भारत के पांच प्रदेशों में ऊंची उड़ान भर रहे ड्रोन स्टार्टअप ने पूरी दुनिया को चौंकाया!
"हमारे देश में ड्रोन निर्माता स्टार्टअप्स विकास की नई कहानी लिख रहे हैं। छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड के आठ युवा इंजीनियर नौकरी में दिन गुजारने की बजाए एयरोनॉटिकल इंडस्ट्री में उड़ान भर रहे हैं। उनके ड्रोन विदेशों तक सप्लाई हो रहे, जिससे टेक्निकल कॉर्पोरेट्स का एक नया पूल खड़ा हो रहा है।"
इनोवेशन की दृष्टि से हमारा देश विश्व का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप हब बन चुका है। अब तो विदेशी आर्थिक शक्तियां भी यहां के स्टार्टअप में निवेश के लिए ललचा रही हैं। इसमें तमाम तरह के नए-नए उद्योग-धंधे परवान चढ़ रहे हैं, जिनमें हाल के वक़्त में ड्रोन निर्माण का स्टार्टअप विकास की नई कहानी लिख रहा है। रायपुर (छत्तीसगढ़) के पीयूष झा, हल्द्वानी (उत्तराखंड) के अविनाश चंद्र पाल और मानस उपाध्याय, भोपाल (म.प्र.) के विभू त्रिपाठी, नागपुर (महाराष्ट्र) के अंशुल वर्मा, अरुणाभ भट्टाचार्य तथा ऋषभ गुप्ता, लखनऊ (उ.प्र.) के विक्रम सिंह मीणा आदि युवा प्रतिभाओं ने एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग के बाद ड्रोन उद्योग की दिशा में जो शानदार पहल की है, वे पूरी नई पीढ़ी के लिए मिसाल बन चुके हैं।
ग्लोबल स्टार्टअप इकोसिस्टम मैप ‘स्टार्टअपब्लिंक’ ने विश्व के 125 देशों में स्टार्टअप इकोसिस्टम की रैंकिंग में भारत को 37वें पायदान पर रखा है। मेक इंडिया स्टार्टअप सिस्टम से ही फाइनेंशियल सर्विसेज, ट्रैवल एंड हॉस्पिटेलिटी, ई-कॉमर्स आदि सेक्टर में भी कॉर्पोरेट्स का तकनीक शुदा एक बड़ा पूल खड़ा हो रहा है।
रायपुर (छत्तीसगढ़) की यूनिवर्सिटी से पास-आउट इंजीनियर जिस पीयूष झा को ड्रोन स्टार्टअप के लिए वहां के बैंक लोन देने से कतरा रहे थे, आज 45 हजार रुपए से शुरू उनका ड्रोन स्टार्टअप की कुल पूंजी दो साल के भीतर ही 3.50 करोड़ तक पहुंच चुकी है। उनके बनाए ड्रोन की कई प्रदेशों में में मांग है। इनक्यूबेटर एसीआइ 36 इंक के मैनेजर सौरभ चौबे के मुताबिक पीयूष और उनकी दर्जन भर युवाओं की टीम के बनाए अब तक ढाई सौ ड्रोन छत्तीसगढ़ के अलावा तीन और राज्यों बिहार, झारखंड, ओडिशा को सप्लाई हो चुके हैं। उनका स्टार्टअप बीएसएफ और सीआरपीएफ की मदद से ड्रोन बनाने के जरूरी पार्ट्स विदेशों से आयात कर रहा है। पियूष छत्तीसगढ़ को ड्रोन का हब बनाना चाहते हैं। वह राज्य के सभी जिलों के पांच-पांच छात्रों को ड्रोन बनाने की ट्रेनिंग भी दे रहे हैं। बीस-पचीस किलो तक के भारवाही उनके ड्रोन छिड़काव आदि में खेती के भी काम आ रहे हैं।
