घटती वर्कफोर्स, बढ़ते सामाजिक खर्च से अमीर देशों के लिए बुज़ुर्ग बने बोझ!
जापान में जी-20 की बैठक में जहां अमीरों के विश्व समुदाय ने घटती वर्कफोर्स और बुजुर्गों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताई है, वहीं हेल्पएज इंडिया की ताज़ा स्टडी में एक बेहद क्रूर सच सामने आया है कि अब भारतीय समाज में लगभग चालीस प्रतिशत लोग अपने बड़ों को, सेवा-सुश्रुषा की बजाय वृद्धाश्रम भेज देना चाहते हैं।
दो वर्ष पहले 2017 तक विश्व में साठ वर्ष से अधिक उम्र के, जो बुजुर्गों की कुल आबादी लगभग एक अरब रही है, उसके 2050 तक सीधे दूना दो अरब हो जाने का अनुमान लगाया गया है। हमारे देश भारत में पहले के मुकाबले वरिष्ठ नागरिक संख्या तेजी से बढ़ रही है। ऐसे हालात में, जबकि दुनिया की कुल जीडीपी में जी-20 देशों की हिस्सेदारी 85 फीसदी है, दुनिया के अमीर देशों को वयोवृद्ध अब बोझ लगने लगे हैं। यह बात कोई हवा में नहीं की जा रही है बल्कि फुकुओका (जापान) में वित्त मंत्रियों तथा केंद्रीय बैंकों के गर्वनरों की जी-20 की बैठक में यह मसला भी चर्चाओं के केंद्र में रहा।
इस शिखर सम्मेलन में वैश्विक अर्थव्यवस्था के समक्ष आ रही चुनौतियों एवं जोखिम, बढ़ता संरक्षणवाद तथा वैश्विक वृद्धि एवं व्यापार, बुनियादी संरचना में निवेश तथा अंतरराष्ट्रीय कराधान आदि मसलों पर चर्चाओं के बीच बुजुर्गों के मसले पर विश्व समुदाय को लोगों की बढ़ती उम्र और घटती जन्म दर को लेकर सतर्क देखा गया। विश्व समुदाय का मानना है कि बुजुर्गों की बढ़ती आबादी वैश्विक जोखिम पैदा कर रही है। बैठक में नीति निर्धारक दिग्गजों ने स्वास्थ्य सेवाओं की बढ़ती लागत, श्रम की कमी, बुजुर्गों के लिए वित्तीय सेवाओं के अभाव के कारणों के चलते बढ़ती उम्र और घटती जन्म दर को लेकर चिंता व्यक्त की है।
पिछले साल 09 मार्च को, सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार के रूप में बुजुर्गों की सम्मानजनक प्रक्रिया सहित मृत्यु के बिंदु तक एक गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार सुनिश्चित करने की घोषणा की थी। कोर्ट ने कहा था कि इंसान को इज्जत के साथ जीने और इज्जत के साथ मरने का पूरा हक है। हमारे देश के बुजुर्ग चाहते हैं कि अपने जीवन के अंतिम दिनों के दौरान उनकी उपचार व्यवस्था सुनिश्चित होनी चाहिए। गौरतलब है कि पिछले 50 वर्षों में भारत की जनसंख्या लगभग तीन गुनी हो गई है, लेकिन बुजुर्गों की संख्याे चार गुना से भी ज्याखदा हो गई है।
2001 की जनगणना के अनुसार भारत में बुजुर्गों की संख्यार (60+) सात करोड़ 70 लाख थी और 2011 की जनगणना में बताया गया कि यह संख्या् जल्दीु ही 10 करोड़ को पार कर जाएगी। पिछले एक दशक में भारत में वयोवृद्ध लोगों की आबादी 39.3% की दर से बढ़ी है। आगे आने वाले दशकों में इसके 45-50 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीाद है। दुनिया के ज्या दातर देशों में बुजुगों की संख्या् दोगुनी होने में 100 से ज्याकदा वर्ष लग गये, लेकिन भारत में इनकी संख्याु केवल 20 वर्षों में ही दुगुनी हो गई। आज औसत आयु बढ़कर 70 से ज्यालदा हो गई है।
