मार्च तक रॉनी स्क्रूवाला के Dream Villages में जुड़ेंगे 100 और गांव, 100 करोड़ की फंडिंग जुटाने का लक्ष्य
स्वदेश फाउंडेशन ने बीते 15 अगस्त को देश की 75 सालगिरह पूरा होने के अवसर पर 75 गांवों को ड्रीम विलेज घोषित किया था. ये सभी 75 गांव स्वदेश फाउंडेशन द्वारा तय किए गए 40 पैरामीटर्स में से कम से कम 70 फीसदी पैमानों पर खरे उतरे थे.
महाराष्ट्र के दो जिलों के 750 गांवों को ड्रीम विलेज बनाने का लक्ष्य लेकर चलने वाले कारोबारी रॉनी स्क्रूवाला और उनकी पत्नी जरीना स्क्रूवाला के स्वदेश फाउंडेशन ने मार्च, 2023 तक 175 गांवों को ड्रीम विलेज बनाने और इसके लिए उन्होंने 100 करोड़ रुपये की फंडिंग जुटाने का लक्ष्य रखा है.
बता दें कि, स्वदेश फाउंडेशन ने बीते 15 अगस्त को देश की आजादी के 75 साल पूरे होने के अवसर पर 75 गांवों को ड्रीम विलेज घोषित किया था. ये सभी 75 गांव स्वदेश फाउंडेशन द्वारा तय किए गए 40 पैरामीटर्स में से कम से कम 70 फीसदी पैमानों पर खरे उतरे थे.
तब YourStory से बात करते हुए रॉनी स्क्रूवाला ने कहा था कि स्वदेस फाउंडेशन की 20 साल की जर्नी में हमारे पास देने के लिए बहुत कुछ नहीं था, लेकिन फिर भी हमने लगातार सोसायटी को कुछ देने की कोशिश जारी रखी.
क्या है ड्रीम विलेज?
ड्रीम विलेज स्वदेश फाउंडेशन द्वारा शुरू किया गया एक प्रोजेक्ट है. इसका गांवों में स्थायी तौर पर मूलभूत बदलाव लाने का उद्देश्य है. यह बदलाव गांववालों की मर्जी और उनकी आवश्यकता के अनुसार ही लाने का उद्देश्य है. ड्रीम विलेज के तहत हम गांवों में मुख्य तौर पर 5 बदलाव लाने के लिए काम कर रहे हैं. इसमें पीने का पानी, शौचालय, शिक्षा, स्वास्थ्य और आजीविका शामिल हैं.
स्वदेश फाउंडेशन के सीईओ मंगेश वांगे ने YourStory से बात करते हुए कहा कि हमने ड्रीम विलेज के लिए 40 पैरामीटर बनाए हैं. इसके पांच मुख्य बिंदु स्वच्छता, स्वास्थ्य, सुंदर, साक्षर और समृद्ध हैं. 40 पैरामीटर में से 70 फीसदी पैरामीटर का टारगेट अचीव करने वाले गांवों को हम ड्रीम विलेज घोषित करते हैं. यह काम ग्राम विकास समिति करती है, जिसमें 50 फीसदी महिलाएं होती हैं.
750 ड्रीम विलेज का लक्ष्य
वांगे ने कहा कि इस स्वतंत्रता दिवस तक हमने 75 ड्रीम विलेज को सेलिब्रेट किया है और अभी करीब 250 गांवों में काम अलग-अलग लेवल पर चल रहा है. मार्च, 2023 तक इसमें से 100 से अधिक गांव ड्रीम विलेज में जोड़े जा सकते हैं. हमारा कुल लक्ष्य 750 गांव जोड़ने का है.
उन्होंने आगे कहा कि गांववालों से जुड़ने के लिए स्वदेश की 4E– Empowe (इम्पावर), Engage (इंगेज), Execute (एग्जीक्यूट) और Exit (एक्जिट) की नीति है. हम देखते हैं कि गांव वाले इच्छुक तो हैं या नहीं. वे हमसे जुड़ना चाहते हैं या नहीं. वे हमारे रिसोर्स को एग्जीक्यूट कर पाते हैं या नहीं. वहीं, एग्जिट का मतलब सस्टेनेबिलिटी से है जिसमें हमारा मानना है कि 5-6 साल बाद एक गांव में हमारी जरूरत न रह जाए.
10 लाख की आबादी तक पहुंच
वांगे ने कहा कि हम देश के अलग-अलग हिस्सों के बजाय एक क्षेत्र में काम करते हैं. अभी हम महाराष्ट्र के दक्षिणी रायगढ़ में काम कर रहे हैं जहां कि आबादी 5 लाख की है. वहां 2500 गांव हैं लेकिन हम 1200 गांवों में काम कर रहे हैं. हम 2500 गांवों तक पहुंचे थे लेकिन 1200 में काम कर रहे हैं. वहीं, नासिक के चार आदिवासी बहुत इलाकों में हमने काम शुरू किया है. वहां भी 5 लाख की आबादी है. इस तरह हम अभी 10 लाख की आबादी के साथ काम कर रहे हैं.
यह मॉडल ग्रामीण समुदायों को नल के माध्यम से घर में स्वच्छ पेयजल तक पहुंचने में सक्षम बनाता है. इसने 42,000 से अधिक ग्रामीण परिवारों (दो लाख से अधिक लोगों) को पीने के पानी के लिए 1-4 किमी चलने के झंझट से मुक्ति दे दी है.
पीने के पानी की स्वच्छता के साथ-साथ स्वदेस यह सुनिश्चित करता है कि ग्रामीण समुदाय घरेलू शौचालय बनाकर खुले में शौच से मुक्त हों. अब तक, फाउंडेशन ने 26,477 शौचालय बनाने में मदद की है और 1,13,000 से अधिक ग्रामीण जीवन को प्रभावित किया है.
100 करोड़ की फंडिंग हासिल करने का लक्ष्य
उन्होंने आगे कहा कि स्वदेश फाउंडेशन के ऑफिस का खर्च खुद रॉनी स्क्रूवाला के पास से आता है. हालांकि, गांवों में काम के लिए हम सीएसआर फंड जुटाते हैं. हम इसके लिए अलग-अलग कंपनियों से संपर्क करते हैं. बहुत से डोनर व्यक्तिगत तौर पर भी हमें डोनेट करते हैं.
पिछले साल हमने 85 करोड़ का आउटले लिया था. कोविड-19 के दौरान 15-20 करोड़ नासिक और मुंबई में खर्च किया था. इस साल हमने 80-100 करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा है. इसमें से 70-80 फीसदी हमें फंडिंग जुटानी पड़ती है.
डिजिटल स्वदेश की शुरुआत की
हमने डिजिटल स्वदेश योजना शुरू की है. कोविड-19 के दौरान हमने करीब 400 गांवों के साथ इसकी शुरुआत की थी. इसमें पशु चिकित्सक से लेकर सरकारी अधिकारी तक आकर अपनी बात रखते हैं और सवालों के जवाब देते हैं. हमारा एक प्रोग्राम प्लास्टिक फ्रीम गांव बनाने का है.