गोद लेने की तमन्ना रखने वाले दंपती बेटियों को दे रहे प्राथमिकता
सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि ज्यादातर लोग अब बेटियों को ही गोद लेना चाह रहे हैं। इसे पारंपरिक मान्यताओं के उलट, लिंगानुपात की खाई पाटने में सामाजिक जागरूता का एक सुखद प्रतिफल माना जाना चाहिए। पिछले वर्ष से अब तक गोद लिए बच्चों में साठ प्रतिशत लड़किया रही हैं।
हमारे देश में एक तो महिला-पुरुष लिंगानुपात में भारी असमानता बनी हुई है, दूसरे कन्या भ्रूण हत्या ने इस अंतर की खाई और गहरी कर रखी है। ऐसे समय में सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स एजेंसी की एक सर्वे रिपोर्ट ने चौंकाने वाली नई संभावना की खिड़की खोली है। एजेंसी ने सन् 2018 से अब तक 2019 के टाइम स्लॉट वाली अपनी स्टडी में बताया है कि इस दौरान गोद लिए बच्चों में 60 प्रतिशत लड़कियां रही हैं। अब आमतौर से लोग लड़कों से ज़्यादा लड़कियों को गोद लेना पसंद कर रहे हैं। इससे पहला का सच इससे ठीक उलटा रहा है।
मसलन, वर्ष 2011 की जनगणना रिपोर्ट पर एक नजर डालें तो पता चलता है कि लिंगानुपात एक हजार पुरुषों पर 943 महिलाओं का रहा है। हरियाणा, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, उत्तर प्रेदश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड आदि राज्यों में तो ये अनुपात नौ से भी नीचे पाया गया है। जनगणना आकड़ों के मुताबिक इन प्रदेशों में तो आज भी बेटियां अनचाही संतान बनी हुई हैं। अब, जबकि सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि ज्यादातर लोग बेटियों को गोद लेना चाह रहे हैं, इसे पारंपरिक मान्यताओं के उलट, सामाजिक जागरूता का ही एक सुखद प्रतिफल माना जा रहा है। निश्चित ही यह ललक भविष्य में हमारे समाज में लिंगानुपात की खाई पाटने में एक बड़ा कारक बन सकती है।
गौरतलब है कि बच्चा गोद लेने के लिए भारत सरकार ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अंतर्गत सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (CARA) नाम से एक संस्था बना रखी है। इस संस्था ने वर्ष 2015 में गोद लेने की प्रक्रिया के नियमों में संशोधन कर दिया था। शर्त लगा दी गई कि गोद लेने के लिए मां-बाप को रेखांकित योग्यताएं पूरी करनी पड़ेंगी।
अब गोद लेने के लिए अभिभावक का शारीरिक-मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक दृष्टि से समर्थ होना ज़रूरी कर दिया गया है। अब ऐसे अभिभावक, जिनकी अपनी कोई जैविक संतान हो अथवा नहीं हो, वे बच्चा गोद ले सकते हैं। वे अगर दो साल से ज़्यादा समय से शादीशुदा हैं, तभी बच्चा गोद ले सकते हैं।
माता-पिता में से प्रत्येक की आयु में न्यूनतम अंतर 25 वर्ष से कम नहीं होना चाहिए लेकिन यह नियम उस समय लागू नहीं होगा, जब गोद लेने वाले संभावित माता-पिता रिश्तेदार हों या फिर सौतेले। जिन लोगों के पहले से ही तीन या इससे अधिक बच्चे होंगे, वे बच्चा गोद नहीं ले सकते हैं। बच्चा गोद लेने के लिए शर्तों के मुताबिक अनुमन्य माता-पिता सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी की वेबसाइट पर उपलब्ध फॉर्म भरकर रजिस्ट्रेशन, दो लोगों की गवाही, पुलिस वेरिफिकेशन, मेडिकल और मेरिटल स्टेटस आदि की जांच के बाद बच्चा गोद नहीं लेने के लिए अधिकृत माने जाएंगे।
सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी की इस ताज़ा स्टडी रिपोर्ट पर नजर डालने से पता चला है कि वर्ष 2018-2019 में भारत में कुल 3374 बच्चे गोद लिए गए, जिनमें से लड़कियों की संख्या 1977 और लड़कों की 1397 रही है। इस समयावधि में भारत से बाहर कुल 653 बच्चे गोद लिए गए, जिनमें से 421 लड़कियां और 232 लड़के थे। इस समय सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में बच्चे गोद लिए जा रहे हैं, जहां कुल 477 बच्चे गोद लिए गए। दो वर्ष पूर्व के एक और आंकड़े में खुलासा किया गया था कि वर्ष 2016-17 में भारत में कुल 3210 बच्चे गोद लिए गए थे, जिनमें से 1975 लड़कियां और 1295 लड़के थे।
उससे पहले वर्ष 2015-16 में 3011 गोद लिए बच्चों में लड़कियों की संख्या 1855 और लड़कों की 1156 रही है। गोद लेने में बच्ची की पहली प्राथमिकता की वजहें भी चौंकाने वाली हैं।
इस सम्बंध में जानकार कहते हैं कि सामाजिक जागरूकता ने आमतौर से लोगों में इस संदेश के प्रति गहरा लगाव पैदा किया है कि लड़कियों को पालना बोझ नहीं होता है। बच्चा-बच्ची दोनों ही अब सामाजिक जीवन का अहम हिस्सा हैं। दोनो एक दूसरे कमतर नहीं रह गए हैं। जीवन के हर क्षेत्र में आज लड़कियां बढ़-चढ़ कर अपनी कामयाबियां दर्ज कराने लगी हैं।
सामाजिक जीवन में आ रहे बदलावों पर नजर रखने वाले विद्वानों का कहना है कि अब बेटियां ज़्यादा ईमानदारी से अपने बड़ों का ध्यान रखती हैं। आज के समय में बेटियां भी उतने ही प्यार और सम्मान की हकदार हैं, जितने कि लड़के। ज्यादातर मामलों में योग्य होने के बाद लड़के सेल्फिस पाए गए हैं।
अब वो जमाना गया, जब सिर्फ लड़कों को घर का चिराग कहा जाता था। ज्यादातर वे लोग बच्चे गोद ले रहे हैं, जिनकी अपनी जनमी कोई संतान नहीं है। जिन्हें वंश चलाना होता है, वे तो अपने रिश्तेदारों से लड़का गोद ले लेते हैं लेकिन जिन्हें सिर्फ बच्चा पालना है, वे लड़कियों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
संवेदनशील लोगों का बच्चियों के प्रति झुकाव बढ़ रहा है क्योंकि समाज में आज भी लड़कियों के प्रति दोयम दर्जे के नागरिक की पारंपरिक दृष्टि में कोई खास बदलाव नहीं आ सका है। आए दिन नवजात बच्चियों के कूड़े के ढेर पर फेंक दिया जाता हैं। भ्रूण हत्याओं का ग्राफ भी कुछ कम नहीं हुआ है। ऐसे में बच्चियों को गोद लेने की प्राथमिकता एक बड़ी उम्मीद की तरह सामने आ रही है।