इस ऐप ने न्यूज़पेपर बांटने वालों का काम किया आसान, घर-घर जाकर पैसे मांगने से मिली फुरसत
बहुत से लोगों को अख़बार का 'नशा' होता है और उन्हें चाय की चुस्कियों के साथ अख़बार पढ़ने की आदत होती है। हम अक्सर देखते हैं कि सुबह-सुबह समय पर लोगों के घरों तक अख़बार पहुंचाने के लिए वेंडर्स को कितनी जद्दोजहद करनी पड़ती है।
यह ऐप न्यूज़पेपर वेंडर्स के लिए एक ऐसा प्लेटफ़ॉर्म है, जिसकी मदद से वे अपनी बिज़नेस संबंधी सभी गतिविधियों को अंजाम दे सकते हैं। हाल में, पेपरकिंग के साथ 3,000 न्यूज़पेपर वेंडर्स जुड़े हुए हैं और इसकी सेवाएं ले रहे हैं।
आज हम बात करने जा रहे हैं मुंबई से शुरू हुए स्टार्टअप 'पेपरकिंग' की। पेपरकिंग एक ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म (ऐप) है, जो न्यूज़पेपर वेंडर्स को ग्राहकों का रेकॉर्ड व्यवस्थित करने, बिल जेनरेट करने, कैश कलेक्शन का रेकॉर्ड रखने और ऑनलाइन पेमेंट लेने की सुविधाएं मुहैया कराता है। नीरज तिवारी ने 2016 में इस स्टार्टअप की शुरुआत की थी। हालांकि, आजकल मारफ़तें इतनी ज़्यादा हो चुकी हैं कि लोगों तक दिनभर समाचार पहुंचने की तमाम सुविधाएं उपलब्ध हैं, लेकिन इसके बाद भी बहुत से भारतीय परिवार ऐसे हैं, जहां पर अख़बार की अहमियत पहले जैसी ही है। बहुत से लोगों को अख़बार का 'नशा' होता है और उन्हें चाय की चुस्कियों के साथ अख़बार पढ़ने की आदत होती है। हम अक्सर देखते हैं कि सुबह-सुबह समय पर लोगों के घरों तक अख़बार पहुंचाने के लिए वेंडर्स को कितनी जद्दोजहद करनी पड़ती है।
नीरज तिवारी (सीईओ), रितेश रघुवंशी (सीटीओ) और देव पांडेय (सीओओ) पेपरकिंग के को-फ़ाउडर्स हैं। नीरज तिवारी ने मुंबई यूनिवर्सिटी से एमबीए की डिग्री ली है। वह कोटक सिक्यॉरिटीज़ और माय आईरिस डॉट कॉम (www.myiris.com) के लिए भी काम कर चुके हैं। इंटरनेट, वेब टेक्नॉलजी और सॉफ़्टवेयर के क्षेत्र में उनकी काफ़ी रुचि थी और इसलिए उन्होंने 2009 में टीनेटवर्क सॉल्यूशन्स नाम से एक वेबसाइट और सॉफ़्टवेयर डिवेलपमेंट कंपनी की शुरुआत की।
यह ऐप न्यूज़पेपर वेंडर्स के लिए एक ऐसा प्लेटफ़ॉर्म है, जिसकी मदद से वे अपनी बिज़नेस संबंधी सभी गतिविधियों को अंजाम दे सकते हैं। हाल में, पेपरकिंग के साथ 3,000 न्यूज़पेपर वेंडर्स जुड़े हुए हैं और इसकी सेवाएं ले रहे हैं। आज की तारीख़ में 1.5 लाख घरों में इसका इस्तेमाल हो रहा है और 50 लाख से भी ज़्यादा बिल पेपरकिंग के माध्यम से भेजे जाते हैं।
कहां से हुई शुरुआत?
