'नई दिशा' के माध्यम से स्पेशल चिल्ड्रन की देखभाल करने वाले 3500 लोगों की इस तरह मदद कर रही हैं प्राची देव
विशेष जरूरत वाले बच्चों की देखभाल करने वालों को अब समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि हैदराबाद में प्राची देव द्वारा स्थापित 'नई दिशा' इस तरह की समस्याओं के समाधान की ओर एक बड़ा कदम बढ़ा चुका है। यह मंच बौद्धिक और विकासात्मक तौर पर दिव्यांग बच्चों के परिवारों को आवश्यक जानकारी प्रदान करने के साथ-साथ उन्हें नये परिवारों से भी जोड़ता है।
एक पुरानी कहावत है: "चेहरा सूरज की ओर रखो ताकि परछाई आपके पीछे रह जाए।" विशेष जरूरतों (Special Children) वाले बच्चों की देखभाल करने वालों की कहानियाँ इस बात की मिसाल देती हैं, बिना शर्त प्यार, विश्वास और विश्वास को प्रदर्शित करती हैं। उनके लिए हर दिन एक नई चुनौती लेकर आता है, लेकिन वे अपने बच्चों को उनकी विकलांगता से परे देखते हैं - वे उन्हें अपने बच्चों की तरह देखते हैं।
हालांकि वे खुद को पूरी तरह से अपने बच्चों के लिए समर्पित तो कर देते हैं, लेकिन उनके पास जानकारी, रिसर्च या समर्थन जैसे बहुत से पहलू उपलब्ध नहीं होते हैं, लेकिन अब इन विशेष जरूरत वाले बच्चों की देखभाल करने वालों को इस तरह की समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा। 2015 में हैदराबाद में प्राची देव द्वारा स्थापित 'नई दिशा' इस समस्या के समाधान की ओर एक बड़ा कदम बढ़ा चुका है। यह मंच बौद्धिक और विकासात्मक विकलांग (intellectual and developmental disabilities) बच्चों के परिवारों को आवश्यक जानकारी प्रदान करता है, उन्हें सर्विसेस खोजने में मदद करता है, और उन्हें अन्य परिवारों से भी जोड़ता है। ये ऑनलाइन और ऑफलाइन बातचीत के माध्यम से देखभाल करने वालों को उनके प्रियजनों के जीवन के विभिन्न चरणों की जानकारी के साथ मदद करता है। हरस्टोरी के साथ बातचीत करते हुए प्राची कहती हैं, "अधिकांश देखभाल करने वालों के पास समर्थन नहीं है और जानकारी भी आसानी से उपलब्ध नहीं है। यही नई दिशा की उत्पत्ति का कारण है।“
वह आगे कहती हैं, “हालांकि ऐसे संगठन हैं जो स्पेशल चिल्ड्रन के साथ काम करते हैं, उन्हें स्कूली शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करते हैं लेकिन माता-पिता और देखभाल करने वालों के लिए सपोर्ट बहुत कम उपलब्ध है। एक बच्चे की यात्रा उसके माता-पिता के साथ शुरू होती है लेकिन उन्हें ही समर्थन नहीं मिल रहा है। इसलिए मैंने सोचा कि क्यों न परिवारों के साथ काम किया जाए?” नई दिशा शुरू करने से पहले, प्राची ने Microsoft और TCS के साथ एक टेक्नोलॉजी प्रेफेशनल के रूप में काम किया।
प्राची इस बात से अच्छी तरह से वाकिफ हैं कि जानकारी और बिना समर्थन के परिवारों को किस समस्या का सामना करना पड़ता है। वह कहती हैं कि उनके एक बड़े भाई को डाउन सिंड्रोम है, और जब वह बड़ी हो रही थीं, तब उन्हें इस बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी।
सही समय पर सही जानकारी
2004 के विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 31 मिलियन लोग बौद्धिक और विकासात्मक विकलांग हैं। इस आंकड़े ने नई दिशा को अपने परिचालन शुरू करने से पहले पूरे परिदृश्य को अच्छी तरह से अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया। वह कहती हैं, “अध्ययन के साथ, हमें पता चला कि बहुत कम माता-पिता को शुरुआत में अपने बच्चे की स्थिति के बारे में पता होता है। लोगों का नैरेटिव ये होता कि उन्हें जब तक डॉक्टर न बताए तब तक डाउन सिंड्रोम या ऑटिज्म के बारे में पता ही नहीं होता है। इसके अलावा, सही समय पर सही जानकारी प्राप्त करना बहुत महत्वपूर्ण है।"
प्राची बताती हैं कि माता-पिता के लिए बच्चे की डाइग्नोसिस के बाद का पहला साल हमेशा एक परेशानी भरा होता है। वे कई डॉक्टर्स के चक्कर काटते हैं और तमाम कोशिशें करते हैं लेकिन उन्हें नहीं पता कि उन्हें किससे संपर्क करना है। लेकिन, प्राची मानती हैं कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि केवल परिवार ही होता है जो मजबूती से बच्चे के समर्थन में खड़ा रहता है। बच्चों को हर संभव मदद की जरूरत होती है जो उन्हें मिल सके।
