्रपति भवन में हुए आयोजित किए गए फर्स्ट लेडीज अवार्ड में उन्हें राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद और महिला व बाल विकास मंत्री मेनका गांधी के हाथों सम्मानित किया गया था। लेकिन शिरीन इन्हीं पुरस्कारों के साथ रुकने वालो में से नहीं है।
उन्होंने बताया,
'मेरा करियर काफी शानदार रहा है और उसमें कई उपलब्धियां हैं। कुछ तो में वाकई खास हैं। खासकर तौर से जहां मैंने पहले भारतीय के तौर पर अवार्ड जीता है या सम्मानित हुई हूं या फिर किसी प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय इवेंट में बोलने के लिए आमंत्रित किया गया हो। मेरे लिए लोगों की सहायता, तलाशी अभियान या राहत कार्यों के लिए डॉग को ट्रेनिंग काफी खास था, जिसने कईयों की जिंदगी में बदलाव लाया।'
चुनौतियां अभी भी हैं
शिरीन ने बताया कि पिछले दो दशकों में पालतू जानवार पालने वाले लोगों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने कहा,
'पहले से कहीं ज्यादा संख्या में लोग आज कुत्तों का पाल रहे हैं और वे डॉग ट्रेनिंग और बिहैवियर को लेकर भी पिछले 20 साल से कहीं ज्यादा जागरुक हैं।'
शिरीन ने कहा,
'देश में शिक्षा की काफी कमी है। कुत्तों को घर लाने वाले लोगों को यह नहीं पता होता है कि इससे जुड़े क्या-क्या जिम्मेदारियां है। वहीं इतने साल बीत जाने के बाद भी हमारे पास आज भी ऐसे डॉग ट्रेनर्स हैं, जो ट्रेनिंग के नाम पर कुत्तों को सिर्फ प्रताड़ित करते हैं।'
बेहतरीन साथी
जो लोग भी कुत्ते पालते हैं, वह जानते हैं कि वे इंसानों से बेहतर साथी होते हैं। एक डॉग ट्रेनर और बिहैवियरिस्ट के तौर पर शिरीन भी अपने कुत्तों में दोस्त और साथी को पाती हैं। कई बार उनका काम भावनात्मक तौर पर काफी मुश्किल होता है, खासतौर से तब, जब उन्हें कुत्तों से बेइंतहा प्यार मिलता है।
उन्होंने बताया,
'वे मेरे सबसे बेहतरीन साथी हैं। जब भी मुझे कुछ सोचने, ब्रेक लेने या आगे बढ़ने की हिम्मत चाहिए होती है, तो मैं उनके पास चली जाती हूं। अपने कुत्तों के साथ अच्छा पल बिताना सबसे बेहतरीन एहसास होता है।'