नीरज 2015 में काम के सिलसिले में दुबई गए थे। दुबई जाने से पहले नीरज ने अपने न्यूज़पेपर वेंडर से पूरा हिसाब करने के लिए कहा और उससे मासिक तौर पर होने वाले कलेक्शन के बारे में पूछा। नीरज बताते हैं, "मुझे बहुत आश्चर्य हुआ, जब मुझे पता चला कि वेंडर के पास 3 लाख रुपए तक का कलेक्शन होता है, लेकिन वह इस पैसे का 40-50 प्रतिशत ही कलेक्ट कर पाता था क्योंकि उसे ख़ुद घर-घर जाकर पैसा मांगना पड़ता था।"
नीरज तिवारी ने अख़बार बेचने और बांटने वालों की इस जद्दोजहद को आसान बनाने का फ़ैसला लिया। उन्होंने तय किया कि इस पूरी प्रक्रिया को तकनीक की मदद से ऑटोमेट कर दिया जाए और इसे और भी अधिक प्रभावशाली बनाया जाए। इस उद्देश्य के साथ ही, उन्होंने 2016 में मुंबई से पेपरकिंग लॉन्च किया।
पेपरकिंग फ़िलहाल अंग्रेज़ी, हिन्दी और मराठी भाषाओं में उपलब्ध है और मुंबई के बाज़ार का 35 प्रतिशत हिस्सा अकेले संभाल रहा है। पेपरकिंग से जुड़े अधिकतर वेंडर्स ठाणे, नवी मुंबई और अंधेरी में हैं। हाल में पेपरकिंग के पास 5 लोगों की मुख्य टीम है। 6 एजेंसियां और पब्लिशर्स कंपनी के साथ जुड़े हुए हैं। नीरज बताते हैं, "शुरुआत में अधिकतर वेंडर्स ने उनके पेपरकिंग के सिस्टम को स्वीकार नहीं किया क्योंकि यह तकनीक उनके लिए पूरी तरह से नई थी, लेकिन धीरे-धीरे हमने ऐप में कुछ ज़रूरी बदलाव किए और वेंडर्स हमारे साथ सहज हो गए।"
कैसे काम करता है पेपरकिंग?
वेंडर्स को ऐप में सभी ग्राहकों के नाम और उनसे जुड़ी अन्य ज़रूरी जानकारियां जोड़नी होती हैं। इसके बाद वेंडर्स ऐप में यह जानकारी भी दर्ज करते हैं कि किस ग्राहक को कौन सा न्यूज़पेपर या मैगज़ीन पहुंचानी है। हर महीने की पहली तारीख़ को ऐप हालिया बाज़ार मूल्य का सर्वे करता है और इसके बाद ग्राहकों के लिए बिन जेनरेट करता है। ऐप की मदद से सिर्फ़ 10 सेकंड के भीतर बिल जेनरेट किया जा सकता है और इसे एसएमएस या ई-मेल के माध्यम से ग्राहकों को भेज दिया जाता है। इस प्रक्रिया की मदद से मैनुअल बिलिंग और पेमेंट की जद्दोजहद से निजात मिलता है। बिल के साथ ही ग्राहकों को उनकी देय राशि की जानकारी और ऑनलाइन पेमेंट का लिंक भेज दिया जाता है।
पेपरकिंग ऐप को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि यह पेमेंट के सोर्स के हिसाब से अपने आप को अपडेट कर सकती है। ग्राहक नेट बैंकिंग, डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, यूपीआई और अन्य पेमेंट वॉलेट्स के माध्यम से भुगतान कर सकते हैं। ग्राहकों से भी हर महीने ऐप के इस्तेमाल का पैसा लिया जाता है। इसके अलावा, कंपनी ऑनलाइन पेमेंट से मिलने वाले टीडीआर (ट्रांजैक्शन डिस्काउंट रेट) से भी रेवेन्यू पैदा करती है। साथ ही, कंपनी एजेंसियों और पब्लिशर्स से ऐडवरटाइज़िंग के लिए भी चार्ज करती है।
मार्केट और फ़ंडिंग
नीरज का कहना है, "न्यूज़पेपर इंडस्ट्री अभी भी डिजिटल पेमेंट के माध्यमों से काफ़ी हद तक अछूती है। भारत की न्यूज़पेपर इंडस्ट्री में करीब 10 लाख न्यूज़पेपर वेंडर्स और डिलिवरी करने वाले कर्मचारी हैं। हर साल भारत की न्यूज़पेपर इंडस्ट्री में करीबन 15,000 हज़ार करोड़ रुपए का लेन-देन होता है और इस पैसे के लिए कोई भी ऑनलाइन माध्यम मौजूद नहीं है।"
पेपरकिंग ने इस मुद्दे का हल ढूंढ निकाला है। कंपनी ने 2015 में 1 लाख डॉलर की सीड फ़ंडिंग हासिल की और हाल में कंपनी अपने दम पर ही आगे बढ़ रही है। कंपनी ने 2017 में 1 लाख डॉलर के रेवेन्यू का दावा किया है। कंपनी का लक्ष्य है कि अगले 10 सालों में पेपरकिंग के साथ 10 लाख न्यूज़पेपर वेंडर्स को जोड़ा जाए। साथ ही, निकट भविष्य में यानी 2019 तक कंपनी 30 मिलियन घरों और 1 लाख वेंडर्स को अपने साथ जोड़ना चाहती है। कंपनी आने वाले कुछ महीनों में 1 मिलियन डॉलर की मदद से देश के 5 मेट्रो शहरों में पहुंच बनाने की योजना बना रही है।
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