आपके साथ - ऑनलाइन और ऑफलाइन
नई दिशा का उद्देश्य स्पेशल चिल्ड्रन के परिवारों को ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह की जानकारी, मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करना है। ये मदद तीन अलग-अलग तरीकों से की जाती है। सबसे पहले उन्हें केवल वेबसाइट पर लॉग इन करना होता है, यहां उन्हें विषय-विशेषज्ञों के सहयोग से नवीनतम शोध और साक्ष्य-आधारित जानकारी प्रदान की जाती है। यह ऑडियो, वीडियो, इन्फोग्राफिक्स आदि के माध्यम से उपलब्ध है।
वेबसाइट यूजर्स रिव्यूज और रेटिंग के साथ विभिन्न शहरों में उपलब्ध सर्विसेस की एक डायरेक्टरी भी प्रदान करती है। प्राची विस्तार से बताती हैं, “यदि हम किसी व्यावसायिक चिकित्सक को अपने साथ जोड़ते हैं, तो हम उसकी डिग्री, अनुभव आदि के बारे में भी विवरण देते हैं ताकि माता-पिता सही निर्णय ले सकें। चूंकि जरूरतें अलग-अलग हैं, इसलिए सर्विसेस भी अलग-अलग उपलब्ध हैं। माता-पिता किसी संगीत शिक्षक की डिटेल्स, एक न्यूरोलॉजिस्ट, या एक रेसीडेंशियल केयर सर्विस से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। वे प्रोवाइडर्स को रेट और रिव्यू भी कर सकते हैं, ताकि जानकारी को और वेरीफाई किया जा सके।" नई दिशा द्वारा प्रदान की जाने वाली तीसरी सर्विस सेवा सहायता समूह है। इसमें नौ ऑनलाइन सहायता समूह हैं और कुछ ऑफलाइन पहल माताओं द्वारा हैदराबाद, पुणे, बेंगलुरु और मुंबई में एक दूसरे का समर्थन करने के लिए शुरू की गई हैं। यहां, माताएं योग कक्षाओं, कला, या बस पालन-पोषण पर चर्चा कर सकती हैं।
सबसे बड़ी समस्या
2015 में स्थापित, नई दिशा अब देश भर में 3,500 से अधिक परिवारों के साथ जुड़ा हुआ है। यह अपने संस्थापकों और सह-संस्थापकों द्वारा बूटस्ट्रैप्ड प्लेटफॉर्म के रूप में शुरू किया गया और अपनी पहल को बढ़ाने के लिए भागीदारों की तलाश कर रहा है। टीम में हैदराबाद में स्थित कंटेंट डेवलपर्स, डिजाइनर, स्वयंसेवक, फ्रीलांसर और कुछ फुल टाइम एंप्लाई शामिल हैं। देखभाल करने वालों को विभिन्न प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। "मेरे बाद क्या?" ये सबसे बड़ा प्रश्न है। जब माता-पिता को उनके बच्चे को विकलांगता का पता चलता है तो उनके अंदर भी यही प्रश्न आता है। इसलिए, हमारे पास ऐसी भी क्वेरीज आती हैं कि कोई रेज़ीडेंशियल केयर सर्विस हैं जो उनके बाद में उनके बच्चों की देखभाल कर सकते हैं। इसके अलावा, समावेशी स्कूलों को खोजना एक बड़ी चुनौती है।” प्राची कहती हैं, "बड़ा अच्छा लगता है जब आपको एक माँ कॉल करे और कहे कि जब तक आपकी वर्कशॉप अटेंड नहीं की थी उन्हें नहीं पता था कि उनकी बेटी स्पीच थैरेपी का लाभ उठा सकती है।"
बच्चे को विकसित करने के लिए पुरे गांव का योगदान होता है
निकट भविष्य में, नई दिशा अलग-अलग भारतीय भाषाओं में जानकारी उपलब्ध कराने और एक मोबाइल ऐप लॉन्च करने की योजना बना रही है। और क्या किया जा सकता है? इस पर प्राची कहती हैं, "हम बंद कमरे में काम नहीं कर सकते हैं। जैसा कि कहा जाता है कि एक बच्चे को पालने में पूरे गांव का योगदान होता है। स्पेशल चाइल्ड के मामले में ये बात और भी सही हो जाती है।"
वह सही समय पर बच्चे की मदद करने के लिए माता-पिता के लिए संसाधनों के साथ-साथ समावेश और शुरुआती हस्तक्षेप पर जोर देती हैं। सरकार को भी एक कदम आगे बढ़कर भूमिका निभानी होगी। प्राची कहती हैं, “हमें सहानुभूति की आवश्यकता है, और यह तभी होगा जब लोग जागरूक होंगे। हमें यह समझाने के लिए लोगों को संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है कि विकलांग बच्चों और उनके परिवार के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता है। यह बहुत महत्वपूर्ण है।"