हल्द्वानी (उत्तराखंड) के अविनाश और मानस ने 80 मिमी का ऐसा ड्रोन तैयार किया है, जो कि चुपचाप इमारत के भीतर घुसकर वहां की पूरी जानकारी दे देता है। सात माह में ही उनके 'डी टाउन रोबोटिक्स' का भी टर्नओवर लाखों में पहुंच चुका है। देहरादून के ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय से बीटेक इन दोनो युवाओं के बनाए साइलेंट मोड वाले ड्रोन कीमत में चीन से तीस प्रतिशत सस्ते और आतंकियों की लोकेशन आसानी से ट्रेस करने में निपुण हैं। ये ड्रोन 250 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से एक किलोमीटर दायरे की बिल्डिंग सर्विलांस कर लेते हैं। ये ड्रोन तकनीक विकसित करने में उन्हे बीएसएफ के सेकेंड कमांडिंग ऑफिसर मनोज पैन्यूली ने काफी मदद मिली है। इस समय वे सरकार के अलग-अलग विभागों की जरूरतों के हिसाब से ड्रोन तैयार कर रहे हैं।
आईआईटी कानपुर से पढ़े विक्रम सिंह मीणा ने भी अपने सात दोस्तों के साथ 'टेक ईगल' नाम से ड्रोन बनाने का स्टार्टअप शुरू किया है। दस किलोमीटर तक डिलीवरी करने वाले उनके ड्रोन लखनऊ शहर के किसी भी कोने तक पहुंचने में सिर्फ 20 मिनट समय लेते हैं। घरों तक खान-पान के सामानों की डिलीवरी के दौरान ये पांच घंटे तक लगातार उड़ान भर सकते हैं।
केंद्र सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल प्रमोशन ऐंड पॉलिसी से मान्यता प्राप्त 'टेक ईगल' के ड्रोन लोगों के घरों तक छतों और खिड़कियों के माध्यम से चाय, खाना, दवा, सब्जी आदि उपभोक्ता सामान पहुंचाने में सक्षम हैं। भोपाल (म.प्र.) विभू त्रिपाठी तो राज्य के ऐसे पहले युवा हैं, जिनके ड्रोन स्टार्टअप को हांगकांग बेस्ड एक्सेलेटर प्रोग्राम के तहत एक लाख 20 हजार डॉलर की फंडिंग भी हो चुकी है। ऑटोनोमस ड्रोन एप्लीकेशन पर काम कर रहे आरजीपीवी में मेकैनिकल इंजीनियरिंग के छात्र विभू इंटेलिजेंट ड्रोन बना रहे हैं। वह टोकियो में अपने हुनर का प्रदर्शन भी कर चुके हैं। उनके बनाए ड्रोन आपदा के समय क्रिटिकल कंडिशन में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति कर सकते हैं।
इसी तरह नागपुर (महाराष्ट्र) में 'एयर इंडिया प्राइवेट लिमिटेड' नाम से अपना स्टार्टअप लांच करने वाले तीन युवा अंशुल वर्मा, अरुणाभ भट्टाचार्य और ऋषभ गुप्ता ब्लड, दवाएं और वैक्सीन पहुंचाने वाले नौ किलो वजन के ड्रोन बना रहे हैं। अब तक उनके ड्रोन की कर्नाटक, प. बंगाल और नेपाल में उन्नीस डिलिवरी भी हो चुकी हैं। उनके ड्रोन एक बार बैट्री फुल चार्ज हो जाने के बाद बारिश में भी 105 किमी तक उड़ान भर सकते हैं। ये ड्रोन 'मैग्नम' डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन के सभी सुरक्षा मानकों का पालन करता है।
काफी नीचे उड़ान भरने की अपनी खूबी के कारण ये ड्रोन सामान्य एयर ट्रैफिक में कोई बाधा उत्पन्न नहीं करते हैं। ये तीन युवाओं की टीम ड्रोन, डेटा साइंस और बादलों पर आधारित इन्वेन्टरी मैनेजमेंट सिस्टम का इस्तेमाल कर लॉजिस्टिक समस्या को सुलझाना चाहती है। गौरतलब है कि अमेरिका, स्विट्जरलैंड, न्यूजीलैंड, चीन, जापान, रवांडा, आइसलैंड, कोस्टा रिका आदि देश ब्लड डोनेशन एवं परिवहन में ड्रोन का इस्तेमाल कर रहे हैं।