बेहतर चिकित्सा सुविधाओं, देखभाल और उदारवादी परिवार नियोजन नीतियों से देश में बुजुर्गों की संख्या तेजी से बढ़ी है। भारत सरकार ने 1999 में बुजुर्गों से संबंधित राष्ट्रीय नीति बनायी, जिसमें सभी पहलुओं पर ध्यान दिया गया। भारत में स्वास्थ्य देखभाल और बुढ़ापा पेंशन जैसे सामाजिक सुरक्षा के लाभ संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों को मिलते हैं। गैर-संगठित क्षेत्र में लगभग 94 प्रतिशत श्रमिक काम करते हैं, लेकिन इनमें से अधिकतर को पर्याप्ते सामाजिक सुरक्षा उपलब्धं नहीं है।
आधुनिकता की चमक-दमक के बीच आज के वक़्त में यह भी साफ तौर पर देखा जा रहा है कि समाज में बुजुर्गों की अहमियत घट रही है। आज के समाज का नजरिया बुजुर्गों के प्रति बदल रहा है लेकिन, स्थिति कितनी भयावह हो चुकी है, शायद इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है। हेल्पएज इंडिया की एक ताज़ा स्टडी ('भारत में बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार: देखरेख करने में परिवार की भूमिका: चुनौतियां और प्रतिक्रिया') से पता चला है कि देखरेख करनेवाले 35 फीसदी लोगों को अब अपने बड़ों की सेवा-सुश्रुषा में खुशी नहीं मिल रही है। सर्वे में भाग लेने वाले 29 फीसदी लोगों ने यह स्वीकार किया है कि वह अपने बुजुर्गों को घर में रखने के बजाय वृद्धाश्रम में रखना चाहते हैं।
बुजुर्गों की देखभाल करने में उन्हें निराशा और कुंठा होती है। इसीलिए उनको अपने बुजुर्गों पर अक्सर गुस्सा आता है। कुल दो हजार से अधिक लोगों पर किए गए इस सर्वे की रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि बत्तीस फीसदी लोग बुजुर्गों की देखभाल करना मात्र फर्ज निभाना मानते हैं। ज्यादातर घर-परिवारों में मानवीय संवेदनाएं खत्म हो रही हैं। अब बुजुर्गों का पालन करने के लिए जिम्मेदार लोग उस चीज से कोई वास्ता नहीं रखना चाहते हैं, जिससे उन्हे कोई लाभ नहीं होने वाला हो।
दुनिया के अमीर देश महसूस कर रहे हैं कि इस समस्या का समय रहते समाधान नहीं निकाला गया तो बहुत देर हो जाएगी। जापान के वित्त मंत्री तारो आसो का कहना था कि 'आपके अमीर होने से पहले अगर बुढ़ापा अपना असर दिखाने लगे तो आपके पास प्रभावी कदम उठाने की क्षमता नहीं बचेगी। जापान की बड़ी आबादी तेजी से बुढ़ापे की ओर बढ़ रही है और बच्चों की जन्म दर बेहद कम है।' आर्थिक सहयोग तथा विकास संगठन के अनुसार, बढ़ती उम्र और घटती जन्म दर से आज ज्यादातर अमीर मुल्क चिंतित है। इस वजह से कई देशों में औसत उम्र और बुजुर्गों की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है।
इनमें स्पेन, इटली और दक्षिण कोरिया जैसे मुल्क प्रमुख हैं। एक तरफ लोगों की उम्र बढ़ रही है तो दूसरी तरफ जन्म दर में लगातार गिरावट आ रही है। इससे समाज में वर्कफोर्स घट रही है। कंपनियों को उनकी जरूरत के अनुसार कर्मचारी नहीं मिल रहे हैं। इससे उनका उत्पादन घट रहा है, जो निवेश के आसार और अवसर कम कर रहा है। दूसरी तरफ, पेंशन और स्वास्थ्य के खर्च भी बढ़ते जा रहे हैं। अमीर देश इन सब बातों को लेकर असमंजस में हैं कि अब करें तो क्या करें?