अरबों की संपत्ति और 3 साल की बेटी को छोड़ सन्यासी बनने वाले दंपती
नीमच के प्रतिष्ठित कारोबारी नाहरसिंह राठौर के पोते सुमित राठौर और गोल्डमेडल के साथ इंजिनियरिंग करने वाली उनकी पत्नी अनामिका के इस फैसले से हर कोई हैरान है। इनकी शादी चार साल पहले ही हुई है।
अब ये दोनों पति-पत्नी संत और साध्वी होकर अपनी जीवन बिताएंगे। इसी महीने 23 सितंबर को साधुमार्गी जैन आचार्य रामलाल जी महाराज के मार्गदर्शन में गुजरात के सूरत शहर में दीक्षा दी गई।
वैसे तो घर-द्वार छोड़कर मोक्ष की तलाश में सन्यास लेने की बातें तो हमें कहानी की किताबों में पढ़ने को मिलती थीं। या फिर हमारे पूर्वज हमें ऐसे किस्सों के बारे में बताते थे। लेकिन इस आधुनिक युग में भी ऐसी कहानी सुनने को मिल जाए तो थोड़ा आश्चर्य जरूर लगता है। ऐसा ही कुछ हुआ है मध्य प्रदेश के नीमच में जहां एक युवा दंपती ने अपनी सारी संपत्ति त्यागकर सन्यास लेने का फैसला कर लिया। दुख की बात यह है कि उन्होंने अपनी तीन साल की बेटी के बारे में भी नहीं सोचा। अब ये दोनों पति-पत्नी संत और साध्वी होकर अपनी जीवन बिताएंगे। इसी महीने 23 सितंबर को साधुमार्गी जैन आचार्य रामलाल जी महाराज के मार्गदर्शन में गुजरात के सूरत शहर में दीक्षा दी गई।
नीमच के प्रतिष्ठित कारोबारी नाहरसिंह राठौर के पोते सुमित राठौर और गोल्डमेडल के साथ इंजिनियरिंग करने वाली उनकी पत्नी अनामिका के इस फैसले से हर कोई हैरान है। इनकी शादी चार साल पहले ही हुई है। इनकी दो साल 10 महीने की बेटी इभ्या भी है। साधुमार्गी जैन श्रावक संघ नीमच के सचिव प्रकाश भंडारी ने बताया कि नीमच के बड़े कारोबारी घराने के इस परिवार की 100 करोड़ से भी अधिक की संपत्ति है। परिवार के काफी समझाने के बावजूद युवा दंपती संन्यास लेने के अपने निर्णय पर अडिग है।
उन्होंने बताया कि सूरत में पिछले 22 अगस्त को सुमित ने आचार्य रामलाल की सभा में खड़े होकर कह दिया कि मुझे संयम लेना है। प्रवचन खत्म होते ही हाथ से घड़ी और दूसरी चीजें खोलकर दूसरे व्यक्ति को दे दिए और आचार्य के पीछे चले गए। आचार्य ने दीक्षा लेने के पहले पत्नी की आज्ञा को जरूरी बताया। वहां मौजूद अनामिका ने दीक्षा की अनुमति देते हुए आचार्य से स्वयं भी दीक्षा लेने की इच्छा जाहिर की। इस पर आचार्य ने दोनों को दीक्षा लेने की सहमति दी। इसके बाद दोनों के परिवार तुरंत सूरत पहुंच गए और दोनों को समझाया। आचार्य ने तीन साल की बेटी का हवाला देते हुए इस कपल को संन्यास की इजाजत नहीं दी। इससे पिछले महीने उनकी दीक्षा टल गई, लेकिन इसके बाद भी सुमित और अनामिका दोनों अपने संन्यास लेने के निर्णय पर अडिग रहे। अब आखिरकार राठौर दंपती 23 सितंबर को दीक्षा ले ही ली।
अनामिका के पिता आशोक ने बताया कि बेटी और दामाद के संन्यासी बन जाने के बाद पोती की जिम्मेदारी वे उठाएंगे। उन्होंने कहा, 'कोई भी व्यक्ति अपना धार्मिक फैसला लेने के लिए स्वतंत्र है और उसे रोका नहीं जा सकता है। वहीं, सुमित के व्यापारी पिता राजेंद्र सिंह राठौड़ का कहना है कि हमें ऐसा लग रहा था कि वह संन्यासी बन जाएगा लेकिन इतना जल्दी होगा, ऐसा नहीं सोचा था।' सुमित और अनामिका ने संन्यासी बनने का फैसला उसी समय ले लिया था जब उनकी बेटी आठ महीने की थी। दोनों एक दूसरे से अलग अलग भी रहने लगे थे। हालांकि दोनों साथ में ही दीक्षा लेना चाहते थे, लेकिन बेटी इभ्या की वजह से यह संभव नहीं हो पाया।
सुमित और अनामिका के इस फैसले से हर कोई हैरान था और इसी वजह से गुजरात बाल अधिकार आयोग ने तीन साल की बच्ची को इस तरह छोड़ने के आरोप में उनके खिलाफ मामला दर्ज किया था। शिकायत में उनकी बेटी के भविष्य को लेकर चिंता जताई गई थी। इतना ही नहीं आयोग ने प्रशासन और पुलिस से पूरे मामले की रिपोर्ट भी मांगी थी। इसके बाद पुलिस ने जैन समुदाय के नेताओं और वकीलों से पूरे मुद्दे पर बातचीत की। हालांकि बाद में दंपति ने अधिकारियों को बताया कि उन्होंने अपनी बेटी पति के बड़े भाई को कानूनी रूप से गोद दे दिया है। उनका कहना था कि बड़े भाई और उनकी पत्नी काफी संपन्न हैं और उनकी बेटी का पालन पोषण करने में भी समर्थ हैं।
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